Bareilly : “बेटे को माता-पिता से अलग करना अन्याय”, विवाहिता का गुजारा खर्च दावा खारिज

Bareilly : फैमिली कोर्ट ने एक अहम फैसले में संयुक्त परिवार के प्रति असहिष्णुता और सास-ससुर के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार को सामाजिक मूल्यों के लिए “अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण” करार देते हुए एक विवाहिता का गुजारा खर्च का दावा खारिज कर दिया। कोर्ट ने न केवल दावे को निराधार माना, बल्कि झूठा मुकदमा दायर करने के लिए विवाहिता पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। फैमिली जज ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने अपने फैसले में भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवार और बुजुर्गों के सम्मान की महत्ता पर जोर दिया, साथ ही कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया।

कोर्ट का सख्त रुख: संयुक्त परिवार के खिलाफ असहिष्णुता अस्वीकार्य

फैमिली जज ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल कर किसी पुत्र को उसके माता-पिता से अलग करने का प्रयास “घोर अन्याय” है। उन्होंने कहा कि विवाहिता में वैवाहिक संस्कारों और पारिवारिक मूल्यों का अभाव है, और सास-ससुर के प्रति उसका उपेक्षापूर्ण रवैया सामाजिक ताने-बाने के लिए हानिकारक है।

अपने आदेश में जज ने लिखा, “वादिनी का संयुक्त परिवार के प्रति असहिष्णुता और बुजुर्गों के प्रति उपेक्षा का रवैया न केवल वैवाहिक जीवन के मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि यह वर्तमान सामाजिक परिवेश के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।” कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि विवाहिता बिना किसी ठोस कारण के अपने मायके में रह रही है और पति के बार-बार बुलाने के बावजूद ससुराल लौटने को तैयार नहीं है।

मामले की पृष्ठभूमि: शादी, दहेज और पारिवारिक विवाद

मामला बरेली की नई बस्ती, माधोबाड़ी निवासी एक विवाहिता और मुरादाबाद के कटघर निवासी उसके पति से संबंधित है। दोनों की शादी सात साल पहले (2018 में) हुई थी। विवाहिता ने कोर्ट में दावा किया कि उसके पिता ने शादी में 11 लाख रुपये खर्च किए, लेकिन पति और उसका परिवार 15 लाख रुपये नकद दहेज की मांग कर रहा है। उसने यह भी आरोप लगाया कि ससुराल वाले उसे प्रताड़ित करते हैं, जिसके कारण वह अपने मायके में रह रही है।

वहीं, पति ने अपने जवाब में कहा कि उसकी पत्नी सास-ससुर की देखभाल नहीं करती और उन्हें खाना तक नहीं बनाकर देती। उसने यह भी बताया कि विवाहिता घरेलू कामकाज में कोई रुचि नहीं दिखाती और बार-बार मायके में रहने की जिद करती है। सुनवाई के दौरान विवाहिता ने कोर्ट में स्वीकार किया कि वह अपने मायके में ही रहेगी और पति के बुलाने पर भी ससुराल नहीं लौटेगी। उसने यह भी कहा कि उसे घरेलू काम करना नहीं आता।

साक्ष्यों का विश्लेषण: दहेज के दावे अविश्वसनीय

कोर्ट ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों का गहन विश्लेषण किया और विवाहिता के दावों को अविश्वसनीय माना। साक्ष्यों के अनुसार, विवाहिता के पिता मजदूरी करते हैं और उनके पास साइकिल तक नहीं है। ऐसे में शादी में 11 लाख रुपये खर्च करने और ससुराल पक्ष द्वारा 15 लाख रुपये दहेज मांगने का दावा तथ्यों से परे पाया गया।

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि विवाहिता की मुख्य समस्या ससुराल में संयुक्त परिवार में रहना है, जिसमें सास, ससुर और देवर शामिल हैं। जज ने कहा, “वादिनी का ससुराल में संयुक्त परिवार के साथ रहने से इंकार और मायके में रहने की जिद उसके दावे की सत्यता पर सवाल उठाती है। बिना उचित कारण के पति और ससुराल को छोड़कर मायके में रहना गुजारा खर्च के दावे को आधारहीन बनाता है।”

जुर्माना और कानूनी चेतावनी

फैमिली कोर्ट ने विवाहिता का गुजारा खर्च का दावा खारिज करते हुए झूठा मुकदमा दायर करने के लिए उस पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने आदेश दिया कि यह राशि 30 दिनों के भीतर जमा करनी होगी, अन्यथा कानूनी प्रक्रिया के तहत वसूली की जाएगी। यह जुर्माना कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और पारिवारिक मूल्यों को बनाए रखने की दिशा में एक सख्त कदम है।

सामाजिक और सांस्कृतिक संदेश

यह फैसला भारतीय समाज में संयुक्त परिवार और बुजुर्गों के सम्मान की अहमियत को रेखांकित करता है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि वैवाहिक जीवन में पारस्परिक समझ, सहयोग और पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन आवश्यक है। सास-ससुर के प्रति उपेक्षा और संयुक्त परिवार से दूरी बनाने की प्रवृत्ति न केवल वैवाहिक रिश्तों को कमजोर करती है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचाती है।

व्यापक प्रभाव: कानून और मूल्यों का संतुलन

बरेली फैमिली कोर्ट का यह फैसला न केवल एक कानूनी निर्णय है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाला एक कदम भी है। यह समाज को यह सोचने पर मजबूर करता है कि आधुनिकता के दौर में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। साथ ही, यह कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग के खिलाफ एक सख्त चेतावनी भी देता है।

विवाहिता पर लगाया गया जुर्माना और कोर्ट की टिप्पणी इस बात का संकेत है कि झूठे दावों और पारिवारिक मूल्यों की उपेक्षा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह मामला समाज के सामने एक विचारणीय प्रश्न भी छोड़ता है: क्या हम आधुनिकता की दौड़ में अपने पारंपरिक मूल्यों को भूल रहे हैं? संयुक्त परिवार और बुजुर्गों के प्रति सम्मान को बनाए रखते हुए वैवाहिक रिश्तों को कैसे मजबूत किया जाए, यह एक ऐसी चुनौती है जिस पर समाज को गंभीरता से विचार करना होगा।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें