
भास्कर ब्यूरो
बरेली। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (UP Board) की वर्ष 2025 की हाई स्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षाओं के परिणामों में इस बार एक अनोखी और प्रेरणादायक तस्वीर सामने आई है। यह तस्वीर किसी स्कूल या कॉलेज की नहीं, बल्कि केंद्रीय कारागार-2, बरेली की है, जहां जेल में निरुद्ध बंदियों ने न केवल परीक्षाएं दीं, बल्कि शानदार अंकों के साथ पास होकर समाज और शिक्षा के बीच एक नई मिसाल कायम कर दी।
हाई स्कूल के परिणामों में तीन बंदियों ने भाग लिया और सभी ने प्रथम श्रेणी में सफलता प्राप्त की। इन तीनों में सबसे अधिक अंक 452 के साथ नदीम पुत्र अनवर खाँ ने प्राप्त किए, जिन्होंने 75.33% अंकों के साथ पहला स्थान पाया। उनके साथ ही रवि पुत्र अमर सिंह ने 451 अंक (75.16%) और शिवम पुत्र जागन लाल ने 428 अंक (71.33%) अर्जित कर प्रथम श्रेणी में स्थान सुनिश्चित किया।

यह केवल आंकड़े नहीं हैं, बल्कि उन बंद दरवाज़ों के पीछे जले उम्मीद के दीयों की चमक है। यह सफलता इस बात का प्रमाण है कि अगर किसी को सही मार्गदर्शन, संसाधन और प्रेरणा मिले तो जेल की दीवारें भी उनके आत्मविकास को नहीं रोक सकतीं।वहीं इंटरमीडिएट परीक्षा के परिणामों में भी तीन बंदियों ने भाग लिया। इनमें मकेश पुत्र मुन्शी लाल गोयल ने सबसे अच्छा प्रदर्शन करते हुए 313 अंक (62.06%) हासिल कर प्रथम श्रेणी में स्थान प्राप्त किया। दूसरे स्थान पर फैजान खान पुत्र शौकत खान रहे, जिन्होंने 265 अंक (53%) पाकर द्वितीय श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण की।
हालांकि, तीसरे अभ्यर्थी अशोक पुत्र ओमप्रकाश परीक्षा में 154 अंक (30.08%) ही अर्जित कर सके और अनुत्तीर्ण हो गए। यह परिणाम यह भी दर्शाता है कि सुधार की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है, लेकिन प्रयास जारी हैं और अगली बार यह आकंड़े और भी बेहतर हो सकते हैं।
इन परिणामों की सफलता के पीछे केवल बंदियों की मेहनत ही नहीं, बल्कि जेल प्रशासन और उन शिक्षकों की भी अहम भूमिका है, जिन्होंने कारागार में रहकर बंदियों को पढ़ाया, उन्हें दिशा दी और मनोबल बढ़ाया। जेल में पढ़ाई के लिए बनाए गए शिक्षण केंद्र, पुस्तकालय और डिजिटल सामग्री ने बंदियों को आत्मनिर्भर बनने और समाज की मुख्यधारा में लौटने की राह दिखाई।केंद्रीय कारागार-2 के अधीक्षक विपिन मिश्रा और शिक्षा से जुड़े अधिकारियों ने भी इन परीक्षाओं की तैयारियों में पूरा सहयोग दिया। शिक्षा को सुधार प्रक्रिया का एक अभिन्न हिस्सा मानते हुए कारागार प्रशासन ने बंदियों को नियमित कक्षाएं, अभ्यास पत्र और समय-समय पर मूल्यांकन की सुविधा दी, जिसका नतीजा इन उत्कृष्ट परिणामों में देखने को मिला।
इन बंदियों की सफलता उन तमाम लोगों के लिए एक प्रेरणा है, जो मानते हैं कि जेल में शिक्षा व्यर्थ है या अपराधी शिक्षा के योग्य नहीं होते। इन परिणामों ने इस मिथक को तोड़ा है और साबित किया है कि अपराध का प्रायश्चित शिक्षा के माध्यम से किया जा सकता है।