
भास्कर ब्यूरो
बरेली: पत्रकारिता, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, आज अपने ही लोगों के खून से रंगी जा रही है। खबरों की दुनिया में सच के लिए आवाज उठाने वाले पत्रकार आज खुद असुरक्षित हैं। सीतापुर में पत्रकार राघवेंद्र वाजपेयी की निर्मम हत्या ने न केवल पत्रकारिता जगत को झकझोर कर रख दिया, बल्कि पूरे समाज में भय और आक्रोश की लहर दौड़ा दी है।
इस जघन्य घटना (हत्या) के विरोध में बरेली के पत्रकारों ने एकजुट होकर जिला अधिकारी (डीएम) के माध्यम से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ज्ञापन सौंपा। इस ज्ञापन में दोषियों की अविलंब गिरफ्तारी की मांग की गई, साथ ही यह भी आग्रह किया गया कि मृतक पत्रकार के परिवार को एक करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जाए।पत्रकार राघवेंद्र वाजपेयी की हत्या यह दर्शाती है कि अपराधी अब उन लोगों को भी निशाना बना रहे हैं, जो समाज के लिए निडर होकर सच सामने लाते हैं।

यह कोई पहली घटना नहीं है, जब किसी पत्रकार को अपनी कलम की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी हो। इससे पहले भी कई राज्यों में निर्भीक पत्रकारों की हत्या की खबरें सामने आती रही हैं।आज पत्रकार केवल खबरें कवर करने तक ही सीमित नहीं रह गए हैं, बल्कि वे अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के अग्रणी योद्धा बन चुके हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब यही योद्धा असुरक्षित हैं, तो समाज के अन्य नागरिकों की सुरक्षा की क्या गारंटी है?इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष आलोक गुप्ता सिटल के नेतृत्व में पत्रकारों ने इस घटना के खिलाफ कड़े शब्दों में नाराजगी जाहिर की। ज्ञापन सौंपने के दौरान वरिष्ठ पत्रकार पवन सक्सेना, अनूप मिश्रा, इमरान खान,अशोक गुप्ता, मनोज गोस्वामी, मुकेश तिवारी, भानु प्रताप, प्रवीण शशांक राठौर, अरुण मौर्य, शिवम कुमार सिंह, वीरेंद्र अटल समेत अन्य पत्रकारों ने एकजुटता दिखाई।
पत्रकारों ने साफ कहा कि यदि जल्द ही दोषियों को गिरफ्तार नहीं किया गया, तो पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर आंदोलन किया जाएगा। उनकी मांग है कि न केवल पत्रकार राघवेंद्र वाजपेयी के परिवार को मुआवजा दिया जाए, बल्कि उनके परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी भी दी जाए, ताकि वे आर्थिक रूप से सशक्त हो सकें।पिछले कुछ वर्षों में पत्रकारों पर हमलों की संख्या में इजाफा हुआ है। देशभर में कई पत्रकार अपनी रिपोर्टिंग के कारण माफियाओं और अपराधियों के निशाने पर आ चुके हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पत्रकारों की हत्याएं, धमकियां और हमले आम हो गए हैं।
पत्रकारों पर होने वाले हमले यह संकेत देते हैं कि समाज में सच लिखने और बोलने की कीमत बहुत अधिक हो गई है। सरकारों को चाहिए कि वे पत्रकारों की सुरक्षा के लिए ठोस कानून बनाएं और यह सुनिश्चित करें कि पत्रकारों को किसी भी तरह की धमकी या हिंसा का सामना न करना पड़े।
उत्तर प्रदेश सरकार ने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कई बार आश्वासन दिए हैं, लेकिन इन आश्वासनों का जमीनी हकीकत से कितना वास्ता है, यह घटनाएं खुद बयान करती हैं। जब एक पत्रकार को सरेआम मौत के घाट उतार दिया जाता है और अपराधी बेखौफ घूमते रहते हैं, तो यह सरकार की कानून व्यवस्था पर भी सवाल उठाता है।
अगर अपराधियों को जल्द ही पकड़कर सजा नहीं दी गई, तो यह संदेश जाएगा कि कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं बची है। पत्रकारों के संगठनों ने साफ कर दिया है कि यदि न्याय नहीं मिला, तो वे सड़कों पर उतरकर बड़ा आंदोलन करेंगे।