
- राजनीतिक खेल के शिकार न हो देश, अब खामोशी नहीं चलेगी
बरेली। देश में बढ़ती नफरत की आग ने समाज के हर तबके को झकझोर दिया है। इस आग को बुझाने की जिम्मेदारी अब केवल सत्ता और सरकार की नहीं, बल्कि हर उस संस्था की है जो सामाजिक सद्भाव और मानवता का हिस्सा है। और इन जिम्मेदारियों में से सबसे बड़ी जिम्मेदारी अब खानकाहों पर आ पड़ी है!
मरकज़े अहल-ए-सुन्नत दरगाहे आलाहज़रात बरेली शरीफ के खलीफा-ए-मुफ्ती-ए-आज़म, नबीरा-ए-आलाहज़रात हज़रत अल्लामा तौसीफ रज़ा खान तौसीफे मिल्लत ने बिना किसी हिचक के यह चेतावनी दी है कि अगर अब भी हमने ठोस कदम नहीं उठाए तो यह नफरत की आग हमारे समाज को जला कर राख कर देगी। उनका साफ कहना था, “कुछ राजनीतिक दल अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए देश की एकता को तोड़ने का काम कर रहे हैं। ‘लड़ाओ और राज करो’ की अंग्रेजी नीति पर चल रहे ये लोग देश के सबसे बड़े दुश्मन बन चुके हैं, जो सिर्फ अपना हित देख रहे हैं, समाज नहीं।”
“हम चुप नहीं बैठ सकते!”
हज़रत ने कड़े शब्दों में कहा, “अगर अब हम खामोश रहे तो नफरत की यह आग और तेज़ होगी, और यह हमारे देश की बुनियाद को कमजोर कर देगी। खानकाहों को अब सिर्फ अपनी बात नहीं करनी होगी, बल्कि एक्शन लेना होगा। समाज में सद्भाव और भाईचारे को फिर से बहाल करना होगा, चाहे इसके लिए हमें जो भी कीमत चुकानी पड़े।”
उन्होंने स्पष्ट किया, “हमारे बुजुर्गों ने अपनी खानकाहों में बिना भेदभाव के हर इंसान की मदद की थी, लेकिन अब यह वक्त है कि हम नफरत फैलाने वालों को चुनौती दें और उनकी साजिशों को नाकाम करें। अगर हम अब भी चुप रहे, तो इसका मतलब होगा कि हम नफरत को बढ़ने का मौका दे रहे हैं।”
खानकाहें अब अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार हों!
नफरत के इस तूफान को रोकने के लिए अब हमें सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं रहना होगा। समाज के हर हिस्से को साथ लेकर, जमीनी स्तर पर कदम उठाने होंगे। वक्त कम है और नफरत अब कहीं अधिक गहरी हो चुकी है। अगर आज नहीं उठे तो कल पछताने का वक्त नहीं मिलेगा।