बरेली दोनों पैरों से विकलांग फिर भी चला रहा है घर

इमरान खानबरेली। किसी शायर की शायरी आपने सुनी भी होगी और पढ़ी भी होगी किजिंदा दिली जिंदगी का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जिंदगी जिया करते है।  कुछ इसी तरह के ज़िंदा दिल रखने वाले ज़खीरा स्थित सेंट्रल स्कूल के पास शाने अली पुत्र पुत्तन की जिन्दगी की दास्तान है।जिनका कम उम्र में पिता का साया सर से उठ गया। वहीं 30 वर्षीय शाने अली दोनों पांव से पोलियों रोग से ग्रस्त है। परिवार में शाने अली समेत उनकी मां व एक भाई है जो दिमाग से कमज़ोर है वही आर्थिक लाचारी के कारण शाने अली अपना इलाज नहीं करवा पाया।

दोनों पांव से विकलांग होने के बाद भी उसने हिम्मत नहीं हारी तथा अपनी व्हीलचेयर को सहारा बना कर रोजगार का अवसर तलाश लिया व्हीलचेयर के द्वारा अपने घर से रंग बिरंगे गुब्बारे का सामान लेकर निकल पड़ते है।इस तपती धूप में बच्चों के मनपसंद लाल नीले पीले गुब्बारे बेचते है। विकलांगता को वह अभिशाप नहीं मानते है उसकी हिम्मत व दिलेरी के सामने विकलांगता बौनी साबित हो रही है। वह बताते है कि गुब्बारे बेचकर वह प्रतिदिन सौ से डेढ़ सौ रुपये कमा लेते है।

जिससे उसके परिवार की गाड़ी चल जाती हैवही शाने अली बताते है कि लॉक डाउन होने के बाद उनको थोड़ी बहुत दिक्क़ते ज़रूर हुई जिससे उनके रोज़गार पर काफ़ी असर पड़ा। हालांकि अभी उनकी कमाई पहले जैसी नहीं हो रही है लेकिन वह कहते हैं अल्लाह सब की मदद करता है जल्द ही उनका रोजगार भी ठीक हो जाएगा।  वही परिवार का भरण पोषण वह गुब्बारे बेच करते है। सुबह होते ही वो अपनी व्हील चेयर पर गुब्बारे लेकर ग्राहकों की तलाश में निकल पड़ते है।

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