Bareilly : ‘कैश पहले, डिलीवरी बाद’, सरकारी मातृ सेवा को बना दिया दलाली का अड्डा

Bareilly: उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद के बहेड़ी क्षेत्र में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), मुड़िया नवी बक्श में गरीब और असहाय महिलाओं से प्रसव के नाम पर अवैध वसूली का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इस भ्रष्टाचार की पोल तब खुली जब सोशल मीडिया पर एक स्टाफ नर्स का वीडियो तेजी से वायरल होने लगी। वीडियो में नर्स प्रसव के बाद छुट्टी दिलाने के एवज में महिला से पैसे मांगती नजर आ रही है। ये वीडियो न केवल स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर करारा तमाचा है, बल्कि यह प्रदेश सरकार की उस योजना पर भी सवालिया निशान खड़ा करती है, जिसमें गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित, निशुल्क और सम्मानजनक प्रसव सेवा देने की बात की जाती है।

मुफ्त इलाज और प्रसव सेवा के नाम पर चलने वाले इस सरकारी केंद्र पर स्टाफ नर्सों ने इसे ‘वसूली केंद्र’ बना डाला है। पीड़ित महिलाओं और उनके परिजनों ने खुलासा किया है कि जैसे ही महिला की डिलीवरी होती है, वैसे ही स्टाफ नर्स और एएनएम (सहायक नर्स मिडवाइफ) मिलकर वसूली अभियान शुरू कर देते हैं। छुट्टी देने के लिए रुपये तय हैं और अगर परिजन देने में देर करें या विरोध करें तो महिला को हॉस्पिटल में बेवजह रोका जाता है, डांटा जाता है, मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है।

वायरल वीडियो में एक स्टाफ नर्स को साफ तौर पर यह कहते हुए सुना जा सकता है कि “अगर छुट्टी चाहिए तो पैसे देने होंगे।” यह दृश्य किसी निजी नर्सिंग होम का नहीं, बल्कि एक सरकारी केंद्र का है जहां हर गरीब महिला उम्मीद लेकर आती है कि उसे सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा, पर यहां तो उसके जख्मों पर पैसे की नमक छिड़की जा रही है। पीड़ित महिलाओं के घरवालों का कहना है कि डिलीवरी के बाद एएनएम और नर्सें अलग-अलग कारणों से 200 से लेकर 1000 रुपये तक की मांग करती हैं – “सफाई के पैसे”, “इंजेक्शन के पैसे”, “बच्चा संभालने के पैसे” और सबसे शर्मनाक – “छुट्टी के पैसे।” यह सब उस वक्त होता है जब महिला शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होती है और उसके परिजन किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहते।

जब इस गंभीर मामले में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के किसी जिम्मेदार अधिकारी से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई, तो उनका सरकारी मोबाइल नंबर नेटवर्क क्षेत्र से बाहर बताता रहा। यह वही जवाबदेही है जिससे जनता का भरोसा टूटता है। अब सवाल उठता है – क्या सरकारी अधिकारी सिर्फ कुर्सियों पर बैठने के लिए हैं या फिर भ्रष्टाचारियों को बचाने की मशीन बन चुके हैं?

इस मामले को लेकर न स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई त्वरित कार्रवाई नहीं हुई, न ही कोई बयान आया। न ही सीएमओ ऑफिस से कोई जांच टीम भेजी गई, न ही पीड़ितों से संपर्क किया गया। इस चुप्पी को आखिर कैसे समझा जाए? क्या ये संकेत है कि ऐसी अवैध वसूली को विभाग की मौन स्वीकृति प्राप्त है?

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