
- डॉ.रामतेज यादव पर भ्रष्टाचार और गबन का पिटारा खुला, धीरेंद्र चौधरी पर भी शिकंजा कसने की तैयारी
- कृषि व्यवस्था को लगा था अंदरखाने से दीमक, अब उजागर हो रहा है घोटालों का सच,
शासन ने दिखाया सख्त रुख, अब बचे नहीं पाएंगे अफसर
भास्कर ब्यूरो
बरेली। उत्तर प्रदेश की कृषि व्यवस्था में अंदर तक फैले भ्रष्टाचार का एक बड़ा मामला सामने आया है।जिला कृषि अधिकारी के पद पर तैनात रहे डॉ.रामतेज यादव को शासन ने भ्रष्टाचार और सरकारी धन के गबन के आरोप में निलंबित कर दिया है। यह कोई साधारण मामला नहीं है, बल्कि वर्षों से दबे एक ऐसे घोटाले का परदा फाश है, जिसमें न केवल सरकारी योजनाओं का चीरहरण हुआ, बल्कि किसान हितों को भी तिलांजलि दी गई।
वर्तमान में डॉ.यादव लखनऊ में राजकीय ऊसर सुधार परिक्षेत्र प्रबंधक के पद पर तैनात थे,लेकिन उनके खिलाफ लंबित जांचों और पुख्ता साक्ष्यों के बाद शासन ने उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। सूत्रों की मानें, तो यह कार्रवाई उस लंबे कागजी जांच की परिणति है, जो वर्ष 2018 से ठंडी फाइलों में दबकर रह गई थी।
डॉ.रामतेज यादव 31 जुलाई 2014 से 31 मार्च 2018 तक बरेली में जिला कृषि अधिकारी के पद पर तैनात रहे। यही वह समयकाल था, जब कृषि योजनाओं में जमकर भ्रष्टाचार हुआ। शासन द्वारा कराई गई विभागीय जांच में खुलासा हुआ कि उन्होंने पद का दुरुपयोग करते हुए सरकारी धन का भारी मात्रा में दुरुपयोग किया। जांच में यह भी सामने आया कि योजनाओं के नाम पर फर्जी भुगतान, दस्तावेजों में हेराफेरी, और कृषि यंत्रों की आपूर्ति में भारी घपले किए गए।
यह घोटाला तब और चौंकाने वाला बन जाता है जब यह पता चलता है कि इन गड़बड़ियों के कारण कई किसान योजनाओं से वंचित रह गए और कृषि सुधार के नाम पर सिर्फ कागजों में काम होता रहा।
डॉ.यादव की ही तरह, बरेली में ही तैनात रहे एक और जिला कृषि अधिकारी धीरेंद्र चौधरी पर भी अब गाज गिरने वाली है। उन पर भी भ्रष्टाचार, पद के दुरुपयोग और वित्तीय अनियमितताओं के गंभीर आरोप हैं। चौधरी के पास उपनिदेशक कृषि का भी प्रभार था, और उन्होंने इस पद का इस्तेमाल करते हुए विभागीय खरीद, अनुदान वितरण और योजनाओं के क्रियान्वयन में बड़े पैमाने पर मनमानी की।
इनके खिलाफ दर्ज शिकायतों के बाद तत्कालीन जिलाधिकारी रविंद्र कुमार ने सीडीओ जगप्रवेश से जांच कराई थी। जांच रिपोर्ट में आरोप सही पाए गए, जिसके बाद डीएम ने कृषि निदेशालय से निलंबन और रिकवरी की संस्तुति की थी। अब सूत्रों के अनुसार, अगले कुछ ही दिनों में उनके खिलाफ भी औपचारिक कार्रवाई हो सकती है।
यह मामला केवल दो अफसरों का नहीं, बल्कि उन तमाम योजनाओं और सरकारी प्रयासों का अपमान है जो किसानों के भले के लिए बनाए गए थे। “प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना”, “मृदा स्वास्थ्य कार्ड”, “कृषि यंत्र अनुदान योजना” जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं सिर्फ आंकड़ों में चलती रहीं, और ज़मीनी हकीकत में इनका लाभ पात्र किसानों तक नहीं पहुंच पाया।यही नहीं, विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से जो धन किसानों के बैंक खातों में जाना था, वह दलालों और फर्जी लाभार्थियों के माध्यम से निगल लिया गया। इससे न केवल सरकारी खजाने को नुकसान हुआ, बल्कि ग्रामीण स्तर पर किसानों की आस्था भी बुरी तरह टूटी।
शासन की कार्रवाई से स्पष्ट है कि अब उच्चाधिकारियों की भी जवाबदेही तय की जाएगी। लंबे समय तक राजनीतिक संरक्षण और विभागीय लापरवाही के कारण ऐसे अफसर बेलगाम हो चुके थे। मगर हाल की कार्रवाई संकेत दे रही है कि योगी सरकार अब जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत इन भ्रष्ट अफसरों को बख्शने के मूड में नहीं है।