
Banda : माता महेश्वरी देवी पर उनके भक्तों और श्रद्धालुओं का ऐसा अटल विश्वास है कि माता ने दरबार से आज तक किसी को खाली हाथ नहीं लौटाया। मुंडन संस्कार हो या फिर शादी-ब्याह, बिना माता के दरबार में हाजिरी लगाए पूरा नहीं होता। सौभाग्यवती स्त्रियां माता के चरणों का सिंदूर माथे पर लगाकर अपने दिन की शुरुआत करती हैं। संतान की इच्छा रखने वाली महिलाएं स्नान के बाद गीले कपड़ों में ब्रह्ममुहूर्त में मातारानी की परिक्रमा कर साधना करती हैं, तो माता निपूती की गोद में लाल डाल देती हैं।
लोगों पर जब मुसीबतों का पहाड़ टूटता है, तो उनके आगे सिर्फ माता महेश्वरी की तस्वीर उभरती है। भक्त मन्नत मान लेते हैं और आपदा टल जाती है। मंदिर के निर्माण को लेकर प्रचलित कथा शहर की गंगा-जमुनी तहजीब को प्रमाणित करती है और हिंदू-मुस्लिम धर्म के बीच आपसी सौहार्द को बढ़ावा देती है।
शहर के ऐतिहासिक महेश्वरी देवी मंदिर के संबंध में बुजुर्ग बताते हैं कि यहां पहले एक बड़ा तालाब हुआ करता था। तालाब के किनारे एक छोटी-सी मढ़िया थी, जिसमें माता विराजमान थीं। मढ़िया में उस समय भी दर्शनों के लिए भीड़ उमड़ती थी। उस समय बांदा में नवाब अली बहादुर द्वितीय का शासन हुआ करता था।
नवाब के यहां महेश्वरी नाम का एक राजमिस्त्री काम करता था, जो सिंहवाहिनी देवी मंदिर के पास बस्ती
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