बांदा: मां जगदंबे की प्रतिमाओं को साकार रूप दे रहे मूर्तिकार

दैनिक भास्कर न्यूज

बांदा। प्रतिमा पत्थर की हो या फिर मिट्टी की, मूर्तिकार की बस एक तमन्ना होती है कि उसके हाथों से कोई ऐसी प्रतिमा गढ़ी जाये, जिससे उसकी अपनी एक अलग नई पहचान बन सके। कला वही है जो कल्पना को साकार रूप दे सके। कोलकाता के प्रसिद्ध मूर्तिकार मधु पाल इसके लिये विख्यात हैं। बीते तकरीबन डेढ़ दशक से यहां अपने सहायक कलाकारों के साथ आकर एक हाते में तीन से चार माह पहले वे अपने हाथों का हुनर दिखाना शुरू कर देते हैं।

दुर्गा कमेटी के आयोजक मां का जिस नये रूप में दर्शन करना चाहते हैं। मधु पाल और खोखन पाल आदि कलाकार अपनी टीम के साथ उसे साकार करने का प्रयास करते हैं। हालांकि कोरोना काल में दो वर्ष तक मधु पाल की टीम मूर्तियां बनाने के लिए यहां नहीं पहुंची, लेकिन इस बार उनके यहां करीब दो सैकड़ा से भी ज्यादा प्रतिमाएं गढी जा रही हैं।

हाथी, कमल, चांद, मयूर, डमरू, रथ, शेषनाग और नाव पर सवार मां दुर्गे की सजेंगी प्रतिमाएं

मूर्ति तो सभी मूर्तिकर गढ़ते हैं, लेकिन जिन पर मातारानी की विशेष कृपा होती है उनके हाथों से तैयार होने वाली मां की प्रतिमाओं को जो एक नजर देखता है बस उसकी आंख वहीं टिक जाती है। कोलकाता से हर साल यहां शारदीय नवरात्र में स्थापना और झांकी के लिये नये आयामों में मूर्तियां गढ़ने वाले कई मूर्तिकार महीनों पहले से ही अपना डेरा जमा लेते हैं और मां की आकर्षक प्रतिमाएं तैयार करते हैं। कलकतिया कलाकारों के हाथों से तैयार प्रतिमाओं के कदरदान न केवल बांदा जिले बल्कि चित्रकूट, फतेहपुर, कानपुर, हमीरपुर, महोबा, ललितपुर के अलावा मध्य प्रदेश के सतना, छतरपुर, गुना और सागर जिलों में भी हैं।

दो सैकड़ा से अधिक मूर्तियों की हो चुकी बुकिंग, शहर से लेकर गांव तक रहेगी महोत्सव की धूम

भाड़ा अधिक होने के बावजूद वे बीते कई वर्षों से यहीं से प्रतिमाएं लेकर जा रहे हैं। मूर्तिकार एक हफ्ते का समय लेकर ऐसी प्रतिमाएं भी गढ़ने का काम करते हैं जो कुछ विशेष होती हैं। आयोजकों में से कोई चाहता है कि मां दुर्गा की झांकी इस बार शेषनाग पर सवार होकर सजाई जाये तो कोई चाहता है कि मां शेर के साथ ही विलुप्त हो चुके प्राणी डायनासोर पर सवार हों। इस बार मूर्तिकार ने मां की किसी प्रतिमा को चांद पर बिठाया है तो किसी प्रतिमा को रथ पर।

मां कहीं पर्वत पर बैठी हैं तो कहीं पेड़ की डाल पर। नये आयामों में मां कमल, मयूर, हाथी, नाव और पालने में भी सवार किया गया है। शहर के बड़े पंडालों में मां की विशालकाय प्रतिमा के साथ ही परियों, राक्षसों आदि की प्रतिमाओं को भी सजाए जाने का चलन बढ़ा है। मां दुर्गा के पंडालों की बढ़ती संख्या के साथ ही शहर में मूर्तियां बनाने का काम भी कई जगहों पर होने लगा है। वहीं जबलपुर से प्रतिमाएं लाने का चलन भी बदस्तूर जारी है।

मधुपाल की टीम में सब माहिर कलाकार

मूर्तिकार मधुपाल की एक विशेषता यह भी है कि टीम में शामिल सभी 11 सहायक कलाकर मूर्ति की सजावट के मामले में अपने-अपने क्षेत्र में माहिर हैं। सुमंत पाल, अरूप, अमल, टोटन, भीष्म, वीरू, राजेश और रोहित विशेष प्रकार की मिट्टी से गढ़कर ढांचा खड़ा करते हैं और प्रतिमा में मुखौटे के साथ ही मिट्टी के सांचे से आभूषण बनाते हैं। बांस की कम्टियों और घास-फूस पर मिट्टी से प्रतिमा का आकार दिये जाने के बाद सुखाते वक्त प्रतिमा को कई बार संवारा जाता है। इसके बाद राजू पेंटर स्प्रे मशीन से इसमें रंग भरने का काम करते हैं। इसके बाद प्रतिमा में श्रृंगार सहायक मूर्तिकार चंदन के जिम्मे होता है। प्रतिमाओं में आंखों की भावभंगिमा बनाते हैं दिलीप पाल और प्रतिमाएं जीवंत हो उठती हैं।

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