
- सौभाग्य और संतान दीर्घायु के लिए महिलाओं ने रखा व्रत
- स्नान को नदी व सरोवरों में महिलाओं की रही भीड़
Banda : आषाढ़ मास की अष्टमी को महालक्ष्मी पर्व मनाया गया, महिलाओं ने व्रत रखा और घरों में विधि विधान से पूजन किया। सुबह नदी व तालाबों में शुचि करने के बाद व्रत की शुरूआत की। बेसन से बने प्रतीकात्मक गहने, फल, फूल व दूर्वा अर्पित कर मां लक्ष्मी से धन व वैभव की कामना की। इस दौरान घरों में उत्सव जैसा माहौल रहा।
पितृ पक्ष में पिंडदान और तर्पण के लिये लोग गयाधाम की यात्रा करते हैं। श्राद्ध किया जाता है और पुरखों को नित्य प्रति विधि विधान के साथ पानी दिया जाता है। इसीलिए हमारे उन्हीं पूर्वजों ने इस पखवारे में किसी भी तरह का धार्मिक अनुष्ठान वर्जित बताया जाता है। लेकिन महालक्ष्मी का व्रत इसी पितृ पक्ष में ही पड़ता है। धन की देवी लक्ष्मी को खुश करने के लिए महिलाएं विधि विधान से महालक्ष्मी का पूजन करती हैं और व्रत रखती हैं। रविवार की सुबह से ही महिलाएं शहर के केन नदी व नवाब टैंक सहित अन्य तालाबों व सरोवरों में पहुंची। यहां स्नान करने के साथ शुद्धता की। इसके बाद उपवास शुरू किया। कई महिलाओं ने घरों में ही स्नान व शुद्धता की।
घरों में बेसन के गहने, पुआ सहित कई पकवान बनाए। शाम को महिलाओं ने महालक्ष्मी की विधि विधान से पूजा की। बेसन से तमाम प्रकार के बने गहने अर्पित किया। फल, फूल, दूर्वा सहित अन्य सामग्री चढ़ाई। इस दौरान समूह में कथा सुनने के बाद महालक्ष्मी से महिलाओं ने धन व वैभव के साथ संकटों से मुक्ति की कामना की। पूजन के बाद घर में सभी को प्रसाद वितरित किया। बाद में खुद आठ पुए खाकर पूजा की परंपरा निभाई। ज्योतिषाचार्य पंडित आनंद शास्त्री बताते हैं कि महालक्ष्मी का व्रत रखने और विधि विधान से उनका पूजन करने से धन की देवी लक्ष्मी की कृपा बरसती है।
बाजार खूब बिके मिट्टी के हाथी
महालक्ष्मी पर्व पर रविवार से बाजार में जगह-जगह मिट्टी के बने हाथी की बिक्री हुई। इसके अलावा महिलाएं डलिया में रखकर घर-घर बेंचने गई। आर्थिक रूप से संपन्न घरानों की महिलाओं ने पीतल के हाथी से पूजा-अर्चना की। इसके अलावा महिलाओं ने पूजन सामग्री की खरीदारी एक दिन पहले ही कर ली थी। फूल व फलों की खूब बिक्री हुई। पूजा-अर्चना के बाद पंडितों और कन्याओं का दान-दक्षिणा दी।