हरिद्वार-ऋषिकेश में मदिरा बिक्री पर रोक : हाईकोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई कर अगली तारीख की तय

नैनीताल : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस फैसले पर सुनवाई की है, जिसमें हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे धार्मिक स्थलों पर 31 मार्च 2025 से डिपार्टमेंटल स्टोर के माध्यम से शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया है। इस फैसले के खिलाफ दायर की गई तीन याचिकाओं पर मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने लम्बी सुनवाई की।

17 जून को होगी अगली सुनवाई

कोर्ट ने मामले में सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अगली सुनवाई के लिए 17 जून, मंगलवार की तारीख तय की है। याचिकाकर्ताओं ने सरकार के फैसले को चुनौती दी है, वहीं राज्य सरकार ने धार्मिक भावनाओं और सार्वजनिक आस्था का हवाला देकर अपनी नीति को सही ठहराया।

सरकार का पक्ष: धार्मिक स्थलों की मर्यादा बनाए रखना ज़रूरी

राज्य के महाधिवक्ता ने कोर्ट में स्पष्ट किया कि सरकार धार्मिक स्थलों पर शराबबंदी की पक्षधर है, और इसी सोच के तहत आबकारी विभाग ने हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे तीर्थस्थलों में मदिरा की बिक्री पर रोक लगाने का निर्णय लिया है।
महाधिवक्ता ने कहा:

तीर्थयात्री डिपार्टमेंटल स्टोर से शराब खरीद कर अन्यत्र जाकर उसका सेवन करते हैं, जिससे धार्मिक माहौल पर विपरीत असर पड़ता है।

याचिकाकर्ताओं का तर्क: हम नियमों के तहत संचालित हैं

दूसरी ओर, डिपार्टमेंटल स्टोर संचालकों का कहना है कि उनका लाइसेंस वैध और आबकारी नियमों के तहत जारी किया गया है। वे कोई कानून नहीं तोड़ रहे और न ही फुटकर शराब विक्रेता हैं। उनका कहना है कि सरकार ने बिना उचित वैधानिक प्रक्रिया के उनका व्यवसाय बाधित करने का निर्णय लिया है, जो अनुचित है।

हरिद्वार और ऋषिकेश: आस्था के प्रमुख केंद्र

हरिद्वार को “धर्मनगरी” कहा जाता है और यहीं से चारधाम यात्रा की शुरुआत होती है। वहीं, ऋषिकेश को “योग नगरी” के रूप में जाना जाता है। यहां गंगा स्नान, ध्यान और साधना के लिए देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु आते हैं।
सरकार का मानना है कि ऐसे पवित्र स्थलों पर मदिरा की बिक्री और सेवन से धार्मिकता और माहौल प्रभावित होता है

क्या होगा आगे?

अभी यह मामला विचाराधीन है और हाईकोर्ट द्वारा 17 जून को अगली सुनवाई में स्पष्ट रुख अपनाए जाने की संभावना है। यह मामला धार्मिक आस्था और व्यापारिक अधिकारों के संतुलन का गंभीर प्रश्न बन चुका है, जिस पर अब न्यायपालिका से ही अंतिम निर्णय की अपेक्षा की जा रही है।

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