
फिल्मों के रुपहले पर्दो ने छीन ली सावन के कजरी गीत
बहराइच (जरवल )l समय के काल चक्र ने गाँवो में पड़ने वाले झूले के साथ पैग मारने वाली महिलाओं के कजरी व मल्हार जैसे सावन गीत अब नहीं सुनाई पड़ते जिसकी जगह फिल्मों के रुपहले पर्दो ने ले ली है। जबकि दो दशक पूर्व गाँवो की महिलायें सावन में झूला झूलते वक्त ” सावन आइ गये मनभावन, बदरा घिरि घिरि आवै ना ! बदरा गरजै, बिजुरी चमकै, पवन चलत पुरवैया ना ! सावन आइ गये मनभावन ” सुनो मोरे सइयाँ, कहली कई दैयाँ, हम नइहरवा जइबे ना अब तो आ गइलैं सवनवाँ, हम नइहरवा जइबै ना ! के साथ धार्मिक कजरी गीत ” सावन की सबको बधाई राधा रानी झूलन को आई झूलन को आई श्री जी झूलन का आई ” जैसे सावन गीत भी कानों में नही पड़ते जिसकी जगह फिल्मों के रुपहले पर्दे ने जरूर ले रखा है।आज भी फिल्मों के पर्दे पर आया सावन झूम के, कुछ कहता हैं ये सावन,
सावन का महीना पवन करे सोर,जैसे फिल्मो में सावन गीत सुनाई देते हैं।
गाँव की हरियाली पर आरा बना कारण
जरवल। अंधाधुंध पेड़ो की कटाई और सरकार की ओर से पौधरोपण के बाद पेड़ो के चारों ओर टी गार्ड न लगना झूला झूलने का मुख्य कारण बन गया है जिससे सावन की हरियाली में भी झूले नहीं पड़ते न ही सावन के कजरी गीत ही सुनाई पड़ते हैं।