
जरवल, बहराइच। कृत्रिम गर्भाधान, टीकाकरण, बधियाकरण, पशुगणना और प्राथमिक उपचार जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम देने वाले पशु मित्र आज भी अपने अधिकारों और मानदेय के लिए संघर्ष कर रहे हैं। प्रदेश के पशु चिकित्सालयों में वर्षों से खाली पद भरे नहीं गए, और जो पशु मित्र जमीन पर विभागीय कामों की रीढ़ बने हुए हैं, उन्हें अब तक मानदेय तक नसीब नहीं हुआ।
पशु मित्र शादाब किदवई, जो बीते 25 वर्षों से इस सेवा में हैं और वर्तमान में प्रदेश संगठन के महामंत्री भी हैं, बताते हैं— “हम लगातार प्रदेश व जिला मुख्यालय पर अपनी मांगों को लेकर आवाज़ उठा रहे हैं, लेकिन हर बार हमें नजरअंदाज़ कर दिया जाता है।”
उनका कहना है कि “हम न केवल कृत्रिम गर्भाधान, टीकाकरण, बधियाकरण और पशु गणना जैसे कार्य करते हैं, बल्कि गोशालाओं में भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। फिर भी हमें सरकारी मान्यता या आर्थिक सम्मान नहीं मिल पा रहा।”
हमदर्दी तो सबको है, पर नाम से डरते हैं साहब
जरवल: पशु चिकित्सालय में कार्यरत एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया— “विभाग में कई पद वर्षों से खाली हैं, और इन्हीं पशु मित्रों के भरोसे विभाग का ज़्यादातर काम चलता है। लेकिन इनकी मेहनत का कोई मानदेय न मिलना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।”
पशु मित्रों की यह लड़ाई केवल वेतन की नहीं, बल्कि सम्मान और पहचान की है। अब देखना यह है कि क्या प्रदेश सरकार इन जमीनी सेवाओं को गंभीरता से लेकर कोई ठोस कदम उठाएगी, या पशु मित्र यूं ही ‘गनेण परिक्रमा’ करते रहेंगे।