Bada Mangal: बड़े मंगल की शुरुआत कैसे हुई ? क्या है असली कहानी

Bada Mangal: 13 मई 2025 से ज्येष्ठ माह की शुरुआत हुई, जिसके साथ ही शुरू हो गयी बड़े मंगल की धूम…वैसे तो लगभग पुरे उत्तर प्रदेश में ही बड़े मंगल को लेकर श्रद्धालुओं में एक लग उत्साह दिखता है पर लखनऊ में इसकी सबसे ज्यादा मान्यता है, और इसके पीछे कारण है कि इसकी शुरुआत लखनऊ से ही हुई है। ज्येष्ठ माह के हर मंगलवार लखनऊ में कोई भूखा नहीं रहता, हर गली, मौहल्ले, चौक, चौराहे पर भंडारे होते नजर आ जायेंगे। भंडारे का नाम सुनकर आपको लगता होगा कि सब्जी पूड़ी या फिर कड़ी चावल य ज्यादा से ज्यादा तहरी मिल रही होगी, पर ऐसा नहीं है लखनऊ में होने वाले भंडारों में आपको आइसक्रीम, खीर, छोला भटूरा, मिठाइयाँ और हर वो चीज मिल जाएगी जो एक आम आदमी पैसे की कमी के कारण खरीद कर नहीं खा पाता। वैसे तो बड़े मंगल को लकर ढ़ेर सारी कहानियां प्रचलित है पर इसकी शुरुआत कहा से हुई इसको लेकर कोई दो राय नहीं है।

ज्येष्ठ माह में बड़े मंगलवार की शुरुआत लखनऊ के अलीगंज में स्थित पौराणिक हनुमान मंदिर से हुई है। ये मंदिर सैकड़ों साल पुराना है, कहते है इस मंदिर की स्थापना 1743 में मुग़ल शासन के दौरान हुई थी। बड़े मंगल पर सिर्फ लखनऊ में ही लगभग 2000 से 3000 भंडारों का आयोजन होता है जिसकी शुरुआत अलीगंज के इस हनुमान मंदिर से ही हुई है।

बड़े मंगल को लेकर क्या बोले हनुमान मंदिर के प्रबंधक

ज्येष्ठ माह के बड़े मंगल को लेकर अलीगंज हनुमान मंदिर के सचिव, रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी पूर्व एसएसपी (लखनऊ) राजेश पांडे ने कई बड़े खुलासे किये। बड़े मंगल की शुरुआत और इससे जुडी कहानियों पर बात करते हुए उन्होंने कहा, कहीं नहीं इसी मंदिर से ही बड़ा मंगल शुरू हुआ है। बड़ा मंगल का जो कांसेप्ट है वह है ज्येष्ठ माह के पहले मंगल को बड़ा मंगल कहते हैं। उसके बाद ज्येष्ठ में जितने भी मंगल होंगे वो सभी बड़े मंगल के नाम से जाने जाते हैं। जैसे इस साल ज्येष्ठ माह में पांच मंगल हैं तो इस बार पांच बड़े मंगल होंगे। उन्होंने कहा कि इसे लेकर ढेर सारी किंवदंतिया हैं। बताया ये जाता है
कि मुगल शासक वाजिद अली शाह के जो सुपुत्र थे उनके पुत्र नहीं हो रहा था, जिसके बाद उनकी पत्नी रजिया बेगम मंदिर में आई और हनुमान जी की पूजा अर्चना करने लगी, जिसके बाद उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इस खुशी में यहां पर तत्कालीन मुगल शासक ने एक मेला लगवाया, पहले ये देहात का क्षेत्र हुआ करता था, मेले में आसपास के जिलों के लोग आया करते थे।

बड़े-बड़े चबूतरे लगते थे और यहां पर यात्रियों के रुकने की सुविधा टेंट घासफूस के छप्पर के जरिये जाती थी। दूर के यात्री वहां आते थे और दिन भर मेले को भ्रमण करते थे। उसके बाद धीरे-धीरे इसके स्वरूप में परिवर्तन हुआ। अभी 2022 में हाई कोर्ट ने एक इसका ट्रस्ट बनाया। हम लोगों ने आने के बाद इसका इतिहास ढूंढना शुरू किया। तो इतिहास में हमें पुराने रिकॉर्ड्स मिले। लखनऊ हाई कोर्ट जो पहले अवध कोर्ट थी उसके रिकॉर्ड्स से यह पता लगा कि इसमें एक शिलालेख लगा हुआ है उसको ढूंढा गया। शिलालेख से पता चला की इस मंदिर का शिखर स्तूप 6 मई 1783 को बनकर कंप्लीट हुआ और उसी दिन जम्मू कश्मीर के केसर के व्यापारी राजा जटमल ने इस मंदिर की पहली बार पूजा की। भगवान श्री हनुमान जी की पहली बार पूजा कराने वाले महंत खासाराम थे।

मुगलिया कारीगरी जो बाकी मुगल बिल्डिंग्स में देखने को मिलती है वही यहाँ भी मौजूद है। इसी के साथ सटा हुआ एक शिव मंदिर भी है। वो भी उसी तिथि को शुरू हुआ था जिस तिथि को हनुमान जी का ये मंदिर शुरू हुआ जिसकाजीर्णोद्धार हम लोग करा रहे हैं। इसका मुख्य द्वार शहर के मध्य आने से अतिक्रमित हो गया, बहुत ढेर सारी दुकानें खुल गई, भक्तों के आने जाने की जगह नहीं बची, तो उस पुराने गेट को हटाकर नया 85 फीट चौड़ा और 31 फीट ऊंचा द्वार बनाया जा रहा है।

मंदिर से जुड़ी कहानियों पर बात करते हुए राजेश पांडेय ने कहा, ढेर सारी मान्यताएं इससे जुड़ी हैं। उन्होंने कहा यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां आपकी मान्यता पूरी होने के बाद ही आप इसमें घंटी चढ़ाएंगे। दूसरी मान्यता यहां पर है कि भगवान को नहलाने के बाद इकट्ठा हुए पानी को पीने से तमाम रोग ठीक होते हैं तो सवेरे से ही लोग उसमें से थोड़ा-थोड़ा पानी ले जाते हैं।

इसी परिसर में एक पुराना पारिजात का वृक्ष है जिसके बारे में किसी को नहीं पता ये कब का है। उस पेड़ में 3 साल पहले पुष्प आने शुरू हुए। यहाँ एक पौराणिक सरोवर है जिसको पंपा सरोवर कहते हैं। रामचरितमानस में अरण्य कांड में जिस पंपा सरोवर का जिक्र है मुझे नहीं पता कि यह वही पंपा सरोवर है या कोई और है। लेकिन इसका नाम जो रिकॉर्ड्स में है वो पंपा सरोवर ही है। इस समय उसमें बहुत से लोग आते हैं, भीड़ लगती है, लोग देखने आते हैं। पहले भंडारे का कार्यक्रम सिर्फ हनुमान जी मंदिर के इस कैंपस में होता था लेकिन धीरे-धीरे यह फैलने लगा और पिछले साल लखनऊ लखनऊ में करीब 45000 भंडारों का आयोजन किया गया।

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