
- बख्शी के तालाब की घटना दलित विरोधी सोच का नमूना, न्यायिक जांच हो : भाकपा माले
लखनऊ । बख्शी के तालाब इलाके के खंतारी गांव में बाबा साहेब अंबेडकर की मूर्ति नीले चादर से ढकी हुई और गांवों में एक खामोशी है। दुखद यह है कि भीमराव आंबेडकर जयंती के दिन भी यह मूर्ति ढकी रही। भाकपा माले ने कहा है कि दो दिन पहले खंतारी गांव में अंबेडकर की प्रतिमा को जबरन हटाने की कोशिश की गई तथा इसका विरोध करने पर दलित समुदाय के साथ पुलिस प्रशासन ने जो बर्बरता दिखाई, वह दलित विरोधी सोच का नमूना है।
भाकपा माले का सात सदस्यीय जांच दल पार्टी के जिला प्रभारी रमेश सिंह सेंगर के नेतृत्व में खंतारी गांव, बक्शी का तालाब का दौरा किया और वस्तुस्थिति का पता लगाया। पुलिस की इस बर्बरता के खिलाफ गांव की दलित महिलाएं सामने आईं और शांतिपूर्ण प्रतिरोध किया तो पुलिस ने उनके कपड़े फाड़े, बेरहमी से पीटा, आंसू गैस के गोले छोड़े और उन पर फायरिंग की।
माले ने तथ्यों की रोशनी में मांग की है कि घटना की न्यायिक जांच कराई जाए जिसकी निगरानी हाईकोर्ट के सिटिंग जज करें। दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ तत्काल एफआईआर दर्ज कर उन्हें निलंबित किया जाए। एसडीएम सतीश चंद्र त्रिपाठी के खिलाफ जातिगत भेदभाव और सत्ता के दुरुपयोग का मुकदमा चलाया जाए। प्रशासन सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगे और दलित समुदाय के आत्म-सम्मान के अधिकार को मान्यता दे।
खंतारी गांव में पुलिस द्वारा की गई इस कार्रवाई की जांच करने के लिए भाकपा माले का सात सदस्यीय जांच दल पार्टी के जिला प्रभारी रमेश सिंह सेंगर के नेतृत्व में खंतारी गांव, बक्शी का तालाब का दौरा किया। इस दल में राजीव गुप्ता (आरवाईए), कमला गौतम (ऐपवा), छोटे लाल रावत (एआईकेएम), मधुसूदन मगन (एआईसीसीटीयू), शांतम निधि (जसम) और दिग्विजय सिंह (आइसा) शामिल थे।

इस दल ने पीड़ित लोगों के साथ ग्रामीणों से बातचीत की। उस जगह का भी मुआयना किया जहां डा. अम्बेडकर की प्रतिमा को लेकर पुलिस प्रशासन द्वारा विवाद पैदा किया गया था। जांच दल ने घटना के विविध पहलुओं पर विचार के बाद अपनी रिपोर्ट जारी की है। वह संक्षेप में इस प्रकार है।
यह घटना खंतारी गांव में डॉ. भीमराव अंबेडकर की पहले से स्थापित प्रतिमा को जबरन हटाने को लेकर हुई। पिछले तीन वर्षों से दलित समुदाय ने शासन-प्रशासन से इसकी अनुमति मांगी थी, लेकिन बार-बार टालमटोल किया गया। ग्रामीणों का कहना है कि एसडीएम सतीश चंद्र त्रिपाठी ने अनुमति इसलिए नहीं दी क्योंकि उन्हें डर था कि इससे उनका प्रमोशन रुक जाएगा। हालांकि जनवरी 2025 में उन्होंने मौखिक रूप से अनुमति दे दी थी, जिसके बाद ही प्रतिमा स्थापित की गई।