
Azamgarh : उत्तर प्रदेश की जेल व्यवस्था में भ्रष्टाचार की एक और काली करतूत सामने आई है, जो ‘शॉशैंक रिडेम्प्शन’ फिल्म की याद दिलाती है। आजमगढ़ जिला कारागार से रिहा हुए एक हत्यारोपी कैदी ने जेल अधीक्षक की चेकबुक चुराकर फर्जी हस्ताक्षरों से 52 लाख 85 हजार रुपये साफ कर दिए। इस रकम का इस्तेमाल उसने अपनी बहन की शादी में फिजूलखर्ची, लग्जरी बुलेट बाइक खरीदने और पुराने कर्ज चुकाने में किया। पुलिस की त्वरित कार्रवाई में मुख्य आरोपी सहित चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। यह मामला जेल की सुरक्षा और लेखा प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है, जहां कैदियों को संवेदनशील दस्तावेजों तक पहुंच कैसे मिल गई? आइए, इस घोटाले की पूरी कहानी विस्तार से जानते हैं।
साजिश की शुरुआत: हत्या से जेल और फिर फर्जीवाड़ा
मुख्य आरोपी रामजीत यादव उर्फ संजय उम्र करीब 45 साल, निवासी जमुआ सागर, थाना बिलरियागंज की कहानी 2011 से शुरू होती है, जब उस पर अपनी पत्नी अनीता यादव की हत्या का आरोप लगा। पुलिस जांच में वह दोषी पाया गया और सजा काटने के लिए आजमगढ़ जिला कारागार में बंद किया गया। जेल में रहते हुए रामजीत ने बैंकिंग सिस्टम, हस्ताक्षर और दस्तावेजों की बारीकियां सीख लीं संभवतः जेल के लेखा विभाग में काम करने वाले साथी कैदियों से। 20 मई 2024 को सजा पूरी कर रिहा होने के समय उसने चालाकी से जेल अधीक्षक आदित्य कुमार सिंह की चेकबुक चुरा ली। यह चेकबुक केनरा बैंक की कोतवाली शाखा से जुड़ी थी, जहां जेल प्रशासन का आधिकारिक खाता था।
रिहाई के अगले ही दिन, 21 मई 2024 को, रामजीत बैंक पहुंचा और खुद को “जेल का ठेकेदार” बताकर फर्जी दस्तावेजों के जरिए पैसे निकालने लगा। उसने यह सब अकेले नहीं किया—जेल के अंदर से ही साजिश रची गई थी।
साथी और मिलीभगत: कौन-कौन शामिल?
रामजीत की मदद करने वाले तीन अन्य आरोपी थे:
- शिवशंकर यादव उर्फ गोरख (निवासी चकमेउवां, थाना रानी की सराय): जेल का ही कैदी, जो लेखा कार्यालय में ‘राइटर’ के रूप में काम करता था। उसने रामजीत को जेल की आंतरिक जानकारी दी और चेकबुक चुराने में सहयोग किया।
- मुशीर अहमद: जेल का वरिष्ठ सहायक और लेखा प्रभारी। उसने मिलीभगत से फर्जी हस्ताक्षर और मुहर तैयार करने में मदद की।
- अवधेश कुमार पांडेय: जेल का चौकीदार, जिसने सुरक्षा में सेंध लगाकर चेकबुक चुराने की सुविधा दी।
ये चारों मिलकर फर्जी दस्तावेज तैयार करते रहे और धीरे-धीरे रामजीत के खाते में पैसे ट्रांसफर करते गए। कुल 52 लाख 85 हजार रुपये निकाले गए, जो जेल के विकास, चिकित्सा और अन्य खर्चों के लिए रखे गए थे। घोटाला इतना चालाकी से किया गया कि महीनों तक किसी को शक नहीं हुआ।
रकम का ‘लग्जरी’ उपयोग: शादी, बाइक और कर्ज
पुलिस पूछताछ में रामजीत ने कबूल किया कि उसने गबन की रकम को ‘खुशहाली’ के नाम पर उड़ा दिया। यहां देखिए विस्तृत ब्रेकडाउन:
- 25 लाख रुपये: बहन की शादी में फिजूलखर्ची, जिसमें बारात, दावत और गिफ्ट्स शामिल थे।
- 3.75 लाख रुपये: रॉयल एनफील्ड बुलेट मोटरसाइकिल खरीदी, जो आरोपी की लग्जरी पसंद को दर्शाती है।
- 10 लाख रुपये: पुराने मुकदमों और हत्या केस में लगे कर्ज चुकाए।
- बाकी रकम: अन्य आरोपी बांट ले गए मुशीर अहमद ने 7 लाख, शिवशंकर ने 5 लाख, और अवधेश पांडेय ने 1.5 लाख रुपये व्यक्तिगत और घरेलू जरूरतों पर खर्च किए।
रामजीत के बैंक खाते में बची मात्र 23 हजार रुपये को पुलिस ने होल्ड कर लिया है। बरामदगी में बुलेट बाइक, एक ओप्पो मोबाइल फोन, बैंक चेक की फोटोकॉपीज, स्टेटमेंट और जेल अधीक्षक की फर्जी मुहर शामिल हैं ये सभी गबन की रकम से खरीदे गए थे।
खुलासा और पुलिस की कार्रवाई: गिरफ्तारी से जांच तक
घोटाले का पर्दाफाश 9 अक्टूबर 2025 को हुआ, जब जेल अधीक्षक आदित्य कुमार सिंह ने वरिष्ठ सहायक मुशीर अहमद से बीएचयू, वाराणसी में भेजी गई धनराशि के विवरण मांगे। मुशीर ने अनभिज्ञता जताई, जिसके बाद बैंक स्टेटमेंट चेक करने पर संदिग्ध निकासी सामने आई। जेल अधीक्षक ने तुरंत कोतवाली थाने में तहरीर दी, और IPC की धारा 420 (धोखाधड़ी), 120B (आपराधिक षड्यंत्र), PCA (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) समेत अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ।
शनिवार देर रात उप निरीक्षक दल प्रताप सिंह की टीम ने छापेमारी कर चारों आरोपियों को हिरासत में लिया। पूछताछ में सभी ने अपराध कबूल कर लिया। एसपी सिटी मधुबन कुमार सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “यह जेल प्रशासन की बड़ी लापरवाही है। सभी आरोपी जेल भेज दिए गए हैं, और वित्तीय ट्रेल की जांच से और संलिप्त लोगों का पता लगाया जा रहा है।” पुलिस ने आरोपियों को रिमांड पर लेकर गहन जांच शुरू कर दी है, जिसमें बैंक रिकॉर्ड्स और सीसीटीवी फुटेज की जांच शामिल है।
जेल व्यवस्था पर सवाल और भविष्य: सुधार की जरूरत
यह घटना आजमगढ़ जेल की सुरक्षा खामियों को उजागर करती है, जहां कैदी संवेदनशील दस्तावेजों तक पहुंच बना लेते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जेलों में डिजिटल लेखा प्रणाली और सख्त निगरानी जरूरी है, ताकि कैदी ‘राइटर’ जैसे पदों पर काम न कर सकें। यूपी की जेलों में पहले भी ऐसे घोटाले हुए हैं, जैसे 2022 में लखनऊ जेल में फर्जी बिलों से लाखों की गड़बड़ी। जिला प्रशासन ने उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट भेजी है, और विभागीय जांच के आदेश संभावित हैं। अगर दोषी साबित हुए, तो जेल कर्मचारियों पर निलंबन और आपराधिक मुकदमा चलेगा।
यह मामला न केवल भ्रष्टाचार की जड़ें दिखाता है, बल्कि गरीब कैदियों के लिए जेल सुधार की जरूरत पर जोर देता है। क्या जेलें अपराधी बनाती हैं या सुधारती हैं? यह बहस फिर छिड़ गई है। अधिक अपडेट्स के लिए बने रहें दैनिक भास्कर के साथ!