आजादी महोत्सव : ब्रिटिश हुकूमत का प्रमुख केन्द्र था चकिया कोठी, अंग्रेज मेजर एआर केंट ने खुद लहराया था तिरंगा

  • ब्रिटिश हुकूमत का प्रमुख केन्द्र था चकिया कोठी, यहां 17 वीं शताब्दी में आए थे अंग्रेज

भाटपार रानी/देवरिया। भाटपार रानी तहसील क्षेत्र का चकिया कोठी आजादी से पूर्व ब्रिटिश हुकूमत का प्रमुख केंद्र था, जहां अंग्रेजों की तूती बोलती थी। यहीं से अंग्रेज समूचे क्षेत्र में अपनी शासन व्यवस्था का संचालन करते थे। वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान यहां का अंतिम प्रशासक अंग्रेज मेजर एआर केन्ट ने खुद अपने हाथों से तिरंगा झंडा लहरा कर भारत का जयकारा लगाया था।

आज भी यहां मौजूद अंग्रेजों का बंगला व टूटी- फूटी इमारतें ब्रिटिश हुकूमत की यादें ताजा करती हैं।गौरतलब है कि भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना के बाद अंग्रेजों ने सम्पूर्ण भारत वर्ष में अपना पांव पसारना शुरू कर दिया था। इसी क्रम में सत्रहवीं शताब्दी में सर्वप्रथम एआरसी वाटसन व टॉमस मार्किन मैकडॉनल्ड नामक अंग्रेज चकिया कोठी में सपरिवार आए और यहां स्याही नदी के तट पर अपनी कोठियां स्थापित किए। तभी से इस जगह के साथ कोठी शब्द जुड़ गया।

अंग्रेज यहीं से क्षेत्र सहित बिहार के सुदूर इलाकों में शासन का संचालन करने लगे।अंग्रेज यहां की 400 एकड़ भू-भाग पर गन्ना,धान,गेहूं,मक्का के अलावा प्रमुख रूप से नील की खेती कराने लगे।अंग्रेजों ने चकिया कोठी में नील बनाने की ब्रिटिश इंडिगो फैक्ट्री स्थापित किया।यहां की बनी नील इंग्लैंड में महंगे दामों पर बिकता था। चकिया कोठी के अंग्रेजों ने गन्ने की खेती को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1903 ई० में प्रतापपुर में एशिया का प्रथम चीनी मिल स्थापित किया।वहीं क्षेत्र के पिछड़ेपन को देखकर अंगेजों ने चकिया कोठी में वर्ष 1926 में एक अस्पताल तथा एक कॉन्वेंट स्कूल की स्थापना किया।

उन्होंने कोठी के समीप तकरीबन तीन सौ मीटर लम्बा व डेढ़ सौ मीटर चौड़ा पोखरा खुदवाया, जो आज भी मौजूद है।वहीं पोखरे में बनी स्नानागार व सीढ़ियां आज भी टूटी-फूटी अवस्था में मौजूद हैं।बताया जाता है कि यहां के प्रमुख अंग्रेज अधिकारी एफ बर्फील के बाद एक अविवाहित अंग्रेज मेजर एआर केन्ट यहां का अंतिम प्रशासक बनकर आया।वह अपनी उदार नीति व मित्रवत व्यवहार के कारण क्षेत्रीय जनता में काफी लोकप्रिय हो गया। वह हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदायों के होली,ईद,दीपावली, मुहर्रम आदि पर्वों के अलवा क्रिसमस डे के मौके पर विभिन्न खेल प्रतियोगिताएं आयोजित कर क्षेत्रीय लोगों को पुरस्कृत करता था।

बताया जाता है कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जगह-जगह अंग्रेजों के खिलाफ बगावत तेज हुआ तथा उनकी कोठियां लूटी जाने लगीं। बावजूद इसके उसका कोई असर चकिया कोठी पर नहीं पड़ा। उस समय पैना,बरहज,गोरखपुर सहित दर्जनों दूर-दराज स्थानों से क्रांतिकारी लाठी डंडे से लैश होकर चकिया कोठी लूटने आ धमके। लेकिन मेजर एआर केन्ट की उदार नीतियों के चलते क्षेत्र के राजपुर,दिसतौली, करजनिया,सिरसिया पवार,पिपरा बघेल,भोपतपुरा आदि गांवों के सैकड़ों लोगों ने बाहरी आंदोलनकारियों द्वारा अंग्रेजों की कोठी को लुटे जाने से बचा लिया।

बताया ये भी जाता है कि अंग्रेज मेजर केन्ट ने कोठी का बचाव करने वाले प्रत्येक लोगों को तीन-तीन सौ रुपए इनाम दिया था।वहीं कोठी का बचाव होने से गदगद अंग्रेज मेजर एआर केन्ट ने खुद अपने हाथों से तिरंगा फहरा कर भारत का जय-जयकारा लगाया था।वह जुलाई 1947 में क्षेत्रीय लोगों को भोजन पर आमंत्रित कर एवं श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कर इंग्लैंड वापस चला गया। आज भी चकिया कोठी स्थित अंग्रेजों की टूटी- फूटी इमारतें ब्रिटिश हुकूमत की यादें ताजा करती हैं।

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