अयोध्या : पार्टी से निष्कासित होने के बाद विधायक अभय सिंह नें सोशल मीडिया पर जनता के बीच रखा अपना पक्ष

अयोध्या। सपा से निष्कासन के बाद शोसल मीडिया पर भावुक पोस्ट कर अपने विचारों को जनता के बीच रखते हुए गोसाइंगंज विधायक अभय सिंह नें लिखा कि मैं अभय सिंह, गोसाईगंज विधानसभा की देवतुल्य जनता द्वारा चुना गया जनप्रतिनिधि हूं, आज एक भारी मन और जागृत आत्मा से यह बात साझा कर रहा हूं।

मैं जिस समाजवादी पार्टी से जुड़ा था, वह डॉ. राम मनोहर लोहिया जी की विचारधारा पर आधारित थी।
डॉ. लोहिया रामायण मेले का आयोजन करते थे और रामचरितमानस का सम्मान करते थे।
वह कहा करते थे — “भारत की आत्मा में राम, कृष्ण और शिव का वास है।”
लेकिन आज वही पार्टी उन लोगों की पक्षधर बन गई है जो रामचरितमानस जैसे पवित्र ग्रंथ को जलाते हैं।

मैंने बार-बार माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से आग्रह किया कि जो नेता रामचरितमानस को फाड़ते और जलाते हैं, उनके खिलाफ कारण बताओ नोटिस तो जारी कीजिए… लेकिन पार्टी ने न कोई कार्यवाही की और न ही उन्हें इस महापाप से रोका।

मेरे हृदय को सबसे बड़ा आघात तब पहुंचा जब राम मंदिर निर्माण के बाद सभी समाजवादी पार्टी विधायकों को दर्शन पर रोक लगा दी गई।
मुझे स्पष्ट रूप से कहा गया — दर्शन न करना, यह पार्टी की गाइडलाइन है।
क्या मैं अयोध्या का बेटा होकर भी अपने आराध्य श्रीराम के दर्शन न करूं?
क्या मेरी आस्था और मेरा धर्म राजनीति से छोटा है?

समाजवादी पार्टी ने PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) का नारा सिर्फ सत्ता पाने के लिए गढ़ा, लेकिन सत्ता में आते ही वह नारा एक वर्ग विशेष और परिवार विशेष के हित में बदल जाता है।
दलित-पिछड़े सिर्फ वोट बैंक बनकर रह जाते हैं।

यह सब देखकर मेरी आत्मा ने सवाल किया —
क्या मैं उस विचारधारा से जुड़ा रहूं जो धर्म, आस्था और न्याय के खिलाफ खड़ी हो चुकी है?

एक से डेढ़ वर्ष तक कोई संवाद नहीं हुआ —
और फिर अचानक पार्टी से निष्कासन कर दिया गया,
वो भी बिना किसी कारण बताओ नोटिस के। क्योंकि यदि नोटिस दिया जाता और मैंने उत्तर दिया होता, तो पार्टी का तथाकथित सेक्युलर चेहरा बेनकाब हो जाता। और तुष्टिकरण की राजनीति जगजाहिर हो जाती।

क्या यही लोकतंत्र है?
क्या यही डॉ. लोहिया के विचारों पर चलने वाली पार्टी है?

समाजवादी पार्टी अब लोकतंत्र नहीं,बल्कि एक परिवार की तानाशाही बन चुकी है।
जहां न आस्था का मान है, न कार्यकर्ताओं का, और न जनप्रतिनिधियों की बात सुनी जाती है।

मेरा जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ है जो देश की आज़ादी के लिए जेल गया,
हमारा परिवार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहा है। मेरे रक्त में देशभक्ति और समाज सेवा के संस्कार हैं।इसीलिए मैं कभी भी देश तोड़ने वाली, समाज को बांटने वालीया धर्म और आस्था को अपमानित करने वाली किसी भी बात को स्वीकार नहीं कर सकता।

मैं गलत का विरोध करता हूं, और करता रहूंगा। भगवान श्रीराम केवल आस्था के नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समरसता के प्रतीक हैं।उन्होंने शबरी के झूठे बेर खाए, निषादराज को गले लगाया, वनवासी और वंचित समाज को सम्मान दिया। पर आज की समाजवादी पार्टी उन्हीं भगवान राम के विरोध में खड़ी हो गई है।

भगवान राम और दल में मुझे चुनना था — मैंने भगवान राम को चुना। मैं अकेला नहीं हूं, समाजवादी पार्टी के अनेक विधायक आज भी भीतर से आहत हैं, लेकिन कुछ कारणों से अभी निर्णय नहीं ले पा रहे हैं।

आज मैं पार्टी से अलग हो रहा हूं, लेकिन मैं अपने धर्म, अपनी संस्कृति, अपनी आत्मा,और अपने आराध्य राम के साथ अडिग खड़ा हूं।

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