
नई दिल्ली। अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने अपने ऐतिहासिक एक्सिओम-4 मिशन से जुड़ी रोमांचक बातें साझा कीं। उन्होंने बताया कि मिशन से पहले उन्हें कठोर प्रशिक्षण से गुजरना पड़ा, जिसमें कृत्रिम वातावरण में जीवन रक्षा के अभ्यास, अंतरिक्ष फोटोग्राफी, और टीम भावना को मजबूत करने के लिए मैक्सिको के समुद्र तट पर कायकिंग जैसी गतिविधियां शामिल थीं।
शुक्ला, जिन्हें उनके सांकेतिक नाम ‘शक्स’ से भी जाना जाता है, 25 जून को अमेरिका के कैनेडी स्पेस सेंटर से प्रक्षेपित ड्रैगन अंतरिक्षयान में सवार होकर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पहुंचे थे। यह मिशन कई बार टलने के बाद सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। उन्होंने बताया कि लॉन्च के दौरान अंतरिक्षयान की ताकत इतनी थी कि ऐसा लगता है जैसे शरीर की हर हड्डी हिल रही हो। सिर्फ 8.5 मिनट में रफ्तार 28,500 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंच जाती है।
15 जुलाई को उनकी वापसी के बाद भारत और पूरी दुनिया में इस मिशन की कामयाबी का जश्न मनाया गया। लखनऊ में जन्मे शुक्ला ISS पर जाने वाले पहले भारतीय बने। नई दिल्ली के सुब्रतो पार्क में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने 20 दिनों के अंतरिक्ष प्रवास के अनुभव सुनाए। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष स्टेशन पर जीवन एक नए घर में रहने जैसा है, जहां खाने, सोने और यहां तक कि वॉशरूम जाने के भी अलग नियम हैं। उनके मुताबिक, सबसे कठिन काम वहीं वॉशरूम का इस्तेमाल करना होता है।
शुक्ला भारतीय वायुसेना के अनुभवी पायलट हैं। 2006 में शामिल हुए और अब तक 2,000 घंटे से अधिक उड़ान भर चुके हैं। उन्होंने सुखोई-30, मिग-29, जगुआर और डोर्नियर-228 जैसे लड़ाकू विमानों को उड़ाया है। 10 अक्तूबर को वह 40 वर्ष के हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि बचपन में वह एक शांत और शर्मीले इंसान थे और राकेश शर्मा की 1984 की अंतरिक्ष यात्रा की कहानियां सुनते हुए बड़े हुए। आज बच्चे उनसे ऑटोग्राफ लेते हैं और वायुसेना के साथी उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने की कतार में लगते हैं।
मिशन पायलट के रूप में शुक्ला की जिम्मेदारी कैप्सूल और उसके डिस्प्ले से इंटरैक्ट करने की थी। उन्होंने बताया कि नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर (ह्यूस्टन) में प्रशिक्षण बेहद कठिन था, क्योंकि अंतरिक्ष में मदद तुरंत नहीं मिलती। इसलिए जमीन पर रहते हुए हर स्थिति से निपटना सीखना पड़ता है। मेडिकल सहायता, इंजीनियरिंग मरम्मत, वैज्ञानिक प्रयोग, फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी – सबका प्रशिक्षण उन्हें मिला।
ISS पर उन्होंने भारत की ओर से तैयार किए गए सात माइक्रोग्रैविटी प्रयोग किए, जो जीवन विज्ञान, कृषि, स्पेस बायोटेक्नोलॉजी और मानसिक क्षमताओं से जुड़े थे। उन्होंने कहा कि फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के लिए उन्होंने करीब 20 क्लासेस लीं, ताकि अंतरिक्ष के अनुभवों को कैमरे में कैद कर वापस ला सकें। भारत के खूबसूरत नज़ारों को देखकर उन्होंने कहा – “यह सिर्फ एक भारतीय की बात नहीं, कोई भी अंतरिक्ष यात्री भारत को अंतरिक्ष से देखकर यही कहेगा कि यह दुनिया का सबसे शानदार दृश्य है।”
उन्होंने यह भी बताया कि अंतरिक्ष में वह हर दिन 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखते थे। टीम भावना पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष में उड़ान टीम वर्क से ही संभव है। “अगर आप टीम खिलाड़ी नहीं हैं, तो अंतरिक्ष में जाने के योग्य नहीं हैं,” उन्होंने कहा।