
लखनऊ। बिहार में छठ पूजा के मौके पर लाखों श्रद्धालुओं को ट्रेनों में भारी भीड़ और अव्यवस्था का सामना करना पड़ रहा है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि भाजपा-जेडीयू सरकार ने छठ महापर्व के पवित्र अवसर पर समूचे बिहार की धार्मिक भावनाओं को गहरी चोट पहुंचाई है। यह भी सवाल किया गया कि क्या नीतीश व मोदी जी ने कांग्रेस की ‘जाति-जनगणना’ की मांग को “अर्बन नक्सल एजेंडा” कहकर दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों और आदिवासियों के हक़ का अपमान नहीं किया था
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडे एवं यूपी के प्रभारी ने आज पत्रकार वार्ता में बेहद गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा–जेडीयू सरकार ने छठ महापर्व के पवित्र अवसर पर समूचे बिहार की धार्मिक भावनाओं को गहरी चोट पहुंचाई है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडे ने कहा, देश में कुल 13,452 यात्री ट्रेनें ही हैं, तो फिर बिहार के लिए 12,000 ट्रेनों की झूठी खबर क्यों फैलाई गई? उन्होंने कहा कि दिल्ली, मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, हैदराबाद, लुधियाना, अमृतसर और बेंगलुरु जैसे कई शहरों से आने वाली विशेष ट्रेनों में यात्री फर्श पर और शौचालयों में रात गुजार रहे हैं।
कांग्रेस की मांग है कि बिहार आने-जाने वाली सभी प्रमुख रूटों पर तत्काल अतिरिक्त ट्रेनें चलाई जाएं। रेलवे स्टेशनों पर राहत शिविर, पेयजल और सुरक्षा की व्यवस्था की जाए। बिहार के धार्मिक यात्रियों के साथ इस अमानवीय व्यवहार के लिए प्रधानमंत्री व रेल मंत्री सार्वजनिक माफी मांगें।
अविनाश पांडे ने कहा, छठ केवल पर्व नहीं, यह बिहार की आत्मा है। जिस सरकार की नीतियां आस्था को अपमानित करें और तीर्थ यात्रियों को यातनाएं दें – वह सरकार नैतिक रूप से बिहार की जनता के लिए दिवालिया हो चुकी है।
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि ख़ुद केंद्र सरकार के ई-श्रम पोर्टल पर बिहार से पलायन कर मजदूरी के लिए मजबूर किए गए लोगों की संख्या 3 करोड़ 18 लाख दर्ज है। और जब वे अपनी पूरी आस्था के साथ घर लौट रहे हैं, तब केंद्र सरकार ने छठ पूजा जैसे महापर्व के दौरान बिहार की गरिमा और श्रद्धा को अपमानित किया है।
दिल्ली, मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, हैदराबाद, लुधियाना, अमृतसर और बेंगलुरु जैसे कई शहरों से आने वाली विशेष ट्रेनों में यात्री फर्श पर और शौचालयों में रात गुज़ार रहे हैं। यह दृश्य बिहार की आत्मा को झकझोर देने वाला है।
मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल किए गए हैं…
सवाल : कर्पूरी ठाकुर जी ने 1978 में पिछड़ों को 26 प्रतिशत आरक्षण देकर सामाजिक न्याय की नींव रखी थी। क्या आपके गठबंधन पार्टी के वैचारिक पूर्वज जनसंघ और आरएसएस ने उसी आरक्षण नीति का खुलकर विरोध नहीं किया था ? क्या सड़कों पर उतरकर “ये आरक्षण कहां से आई, कर्पूरी के माई बियाई” जैसे अपमानजनक नारे नहीं लगाए थे? और क्या कर्पूरी ठाकुर जी की सरकार नहीं गिराई थी?
क्या नीतीश जी यह मानेंगे कि वह विरोध कर्पूरी ठाकुर और पिछड़े समाज दोनों का अपमान था? क्या नीतीश आज उस ऐतिहासिक गलती के लिए जनसंघ-भाजपा की ओर से माफ़ी मांगेंगे?
क्या यह सही नहीं है कि बिहार की कर्पूरी ठाकुर की पिछड़ा वर्ग आरक्षण नीति (1978) के बाद आरएसएस-जनसंघ गुट के प्रमुख नेता कर्पूरी ठाकुर के खिलाफ़ खड़े नहीं हुए थे? क्या सड़कों पर हिंसक तांडव नहीं किया था?
क्या कर्पूरी ठाकुर की सरकार नहीं गिराई थी? क्या निम्न जनसंघ–आरएसएस के प्रमुख नेताओं की सरकार गिराने में अहम भूमिका नहीं थी? कैलाशपति मिश्रा:
बिहार जनसंघ के संस्थापक, कर्पूरी ठाकुर सरकार में वित्त मंत्री; मूल रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के स्वयंसेवक रहे। जनता पार्टी टूटने के बाद 1980 में जब भारतीय जनता पार्टी (BJP) बनी, वे बिहार के पहले प्रदेश अध्यक्ष बने। ताराकांत झा:जनसंघ–जनता पार्टी–BJP के वरिष्ठ नेता, विधान परिषद के चेयरमैन। सुरजदेव सिंह: जनसंघ के संगठन मंत्री और विधायक, आरएसएस प्रचारक।
ये भी सवाल किए गए कि क्या नीतीश जी मोदी जी ने कांग्रेस की ‘जाति-जनगणना’ की मांग को “अर्बन नक्सल एजेंडा” कहकर दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों और आदिवासियों के हक़ का अपमान नहीं किया था ?
नीतीश जी मोदी जी ने बिहार के जातिगत सर्वे के बाद पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के आरक्षण को 65% करने के विधानसभा प्रस्ताव को 9वीं अनुसूची में क्यों नहीं डाला यह सवाल आप जैसे उनसे पूछेंगे ? उन्होंने आरक्षण में अड़चन क्यों डाली? क्या नीतीश जी मोदी जी से पूछेंगे कि यूपीए सरकार के वक्त की गई जाति जनगणना के आंकड़े क्यों छुपाए? अब तक जाति जनगणना क्यों नहीं कराई?










