
Aryabhatt Life Facts : ‘जब जीरो दिया मेरे भारत ने, दुनिया को तब गिनती आई…’ मनोज कुमार की फिल्म पूरब और पश्चिम में फिल्माया गया यह गीत भारत के उस स्वर्णिम इतिहास को दर्शाता है, जो भारत के महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने गढ़ा था। गणित को नई पहचना भारत में जन्मे महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने दी थी, यह हर कोई जानता है। फिर वह शून्य हो, दशमलव हो या फिर पाई हो, गणित के मूल आधारों का जन्म भारत की भूमि से ही हुआ है। मगर शायद ही आप जानते होंगे कि बिहार के पटना जिले के कुसुमपुर में जन्मे महान गणितज्ञ आर्यभट्ट के जीवन से जुड़े वो तथ्य, जिसने गणित को नई दिशा दी।
आर्यभट्ट ने एक किताब भी लिखी थी, जिसे ‘आर्यभटीय’ कहा जाता है। उन्होंने खगोल विज्ञान में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसमें पाई के मान की गणना भी शामिल है। गणित में आर्यभट्ट का सबसे महत्वपूर्ण योगदान बीजगणितीय विधियों का विकास था। बीजगणित गणित की एक शाखा है जो समीकरणों और अभिव्यक्तियों में हेरफेर करने से संबंधित है। उन्होंने शून्य की अवधारणा को यह महसूस करके विकसित किया कि संख्या शून्य का उपयोग किसी संख्या की अनुपस्थिति को दर्शाने के लिए किया जा सकता है। उन्होंने यह भी दिखाया कि शून्य का उपयोग गणितीय समीकरणों में प्लेसहोल्डर के रूप में किया जा सकता है।
आर्यभट्ट के योगदान
आर्यभट्ट का समय गुप्त साम्राज्य के दौरान था, जो विज्ञान और गणित के लिए एक सुनहरा युग माना जाता है। वे पहले भारतीय गणितज्ञ थे जिन्होंने शून्य का प्रयोग किया।
आर्यभट्ट ने ‘आर्यभटीय’ नामक एक प्रमुख ग्रंथ लिखा, जिसमें गणित, खगोल विज्ञान, और तंत्रिका विज्ञान से संबंधित महत्वपूर्ण ज्ञान है। इस ग्रंथ में उन्होंने त्रिकोणमिति की अवधारणाओं का भी विस्तृत वर्णन किया।
आर्यभट्ट ने पृथ्वी के गोल आकार और उसकी धुरी पर घूमने की बात को पहली बार स्पष्ट रूप से बताया। उन्होंने बताया कि पृथ्वी के घूमने से रात और दिन का निर्माण होता है।
उन्होंने पाई (π) का मान 3.1416 निर्धारित किया, जो कि उस समय के लिए एक बहुत सटीक मान था। उनके गणितीय कार्य में अंकगणित और बीजगणित का भी महत्वपूर्ण योगदान था।
आर्यभट्ट ने भारत में आनुपातिक और दशमलव प्रणाली का प्रचार किया। उन्होंने ईश्वर की संगणना के लिए एक कोड विकसित किया, जिसे आज ‘आर्यभट्टोट्टक’ के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने ग्रहों की गति और सूर्य तथा चंद्रमा के eclipses (ग्रहण) की गणना के लिए समीकरण विकसित किए। उनका मानना था कि चंद्रमा और ग्रह सूर्य की रोशनी को प्रतिबिंबित करते हैं।
आर्यभट्ट की विद्या केवल गणित और खगोल विज्ञान तक सीमित नहीं थी, उन्होंने Ayurveda और चिकित्सा में भी योगदान दिया।
दशमलव स्थान: आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली का आविष्कार किया और शून्य को स्थानधारक के रूप में प्रयोग किया ।
वह पहले 10 दशमलव स्थानों के नाम बताते हैं और दशमलव का उपयोग करके वर्ग और घनमूल प्राप्त करने के लिए एल्गोरिदम देते हैं।