उत्तराखंड में सेब की खेती ने बदली जीवन की दिशा

उत्तराखंड में दो किसानों ने सेब की खेती के जरिए अपने जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं। धर्मेन्द्रनाथ गोस्वामी और कमल गिरी ने कठिनाइयों को मात देकर न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार किया, बल्कि अपने समुदाय के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बने।

धर्मेन्द्रनाथ गोस्वामी, जो चम्पावत जिले के दुधपोखरा गांव में रहते हैं, ने कुछ साल पहले सब्जियों की खेती से शुरुआत की थी। उन्हें उनके पिता से प्रेरणा मिली, जो एक सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। धर्मेन्द्रनाथ ने प्रगति की चाह में हाल ही में सेब की खेती करने का फैसला लिया। उन्‍नति एप्‍पल पहल आनंदना, द कोका-कोला इंडिया फाउंडेशन और इंडो-डच हॉर्टिकल्‍चर टेक्‍नोलॉजीस के बीच एक भागीदारी है। इसमें धर्मेन्‍द्रनाथ को खेती की उन्‍नत तकनीकों जैसे कि अल्‍ट्रा-हाई डेंसिटी प्‍लांटेशन (यूएचडीपी) और ड्रिप इरिगेशन के बारे में पता चला। यह तकनीकें पारंपरिक विधियों से काफी अलग थीं और ये किसानों की पैदावार बढ़ाती हैं और पर्यावरण को भी बचाने का काम करती हैं।

धर्मेन्द्रनाथ की मेहनत रंग लाई, और उन्होंने 3-4 क्विंटल सेब की पैदावार की, जिससे उन्हें लगभग 10,000 रुपये की आमदनी हुई। इस सफलता से न केवल उनके परिवार की आर्थिक स्थिरता में सुधार हुआ, बल्कि उनके पड़ोसी भी उनसे प्रेरित होकर सेब की खेती में रुचि लेने लगे। आज धर्मेन्द्रनाथ अपने बगीचे को और भी विस्तार देने की योजना बना रहे हैं और अपनी मेहनत और नवाचार की बदौलत एक सफल किसान के रूप में उभरे हैं।

कमल गिरी, जो 33 वर्ष के हैं, उत्तराखंड की पहाड़ियों में पारंपरिक खेती के संघर्षों का सामना कर रहे थे। उनकी पारंपरिक फसलों से होने वाली आय उनके परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने में नाकाफी थी। लेकिन तीन साल पहले प्रोजेक्ट “उन्नति एपल” के माध्यम से उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ आया। उन्हें 600-700 सेब के पौधे मुफ्त में दिए गए

और खेती की आधुनिक तकनीकें सिखाई गईं। कमल ने अपनी जमीन को सेब के बगीचे में बदल दिया और अपनी कड़ी मेहनत से 500 पौधों से 7 क्विंटल सेब की पैदावार की। यह सेब 180 रुपये प्रति किलो के भाव में बिके, जिससे उनकी आमदनी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। इस सफलता से उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ, और गांव के अन्य किसानों के लिए भी नए रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए।

कमल ने रागी जैसी पारंपरिक फसलों के महत्त्व को समझते हुए सेब की खेती को एक नए विकल्प के रूप में अपनाया। आज, उनका पूरा परिवार इस बगीचे में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है, और उन्होंने कई ग्रामीणों को इस उपक्रम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया है।

उत्तराखंड में धर्मेन्द्रनाथ गोस्वामी और कमल गिरी की सफलता केवल उनके व्यक्तिगत जीवन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे उत्तराखंड के किसानों के लिए एक नई दिशा और आशा का प्रतीक है। ये इस बात का प्रमाण हैं कि सही मार्गदर्शन और तकनीकी सहयोग से पारंपरिक खेती के सीमित विकल्पों से बाहर निकलकर कैसे नई संभावनाओं को साकार किया जा सकता है।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें