
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने बुधवार को एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि लोकतंत्र में संविधान ही सर्वोच्च है, संसद नहीं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के तीनों अंग – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका – सभी संविधान के अधीन हैं और उन्हें उसकी सीमाओं में रहकर कार्य करना होता है।
अमरावती में बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में बोलते हुए सीजेआई गवई ने कहा, “कुछ लोग संसद को सर्वोपरि मानते हैं, लेकिन यह सही नहीं है। संविधान के रहते कोई भी संस्था सर्वोच्च नहीं हो सकती। संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, पर इसकी मूल संरचना में बदलाव की अनुमति नहीं है। यही संविधान की ताकत और इसकी सर्वोच्चता को दर्शाता है।”
केसवानंद भारती केस का दिया उदाहरण
मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ‘केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य’ का उल्लेख करते हुए बताया कि 1973 में ही सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया था कि संविधान की मूल संरचना को नहीं बदला जा सकता। संसद चाहे तो संशोधन कर सकती है, लेकिन संविधान की आत्मा को नहीं छू सकती। उन्होंने कहा कि यह निर्णय आज भी भारतीय लोकतंत्र की नींव में एक मजबूत स्तंभ है।
“आश्रय का अधिकार सर्वोच्च” – बुलडोजर कार्रवाई पर टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश गवई ने हाल ही में लिए गए बुलडोजर कार्रवाई से जुड़े फैसले का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि “कानून के बिना किसी भी नागरिक के घर को तोड़ना असंवैधानिक है। आश्रय का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जिसे बलपूर्वक नहीं छीना जा सकता।” यह बयान उस समय खास मायने रखता है जब हाल के वर्षों में अवैध निर्माण या अपराध के नाम पर कई राज्यों में घर गिराने की घटनाएं हुई हैं।
सीजेआई ने कहा कि वह प्रचार से नहीं, अपने फैसलों से अपनी बात रखते हैं। उन्होंने कहा कि “एक न्यायाधीश की स्वतंत्रता का मतलब सिर्फ सरकार के खिलाफ फैसला देना नहीं होता, बल्कि संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा दिखाना होता है। मेरा प्रयास हमेशा रहा है कि मैं अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान रहूं और संविधान की गरिमा को बनाए रखूं।”