इंदौर साहित्य महोत्सव 2025 में अनीश कंजीलाल ने लेखन कला के रहस्य किए उजागर

इंदौर साहित्य महोत्सव 2025 के ग्यारहवें संस्करण में फेटलेस 13 और 11 ऑरेकल्स के प्रख्यात लेखक अनीश कंजीलाल ने अपनी प्रेरक उपस्थिति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। समकालीन साहित्य की दुनिया में एक सम्मानित नाम, कंजीलाल राजस्थान पत्रिकार साहित्य पुरस्कार (2009), नेशनल एजुकेशन फोरम से बेस्ट एजुकेटर अवॉर्ड (2024) और कोलकाता लिटरेरी कार्निवल में बेस्ट पोएट अवॉर्ड (2025) जैसे अनेक सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं। साहित्यिक उपलब्धियों के साथ-साथ वे एक प्रतिष्ठित शिक्षक भी हैं और एड्यूकेयर – द इंस्टिट्यूट के संस्थापक-निदेशक हैं, जहां वे सैकड़ों विद्यार्थियों को मार्गदर्शन देते हैं।

“राइटिंग टूलकिट” पर केंद्रित सत्र में बतौर विशेष पैनलिस्ट आमंत्रित कंजीलाल ने रचनात्मक प्रक्रिया को बेहद रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। जब उनसे पूछा गया कि लेखन उनके लिए कैथार्सिस कैसे बनता है, तो उन्होंने स्वयं को एक “विद्रोही स्वभाव” का व्यक्ति बताया—जो पारंपरिक लेखन ढर्रों को चुनौती देता है और असहमतियों व असामान्यता में ही अपनी रचनात्मकता ढूंढता है। यही मानसिकता, उन्होंने कहा, उन्हें सीमाओं को तोड़ने और मनोवैज्ञानिक व भावनात्मक गहराई से भरे कथानक रचने की शक्ति देती है।

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अपने सत्र के एक बौद्धिक रूप से समृद्ध हिस्से में उन्होंने दर्शकों से अल्बर्ट कामू के सिसिफस की कल्पना करने को कहा—एक ऐसा प्रतीक जो अनवरत संघर्ष और पुनरावृत्ति के बावजूद दृढ़ता का प्रतिनिधित्व करता है। इसी से उन्होंने फ्रांज काफ्का की ओर मोड़ लिया, जिन्हें उन्होंने रूपक में “रॉबर्ट फ़्रॉस्ट की बर्चेस पर झूलते हुए” प्रस्तुत किया—यथार्थ और कल्पना का अद्भुत मेल। यह साहित्यिक यात्रा आगे रवींद्रनाथ टैगोर की पोस्टमास्टर तक पहुंची और अंत में वेद व्यास की भगवद्गीता की आध्यात्मिक अनुभूति पर पूर्ण हुई।

विभिन्न युगों, विचारों और ग्रंथों का यह अनूठा संगम कंजीलाल की साहित्यिक पहचान का मूल तत्व है। उन्होंने कहा कि संदर्भों और कथाओं को एक साथ पिरोने का उनका तरीका ही उनकी लेखन शैली को विशिष्ट बनाता है—एक ऐसी शैली जो भावनात्मक रूप से समृद्ध और मनोवैज्ञानिक रूप से गहन है। उन्होंने जोर देकर कहा कि साहित्य में विषय भले ही दोहराए जाएँ, परंतु लेखक अपनी व्याख्या, भटकाव और प्रस्तुति से ही उसे नया रूप देता है—यह ही एक लेखक की सच्ची “टूलकिट” है।

साहित्य के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, “बाज़ कई आसमान जानता है, लेकिन शिकार वहीं करता है जो उसे भोजन देता है”—अर्थात लेखक को अपनी सबसे उपयुक्त रचनात्मक जगह स्वयं खोजनी होती है।

राइटर’s ब्लॉक पर सवाल के जवाब में उन्होंने युवा लेखकों को कठोर दिनचर्या के दबाव से दूर रहने की सलाह दी। लेखन, उनके अनुसार, “बुखार की तरह होता है”—स्वतः आता है, इसे मजबूर नहीं किया जा सकता। उन्होंने अर्नेस्ट हेमिंग्वे की अ फेयरवेल टू आर्म्स का उदाहरण दिया, जिसके 36 अलग-अलग अंत हैं—यह दर्शाने के लिए कि लेखन बंधन नहीं, स्वतंत्रता का कार्य है।

उन्होंने युवा लेखकों को व्यापक रूप से पढ़ने, कड़े संपादन का अभ्यास करने और रोज़मर्रा के पलों से भी कहानियाँ निकालने की कला विकसित करने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि सड़क पर पड़े एक मृत चूहे को देखने मात्र से उन्होंने एक कहानी रच दी थी। अपनी एक विशिष्ट तकनीक साझा करते हुए उन्होंने कहा कि वे कथानक में “स्तब्धता का तत्व” जोड़ना पसंद करते हैं—पाठक को सहजता में ले जाकर अचानक अंधेरे में धकेल देने वाला अनुभव, जो कहानी को मन में घर कर देता है।

उन्होंने यह भी आग्रह किया कि भारतीय शिक्षण संस्थानों में स्थानीय और क्षेत्रीय साहित्यकारों के कार्यों को शामिल किया जाना चाहिए, ताकि विद्यार्थियों का परिचय केवल पश्चिमी साहित्य तक सीमित न रहकर भारतीय रचनाकारों की सशक्त आवाज़ों से भी हो।

सत्र के अंत में कंजीलाल ने युवा लेखकों से आग्रह किया कि वे अपने विषय की गुणवत्ता को प्राथमिकता दें। पुरस्कार और प्रमाणपत्र बाहरी चमक मात्र हैं; लेखक की यात्रा को वास्तव में परिभाषित करता है उसका निखरता हुआ कौशल।

दर्शन, साहित्यिक आलोचना और रचनात्मक सुझावों के अद्भुत संगम से भरपूर इस सत्र ने दर्शकों को प्रेरित किया कि वे अपने लेखन में खोज, प्रयोग और उन्नयन की दिशा में साहसपूर्वक कदम बढ़ाएँ।

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