आंगनबाड़ी घोटाला: जब जिम्मेदार ही निकले बेईमान, तो भरोसा किस पर?

भास्कर ब्यूरो

  • भर्ती प्रक्रिया पर सवाल फर्जी दस्तावेजों का जाल
  • वीरवती को नौकरी नहीं मिली, मिली तो सिर्फ ठगी और अपमान

बरेली। जैसे संवेदनशील जिले में सरकारी नौकरी के नाम पर रिश्वतखोरी का जो घिनौना चेहरा सामने आया है, उसने न केवल प्रशासन की नाकामी को उजागर किया है, बल्कि यह भी साबित कर दिया है कि बाल विकास जैसी अहम योजनाओं के जिम्मेदार अफसर भी भ्रष्टाचार के दलदल में गले तक डूबे हैं। आंगनबाड़ी भर्ती में बाल विकास परियोजना अधिकारी (CDPO) कृष्ण चंद्र का 70 हजार रुपये रिश्वत लेते वीडियो वायरल होने से शासन-प्रशासन में हड़कंप मच गया है। मगर सवाल यह है कि यह अकेले कृष्ण चंद्र की करतूत है या फिर भ्रष्टाचार की पूरी श्रृंखला का महज एक सिरा?

जिस पद पर बैठकर बच्चों और महिलाओं के विकास की योजना संचालित करनी चाहिए, उसी कुर्सी पर बैठे एक अफसर का रिश्वत लेते वीडियो सामने आना बेहद शर्मनाक है। टिटौली गांव की रहने वाली वीरवती नाम की महिला अभ्यर्थी से नौकरी दिलाने के नाम पर 70 हजार रुपये की मांग करना और फिर अपनी गाड़ी में बैठाकर रिश्वत लेना—क्या इसे सामान्य प्रशासनिक लापरवाही मान लिया जाए? वीरवती ने जब पैसे दिए, तब वह असहाय थी, परंतु उसने जिस बहादुरी से मोबाइल में वीडियो बनाकर यह घोटाला उजागर किया, वह समाज के लिए एक मिसाल है। यह मामला केवल भ्रष्टाचार का नहीं है, यह इंसानियत की भी हत्या है। वीरवती जैसे सैकड़ों अभ्यर्थी जो ईमानदारी से अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की वजह से ठगे जाते हैं। नवंबर 2024 में जब भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई, तब वीरवती ने पूरी उम्मीद के साथ आवेदन किया था। लेकिन जब चयन सूची जारी हुई, तो उसका नाम नदारद था। पूछने पर सीडीपीओ कृष्ण चंद्र ने फॉर्म में खामी का बहाना बनाकर बात टाल दी। सोचिए, रिश्वत लेने के बाद भी नौकरी न देना—यह धोखाधड़ी नहीं तो और क्या है?मुख्य विकास अधिकारी (CDO) जग प्रवेश ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कार्रवाई तो जरूर की।

वीडियो देखने के बाद उन्होंने बाल विकास विभाग के निदेशक व प्रमुख सचिव को रिपोर्ट भेज दी और सीडीपीओ से चार्ज हटा दिए। मगर क्या इतनी कार्रवाई काफी है? क्या यह मामला सिर्फ चार्ज हटाने तक सीमित रह जाएगा? या इस भ्रष्ट अधिकारी को जेल की सलाखों के पीछे भी भेजा जाएगा? अभी तक एफआईआर की जानकारी सामने नहीं आई है, जो संदेह पैदा करता है कि कहीं इस पर भी ‘समझौते’ की कोशिश तो नहीं हो रही?

सीडीपीओ का रिश्वत लेना ही इस पूरी भर्ती प्रक्रिया की पोल खोलने के लिए काफी नहीं था कि अब फर्जी दस्तावेजों का मामला भी सामने आ गया। डीपीओ (जिला कार्यक्रम अधिकारी) मनोज कुमार ने स्वीकार किया कि कई चयनित अभ्यर्थियों के आय, जाति और निवास प्रमाण पत्रों की जांच करवाई जा रही है। यदि ये फर्जी साबित हुए, तो नियुक्तियां रद्द होंगी। मगर यह सवाल फिर उठता है कि जब इतनी बड़ी संख्या में फर्जी दस्तावेज सामने आ रहे हैं, तो क्या यह केवल एक या दो अधिकारियों का खेल है? या पूरी प्रक्रिया ही गंदी साजिश का हिस्सा रही है?

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