
लखनऊ : समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भारत चीन के नए रिश्ते बढ़ाने पर भाजपा सरकार की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि हिंदी चीनी भाई-भाई के नारे का हश्र हम 1962 में देख चुके हैं। इस लड़ाई में हमारे 4 हजार सैनिक अफसर कैद कर लिए गए थे, जिन्हें तमाम यातनाएं दी गई थी। इससे पूर्व 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था।
उन्होंने कहा कि भाजपा-आरएसएस ने भारत की विदेश नीति को बर्बाद कर दिया है। दुनिया के तमाम मित्र देशों ने साथ छोड़ दिया है। अभी आपरेशन सिंदूर के दौरान पड़ोसी देश भी साथ नहीं खड़े हुए। तब हमलावर पाकिस्तान को चीन हर प्रकार की मदद कर रहा था। जिस अमेरिका से बड़ी दोस्ती थी, उसने व्यापार पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने के साथ ही और कड़े आर्थिक प्रतिबंधों की धमकी दी है। घबड़ाई भाजपा सरकार अब चीन की शरण में पहुंच गई है।
जिसका ट्रैक रिकार्ड भारत से दुश्मनी का ही रहा है।
अखिलेश यादव ने कहा कि चीन की निगाहें हमेशा भारत भूमि पर रही है। उसने रिजंगला में भारत के वार मेमोरियल को तोड़ दिया। फाइव फिंगर छीन लिए। पेंगान लेक पर कब्जा कर लिया। भारत की हजारों वर्ग मील जमीन उसके कब्जे में है। चीन-भारत के अरूणाचल प्रदेश के बड़े हिस्से को भी अपना बताता है। गलवान घाटी और अन्य महत्वपूर्ण सैनिक क्षेत्रों पर भी उसने अपनी सैन्य गतिविधियों पर रोक नहीं लगाई है। ऐसे में भाजपा सरकार का यह कहना कि ‘नहीं कोई घुसा था, नहीं कोई घुसा है’ का क्या अर्थ है? फिर दोनों देशों में वार्ताएं किस लिए हो रही है। अखिलेश यादव ने कहा कि चीन अमरीकी आर्थिक दबावों के आगे अपने को लाचार पा रहा है। भारत के व्यापारिक प्रतिष्ठानों के सामने बंदी की तलवार लटक रही है। निर्यात ठप्प है। आयात बहुत महंगा हो गया है।
सपा प्रमुख ने कहा कि भारत अमेरिका से व्यापार में फायदा उठा रहा था जबकि चीन से व्यापार में भारत को घाटा हो रहा है। चीन के सामान से भारत के बाजार पहले से पटे पड़े हैं अब नई डील से तो उसका भारतीय बाजार में पूरा दखल हो जाएगा। चीनी सामानों का आयात बढ़ता जा रहा है। भारतीय उद्योगों की चीन पर निर्भरता है। ऐसे में स्वदेशी का संकल्प कितना माने रखेगा?
चीन विस्तारवादी देश हैं उसकी महत्वाकांक्षा अपनी सीमाओं के लगातार विस्तार की है।
कई पड़ोसी देशों को आर्थिक सहायता के नाम पर कर्ज में डुबोने का काम चीन पहले ही कर चुका है। भारत से जबानी सहयोग और मैत्री के रिश्ते निभाने वाले चीन ने अब तक अपने कब्जे वाले भारतीय भू-भाग पर बातचीत का साफ रूख नहीं किया है। तिब्बत हड़प लेने के बाद अब वह अरूणाचल, लेह, लद्दाख में भी पैर पसारना चाहता है। उसकी इन चालों की वजह से उस पर तनिक भी भरोसा नहीं किया जा सकता है कि वह नेक नीयती से भारत का साथ देगा।
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