
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की सैन्य कार्रवाई ने यह स्पष्ट कर दिया कि आतंकवादी हमलों का अब कोई ‘लो इंटेंसिटी’ जवाब नहीं होगा. पहलगाम हमले के बाद भारत ने जिस तीव्रता और सटीकता से पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, उसने न केवल इस्लामाबाद को चौंकाया बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी दिखा दिया कि भारत अब केवल बयान नहीं, कार्रवाई से जवाब देगा.
डोनाल्ड ट्रंप ने युद्धविराम की घोषणा कर दुनिया को चौंकाया, लेकिन भारत ने तुरंत स्पष्ट किया कि युद्धविराम की पहल पाकिस्तान से आई थी, न कि अमेरिका की मध्यस्थता से. ट्रंप का दावा एक राजनीतिक स्टंट ज़्यादा था, ताकि वे खुद को वैश्विक संकटों में निर्णायक हस्तक्षेपकर्ता के रूप में पेश कर सकें. ठीक वैसे ही जैसे वे गाजा और यूक्रेन संकट में करते रहे हैं.
बीजिंग की बेचैनी
पाकिस्तान ने इस्लामाबाद-वाशिंगटन हॉटलाइन से ट्रंप को चुना, जिससे बीजिंग को गहरी असुविधा हुई. ‘सदाबहार मित्र’ कहलाने वाले चीन ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी. चीन को यह रास नहीं आया कि उसके सामरिक सहयोगी पाकिस्तान ने अमेरिका से युद्धविराम की मदद मांगी और बीजिंग को नजरअंदाज किया. यह दक्षिण एशिया में चीन के प्रभाव के लिए एक झटका था.
पाकिस्तान की दोहरी बयानबाज़ी
पाकिस्तान ने पहले ट्रंप के दावे की पुष्टि करते हुए बयान दिया और फिर चीन के दबाव में बीजिंग से बातचीत की सूचना जारी की. यह दोहरी रणनीति दिखाती है कि इस्लामाबाद अब किसी एक ध्रुव पर स्थिर नहीं रह सकता. उसे अमेरिका और चीन के बीच संतुलन साधना पड़ता है, लेकिन नतीजा उसकी विश्वसनीयता की क्षति के रूप में सामने आता है.
ड्रोन हमलों से युद्धविराम तक चीन का प्रभाव
चीन के हस्तक्षेप के बाद जब पाकिस्तान ने ड्रोन भेजने बंद किए, तो यह स्पष्ट हो गया कि युद्धविराम में बीजिंग की भूमिका केवल कूटनीतिक नहीं, रणनीतिक भी थी. कुछ विशेषज्ञ इसे चीन को शांत करने की कोशिश मानते हैं, ताकि दक्षिण एशिया में उसकी प्रासंगिकता बनी रहे और पाकिस्तान पर उसका प्रभाव बना रहे.
आतंकवाद पर ज़ीरो टॉलरेंस
भारत ने पाकिस्तान के डीजीएमओ से आए युद्धविराम अनुरोध पर प्रतिक्रिया दी, लेकिन अपनी शर्तें स्पष्ट रखीं. आतंकवाद के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस. भारत ने साफ कह दिया कि कूटनीतिक दबाव, सैन्य मुस्तैदी और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की जवाबदेही जारी रहेगी, चाहे युद्धविराम हो भी जाए.
भारत-अमेरिका संवाद का असली स्वरूप
अमेरिका भले ही मध्यस्थ की भूमिका जताता रहा हो, लेकिन भारत ने स्पष्ट किया कि दोनों देशों के बीच हुई चर्चाएं केवल सूचनात्मक थीं. न तो कोई व्यापारिक सौदा युद्धविराम से जुड़ा था, न ही कोई अमेरिकी दबाव. नई दिल्ली ने बता दिया कि पाकिस्तान से बातचीत द्विपक्षीय ढांचे के तहत ही हो सकती है, किसी तीसरे पक्ष की दखल स्वीकार्य नहीं.
युद्धविराम के पीछे असली ताकत
युद्धविराम का असली कारण भारत की सैन्य और रणनीतिक तैयारी थी. ऑपरेशन सिंदूर की सफलता, सीमा पर डटे भारतीय सैनिकों की निर्णायक उपस्थिति और अंतरराष्ट्रीय समर्थन ने पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर किया. ट्रंप के दावे हों या चीन की चिंता, असल में इस युद्धविराम की नींव भारत की शक्ति और संकल्प ने रखी.