
बस्ती। 25 साल पुराने प्रकरण में सरकार की नींद खुली और एक कर्मचारी को नौकरी से बर्खास्त कर दिया, मगर जैसे ही मामला कोर्ट में पहुंचा तो महज 25 घंटे में जज ने सरकार के फैसले को गलत मानते हुए उस आदेश को ही खारिज कर दिया जिसमें कर्मचारी की नौकरी चली गई थी, अब बैकफुट पर आने के बाद शासन की तरफ से दोबारा उस कर्मचारी को नौकरी पर रख लिया गया है। आज हम आपको एक ऐसे मामले से रूबरू कराएंगे, जिसने एक महिला कर्मचारी के 25 साल के करियर पर सवाल खड़े कर दिए थे।
लेकिन अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक महत्वपूर्ण फैसले ने उन्हें बड़ी राहत दी है। पूरा मामला उप कृषि निदेशक कार्यालय में तैनात वरिष्ठ सहायक शची वर्मा से जुड़ा हुआ है, जिन्हें 25 साल की सेवा के बाद बर्खास्त कर दिया गया था।
लिपिक शची वर्मा को पिछले महीने, 21 जुलाई को अचानक नौकरी से निकाल दिया गया था। वह कृषि विभाग में अपने पिता सत्येंद्र नाथ वर्मा की मृत्यु के बाद मृतक आश्रित कोटे से नियुक्त हुई थीं। उनके पिता जिला कृषि अधिकारी कार्यालय में वरिष्ठ सहायक थे, जिनका निधन जुलाई 1997 में हुआ था।
इसके बाद, उनकी माता राधा वर्मा, भाई नवीन और बहन ऋतु वर्मा ने अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया, जिसके आधार पर 29 अप्रैल 1999 को शची को कनिष्ठ सहायक के पद पर नियुक्ति मिली थी। 1974 के संशोधन शासनादेश को 1999 में लागू हुआ और शची वर्मा ने इस आदेश के जारी होने से 20 दिन पहले आवेदन कर दिया था, सारे कागजी कार्रवाई पूरी करने में विभाग को 20 दिन से अधिक लग गए और इसी को आधार बनाकर अधिकारियों के शची को बर्खास्त कर दिया था।
शची की बर्खास्तगी का कारण एक शिकायत थी। गदहाखोर गांव के निवासी राज कुमार उर्फ पंडित ने शिकायत की थी कि जब शची के पिता की मृत्यु हुई, तब उनकी माता राधा वर्मा भी स्वास्थ्य विभाग में सरकारी नौकरी में थीं। नियमानुसार, यदि माता-पिता दोनों सरकारी सेवा में हों और उनमें से किसी एक की मृत्यु हो जाए तो उनके आश्रित नौकरी के हकदार नहीं होते हैं।
मामले की प्राथमिक जांच संयुक्त कृषि निदेशक ने की। उप कृषि निदेशक अशोक कुमार गौतम ने अपने आदेश में लिखा कि शची की नियुक्ति मृतक आश्रित नियमावली 1974, 1994 और 1999 के विपरीत थी, इसलिए उनकी सेवाएं समाप्त की जाती हैं। 25 साल की सेवा के बाद इस तरह की बर्खास्तगी शची के लिए एक बड़ा झटका था।
बर्खास्तगी के बाद शची वर्मा ने हार नहीं मानी और इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने शची की वकील आदर्श की दलीलों को ध्यान से सुना। वकील ने तर्क दिया कि शची को बर्खास्त करने का आदेश सिर्फ एक तीसरे पक्ष की शिकायत पर दिया गया था, जो न्यायसंगत नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण दलील यह थी कि जिस नियम के तहत माता-पिता दोनों के सरकारी कर्मचारी होने पर आश्रित को नौकरी नहीं मिलती, वह नियम वर्ष 1999 में लागू हुआ था, जबकि शची के पिता का निधन 2 नवंबर 1997 को हो गया था। वकील ने स्पष्ट किया कि अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर विचार करते समय, कर्मचारी की मृत्यु के समय लागू नियम को ही प्रभावी माना जाना चाहिए।
अदालत ने इन दलीलों को स्वीकार करते हुए 21 जुलाई के बर्खास्तगी आदेश पर रोक लगा दी। न्यायमूर्ति ने कहा कि इस मामले पर आगे विचार किया जाना आवश्यक है। अदालत ने शची वर्मा को बड़ी राहत देते हुए उन्हें अपने पद पर बने रहने और सभी सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाने की अनुमति दी है। शची के वकील को प्रति-शपथपत्र दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है।
इस मामले की अगली सुनवाई 15 सितंबर को होगी। तब तक शची की नौकरी को समाप्त करने वाले आदेश का प्रभाव स्थगित रहेगा और उन्हें कर्तव्यों का निर्वहन करने के साथ-साथ वेतन का भी भुगतान किया जाएगा।
यह फैसला न केवल शची वर्मा के लिए न्याय की जीत है, बल्कि यह भी दिखाता है कि अनुकंपा नियुक्ति के मामलों में नियमों का सही समय पर मूल्यांकन करना कितना महत्वपूर्ण है। अब सबकी निगाहें 15 सितंबर की सुनवाई पर टिकी हैं, जब यह तय होगा कि शची वर्मा की नौकरी स्थायी रूप से बहाल होती है या नहीं।
वही वरिष्ठ लिपिक शची वर्मा ने बताया कि उन्होंने किसी भी तथ्य को छिपाकर नौकरी हासिल नहीं की थी, फिर भी गलत तरीके से जांच कर उनके खिलाफ शासन को रिपोर्ट भेज दी गई और उन्हें बर्खास्त कर दिया गया, अब उन्हें कोर्ट से राहत मिली है, माननीय न्यायालय पर उन्हें पूरा भरोसा है कि उनके साथ न्याय होगा।
डिप्टी डायरेक्टर कृषि अशोक गौतम ने कहा कि हाइकोर्ट के आदेश का पालन किया जा रहा है, न्यायालय के आदेश के अनुक्रम में शासन से पत्राचार किया गया है। कहा कि जल्द ही लिपिक शची वर्मा को ज्वाइन करा लिया जाएगा।
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