
MP News : मध्य प्रदेश में मिशनरी स्कूलों पर प्रशासन मेहरबान है। इससे जुड़ा फिर से एक नया प्रकरण सामने आया है। ये ग्वालियर की डबरा तहसील के सेंट पीटर स्कूल डबरा का है।
हालांकि, मुरैना, शिवपुरी, गुना, बीना समेत प्रदेश के कई जगह (चर्च) मिशनरी से जुड़े मामले इस वक्त विवादों में हैं, जिन पर प्रभावी कार्रवाई होनी शेष है। लेकिन सेंट पीटर स्कूल डबरा प्रकरण में तो सीधे लाखों की नहीं करोड़ों की चपत स्कूल शिक्षा से जुड़े अधिकारियों ने मप्र शासन को लगा दी है। हास्यास्पद यह कि राज्य बाल संरक्षण आयोग की सिफारिशों काे दरकिनार कर दिया गया।
राज्य बाल संरक्षण आयोग की टीम ने अपने निरीक्षण में यहां कक्षाओं में क्रॉस, बाइबिल उद्धरण और विशेष प्रार्थना पुस्तिकाएं पाई थीं, जिनका पाठ बच्चों के लिए अनिवार्य था। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि विद्यालय की मान्यता वर्ष 2016 में ही समाप्त हो चुकी थी। इसके बावजूद स्कूल आठ वर्षों से लगातार संचालित हो रहा था। अब सेंट पीटर मिशनरी स्कूल पर आठ वर्षों तक बिना मान्यता संचालन का आरोप सिद्ध होने के बावजूद शासन ने करोड़ों की वसूली छोड़कर उसे मान्यता दे दी। राज्य बाल संरक्षण आयोग ने इसे सीधे-सीधे शासन के राजस्व की हानि बताते हुए कठोर कार्रवाई की सिफारिश की है।
नोटिस में करोड़ों की वसूली का उल्लेख
दरअसल राज्य बाल संरक्षण आयोग की टीम ने मार्च 2023 में स्कूल का निरीक्षण किया था, जिसमें अनेक खामियां पाए जाने के बाद जिला शिक्षा केंद्र ग्वालियर ने 29 मार्च 2023 को स्कूल के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया। इसमें आरटीई अधिनियम 2009 के तहत प्रतिदिन 10 हजार रुपये जुर्माना और एक लाख रुपये अलग से दंड लगाने की बात कही गई। इस हिसाब से स्कूल पर आठ वर्षों में कुल 2 करोड़ 93 लाख रुपये की वसूली बनती थी।
कार्रवाई में शून्य, मिली नई मान्यता
नियमों के अनुसार इतनी बड़ी राशि वसूलना तय था, लेकिन शिक्षा विभाग की कार्रवाई कागजों में ही रह गई। वर्ष 2024 में अचानक बिना वसूली के स्कूल की मान्यता बहाल कर दी गई। जब इस संबंध में बाल संरक्षण आयोग ने बार-बार जवाब मांगा तो शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने संतोषजनक जानकारी तक देना उचित नहीं समझा। हाल ही में ग्वालियर बैठक में यह तथ्य उजागर हुआ तो आयोग भी हैरान रह गया कि करोड़ों की वसूली छोड़कर स्कूल को क्लीन चिट दे दी गई है। यह तथ्य सामने आने पर आयोग ने आश्चर्य और नाराजगी जताई है।
आयोग का कड़ा रुख
अब 26 सितंबर को राज्य बाल संरक्षण आयोग ने प्रमुख सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग को पत्र जारी कर साफ कहा कि बिना जुर्माना लगाए मान्यता देना शासन के राजस्व की प्रत्यक्ष हानि है। साथ ही धारा 18(5) के अंतर्गत जुर्माना वसूल कर दस्तावेज सहित रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं।
मिशनरी स्कूलों पर अधूरी कार्रवाई
यह कोई पहला मामला नहीं है। नर्मदापुरम, सागर, दमोह, मुरैना, शिवपुरी, गुना और बीना समेत कई जिलों में भी मिशनरी स्कूलों पर अनियमितताओं के मामले सामने आते रहे हैं। कहीं फीस वसूली में मनमानी तो कहीं धार्मिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की शिकायतें हुईं। लेकिन ज्यादातर मामलों में कार्रवाई आधी-अधूरी ही रह गई। सेंट पीटर स्कूल का प्रकरण तो घाेर लापरवाही है।
शिक्षा व्यवस्था पर सवाल
सरकार एक ओर शिक्षा को बच्चों का मूल अधिकार बताकर योजनाओं पर करोड़ों खर्च करती है, वहीं दूसरी ओर जब नियमों के उल्लंघन का स्पष्ट मामला सामने आता है तो कार्रवाई ठंडी पड़ जाती है। क्या शिक्षा विभाग सिर्फ नोटिस जारी कर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान लेता है? और क्या ‘अल्पसंख्यक संस्थान’ होने के नाम पर नियमों से छूट दी जा रही है? क्योंकि मिशनरी संस्था का शुरू से यही तर्क रहा है कि वो अल्पसंख्यक संस्था है, उसे राज्य मान्यता की कोई जरूरत नहीं है।
यदि सरकार गंभीर है, तो उसे स्कूल से जुर्माने की राशि तत्काल वसूल करनी चाहिए। इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई करे। ऐसे मामलों में ‘क्लीन चिट’ देने की प्रवृत्ति पर रोक लगाई जाए। स्कूलों की नियमित निगरानी सुनिश्चित करे।
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