उपलब्धि : लखनऊ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हल्दी में कवक जनित खतरों की खोज की, बहुमूल्य फसल के छिपे खतरों का खुलासा

Lucknow : भारत का स्वर्णिम मसाला कहे जाने वाले हल्दी को लंबे समय से इसके औषधीय और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन नए शोध ने इस बहुमूल्य फसल के लिए छिपे खतरों का खुलासा किया है।

हाल ही में लखनऊ विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में प्रोफेसर अमृतेश चंद्र शुक्ल के मार्गदर्शन में अपनी पीएचडी पूरी करने वाले डॉ. रामानंद यादव ने अपने शोध ग्रंथ में हल्दी में दो ऐसे कवक जनित रोगजनकों की पहचान की है जिनके बारे में पहले कभी रिपोर्ट नहीं किया गया था।
वर्ष 2023 में कोलेटोट्राइकम सियामेन्से द्वारा विनाशकारी पत्ती धब्बा रोग उत्पन्न करने वाला अध्ययन, ब्रिटिश सोसाइटी फॉर प्लांट पैथोलॉजी द्वारा विले के सहयोग से प्रकाशित, प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘न्यू डिजीज रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित हुआ था।

एक अन्य कवक, फ्यूजेरियम प्रोलिफेरेटम हल्दी के प्रकंद सड़न के लिए ज़िम्मेदार है, जो उपज और गुणवत्ता को प्रभावित करने वाली एक गंभीर बीमारी है। यह शोध पत्र ऑस्ट्रेलेशियन जर्नल ऑफ प्लांट पैथोलॉजी में प्रकाशित होने वाला है, जिसे ऑस्ट्रेलेशियन प्लांट पैथोलॉजी सोसाइटी की ओर से स्प्रिंगर नेचर द्वारा प्रकाशित किया जायेगा। यह पहली बार है जब इन कवकों को हल्दी की खेती से जोड़ा गया है
वैश्विक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए दोनों रोगजनकों के जीनोमिक अनुक्रमों को नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (एनसीबीआई) जेन बैंक डेटाबेस में जमा किया है, जिसका प्राप्ति क्रमांक कोलेटोट्राइकम सियामेन्से के विभिन्न जीन अनुक्रमों के लिए इस प्रकार है।

आईटीएस (OQ086954) और जीएपीडीएच (OQ991912); तथा फ्यूजेरियम प्रोलिफेरेटम के विभिन्न जीनों का प्राप्ति क्रमांक 18S rRNA (OP679873), आईटीएस (PQ725671) और बीटा ट्यूबिलिन (PV131043) है।
इसके अलावा, शुद्ध कल्चर को राष्ट्रीय कवक संवर्धन बैंक राष्ट्रीय कृषि महत्वपूर्ण सूक्ष्मजीव संवर्धन संग्रह (NAIMCC) ICAR – राष्ट्रीय कृषि महत्वपूर्ण सूक्ष्मजीव ब्यूरो (ICAR-NBAIM), मऊ, उत्तर प्रदेश, भारत में जमा किया, उसके उपरांत उक्त संस्थान ने दोनों कवकों के लिए परिग्रहण संख्या (Acession Number): NAIMCC- F-04638 (कोलेटोट्राइकम स्यामेंस) और NAIMCC-F-04637 (फ्यूजेरियम प्रोलिफेरेटम) प्रदान किया। उन्होंने बताया, “ऐसे कदमों से वैज्ञानिकों को प्रभावी निदान और नियंत्रण उपाय विकसित करने में मदद मिलेगी।”

प्रोफेसर शुक्ला ने कहा, अपने पीएचडी अध्ययन के दौरान, डॉ. यादव ने प्लांट मेटाबोलाइट्स-आधारित फॉर्मूलेशन का उपयोग करके इन दोनों रोगजनकों को इन-विट्रो के साथ-साथ ग्रीनहाउस स्थितियों में भी प्रबंधित किया, जो हल्दी में करक्यूमिन की मात्रा को बेहतर बनाने और सिंथेटिक कीटनाशकों के नकारात्मक प्रभाव से निपटने में मदद करेगा।

भारत दुनिया में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है। विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 62% से अधिक है। भारतीय प्रेस सूचना ब्यूरो के अनुसार, 2023-24 के दौरान 226.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की 1.62 लाख टन हल्दी और हल्दी उत्पादों का निर्यात किया गया।
यह खोज एक महत्वपूर्ण क्षण पर हुई है: भारत सरकार ने हाल ही में हल्दी अनुसंधान, मूल्य संवर्धन और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड की स्थापना की है। विशेषज्ञों का मानना है कि डॉ. यादव का कार्य इन राष्ट्रीय प्रयासों का पूरक होगा और हल्दी की खेती को उभरते रोगों से बचाने के लिए वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा।

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