
-सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के बहिष्कार के रवैये पर जताई चिंता
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्य में आधार और मतदाता पहचान पत्र को वैध दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार करने में चुनाव आयोग की अनिच्छा पर सवाल उठाया और कहा कि कोई भी दस्तावेज़ जाली हो सकता है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने चुनाव आयोग के बहिष्कार के रवैये पर चिंता जताई और सत्यापन प्रक्रिया में दोनों दस्तावेज़ों को शामिल करने की जरुरत पर भी बल दिया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि दुनिया का कोई भी दस्तावेज जाली हो सकता है। उन्होंने चुनाव आयोग से आग्रह किया कि आधार और मतदाता पहचान पत्र को पूरी तरह से स्वीकार क्यों नहीं किया जा रहा है, जबकि पंजीकरण फॉर्म में आधार पहले से ही मांगा जा रहा है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने कहा कि ईसीआई द्वारा सूचीबद्ध कोई भी दस्तावेज जाली हो सकता है और स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची से केवल आधार कार्ड और चुनावी फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) को बाहर करने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया।
कोर्ट ने कहा कि इन दोनों दस्तावेज़ों को शामिल करें। कल आपको सिर्फ़ आधार ही नहीं, बल्कि 11 में से 11 दस्तावेज़ भी जाली दिख सकते हैं। यह एक अलग मुद्दा है, लेकिन हम सामूहिक बहिष्कार पर हैं। इसे सामूहिक समावेशन होना चाहिए। आधार को भी इसमें शामिल करें। न्यायालय राज्य विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए चुनाव आयोग के 24 जून के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था।
याचिकाकर्ताओं के मुताबिक यह कदम संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का उल्लंघन करता है और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के तहत तय प्रक्रिया से विचलित करता है। चुनाव आयोग ने अपने निर्देश का बचाव करते हुए कहा कि उसे संविधान के अनुच्छेद 324 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) के तहत ऐसा करने का अधिकार है।