
UP SIR Voter List : उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले ही एक बड़ा बदलाव हो रहा है। दरअसल, SIR प्रक्रिया के बाद यूपी की वोटर लिस्ट से करीब 2.89 करोड़ मतदाताओं के नाम कटने वाले हैं। ये आंकड़ा कुल मतदाताओं का लगभग 18-19 फीसदी है। इससे आगामी विधानसभा चुनाव में सियासी दलों का गणित गड़बड़ा सकता है। यूपी के 2.89 करोड़ वोटरों के नाम कटने के बाद इसका 2027 चुनाव पर क्या असर होगा? किन दलों को फायदा होगा और किसे नुकसान झेलना पड़ेगा?
उत्तर प्रदेश में पहले कुल मतदाता करीब 15.44 करोड़ थे। अब SIR के बाद 2.89 करोड़ नाम कटने तय हैं। पहले 31 दिसंबर को ही वोटर लिस्ट की ड्राफ्ट लिस्ट जारी होने वाली थी, लेकिन बाद में ये तारीख 6 जनवरी को घोषित कर दी गई।
यूपी में क्यों कटे 2.89 करोड़ वोटर्स
- करीब 1.26 करोड़ मतदाता स्थायी रूप से दूसरे जगह शिफ्ट हो चुके।
- 46 लाख मृत मतदाता।
- 23-24 लाख डुप्लीकेट नाम।
- 83 लाख अनुपस्थित या गायब।
यूपी के इन शहरों में SIR का सबसे ज्यादा रहा असर
SIR का सबसे ज्यादा असर लखनऊ, गाजियाबाद, प्रयागराज, कानपुर, आगरा जैसे बड़े शहरों में दिख रहा है। एसआईआर की समयसीमा 26 दिसंबर 2025 को खत्म हो गई और अब 6 जनवरी 2026 को ड्राफ्ट लिस्ट आएगी। फाइनल लिस्ट मार्च 2026 तक। जिनके नाम कटे हैं, वे दावा-आपत्ति कर सकते हैं।
अब सवाल ये है कि SIR से यूपी का सियासी गणित क्यों गड़बड़ाएगा? बता दें कि यूपी में 403 विधानसभा सीटें हैं, और 2027 में चुनाव इन्हीं पर होंगे। वोटर लिस्ट साफ होने से फर्जी या डुप्लीकेट वोटिंग रुकेगी, लेकिन जिन इलाकों से ज्यादा नाम कटे, वहां वोटिंग प्रतिशत और वोट शेयर बदल सकता है। शहरी इलाकों में बीजेपी मजबूत है, और वहां ज्यादा नाम कटे हैं – तो अगर बीजेपी अपने वोटरों को जल्दी रजिस्टर करवा ले, तो फायदा हो सकता है। ग्रामीण या कुछ समुदायों में विपक्ष को नुकसान की आशंका। कुल 19% वोटर बेस बदलने से जातीय समीकरण हिल सकते हैं – यादव, मुस्लिम, दलित वोटर अगर कम हुए तो सपा-कांग्रेस को झटका, जबकि नॉन-यादव ओबीसी या अपर कास्ट में बीजेपी को फायदा।
विशेषज्ञ कहते हैं कि ये चुनाव करीब का होगा, और वोटर टर्नआउट व शेयर में छोटा बदलाव भी बड़ा उलटफेर कर सकता है। विपक्षी दल सपा और कांग्रेस आरोप लगा रहे हैं कि ये प्रक्रिया हाशिए के समुदायों को नुकसान पहुंचा रही है। वहीं बीजेपी कह रही है कि ये सफाई जरूरी है, और उनके वोटर भी प्रभावित हो रहे हैं।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि कटे नामों में ज्यादातर उनके या हाशिए के समुदायों के हैं – मुस्लिम, दलित, पिछड़े। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि बीजेपी को डर है कि उनके अपने वोटर भी कट रहे हैं। कांग्रेस ने भी ईसीआई पर सवाल उठाए कि इतनी बड़ी डिलीशन क्यों और पारदर्शिता कहां है? वहीं बीजेपी कह रही है कि आरोप बेबुनियाद हैं, ये सफाई सभी के लिए है और घुसपैठिए या फर्जी वोटर हट रहे हैं।
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि शहरों और प्रवासी बहुल इलाकों में बीजेपी को फायदा हो सकता है, जबकि ग्रामीण या कुछ खास समुदायों में विपक्ष को। कुल मिलाकर, करीब 19% वोटर बेस बदलने से जातीय-क्षेत्रीय समीकरण हिल सकता है। बता दें कि लोग डीलिमिटेशन (परिसीमन) से कन्फ्यूज कर रहे हैं। डीलिमिटेशन 2026 के बाद की जनगणना पर होगा, जो लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या-सीमाओं को बदलेगा। लेकिन यूपी विधानसभा में अभी सीटें बढ़ने की संभावना कम है, क्योंकि राज्य स्तर पर फ्रीज है।
एसआईआर सिर्फ वोटर लिस्ट की सफाई है, इससे सीटें नहीं बदल रही, तो 2027 चुनाव पुरानी 403 सीटों पर ही होगा, बस अब वोटर्स की लिस्ट छोटी हो जाएगी। यानी मतदाता कम होंगे। तो कुल मिलाकर, 2027 में यूपी की सियासत में नया ट्विस्ट आने वाला है।
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