
Delhi : दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और स्पष्ट फैसला सुनाते हुए कहा है कि मां की आय अधिक होने के बावजूद पिता नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण से मुक्त नहीं हो सकता। कोर्ट ने इस मामले में यह भी कहा है कि बच्चों की परवरिश दोनों माता-पिता की कानूनी, नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी है, और एक का कमाई अधिक होने का तर्क जिम्मेदारी से मुक्ति का आधार नहीं बन सकता।
यह मामला एक ऐसे पिता का था, जिसने निचली अदालत और सत्र अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। दिसंबर 2023 में निचली अदालत ने पिता को अपने तीनों बच्चों के लिए हर महीने 30 हजार रुपए का अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया था, जिसे सत्र अदालत ने भी सही माना था। इस आदेश के खिलाफ पति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
पति का दावा था कि उसकी मासिक आय केवल 9 हजार रुपए है, जबकि पत्नी की आय 34,500 रुपए है। उसने तर्क दिया कि उसकी कमाई अधिक न होने की वजह से वह बच्चों का पूरा भरण-पोषण नहीं कर सकता और पत्नी की अधिक आय का इस्तेमाल बच्चों के खर्च के लिए किया जाना चाहिए। साथ ही, उसने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी ने कानून का दुरुपयोग किया है।
वहीं, पत्नी ने कहा कि बच्चों की पढ़ाई, देखभाल, इलाज और दैनिक जरूरतों का जिम्मा पूरी तरह से उसका है। उसने तर्क दिया कि भले ही उसकी कमाई कम हो, लेकिन बच्चों का भरण-पोषण उसकी जिम्मेदारी है और इसे कोई भी कानूनी या नैतिक आधार पर नहीं छोड़ सकता।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि यदि मां की आय अधिक हो, तो भी पिता अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। अदालत ने कहा कि बच्चों का पालन-पोषण माता-पिता दोनों की जिम्मेदारी है और किसी एक की आय का अधिक होना जिम्मेदारी से मुक्ति का कारण नहीं हो सकता।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि यदि मां की कमाई अधिक है और बच्चों की देखभाल उसके पास है, तो वह पहले से ही अपनी कमाई के साथ-साथ बच्चों की जिम्मेदारी निभा रही है। ऐसे में पिता अपने कमाई के स्रोत को छुपाकर या तकनीकी बहाने बनाकर जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता। अदालत ने यह भी कहा कि कानून किसी भी कामकाजी माँ को शारीरिक, आर्थिक और मानसिक रूप से इतना थकाने की अनुमति नहीं देता कि पिता अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट जाए।
अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि माता-पिता दोनों को बच्चों की परवरिश में बराबर हिस्सा लेना चाहिए और कोई भी एकतरफा जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। यह फैसला इस बात का संदेश भी देता है कि कानून में किसी भी बच्चे का भरण-पोषण केवल एकमात्र माता या पिता की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि दोनों का कर्तव्य है।
यह भी पढ़े : हमारे बच्चों पर बम गिराएं जा रहें… भारत अब चुप क्यों? रूसी हमले पर जेलेंस्की ने सभी देशों से मांगा जवाब















