
Azab Gazab : दक्षिण कोरिया में एक युवा पति और पत्नी का रिश्ता अचानक ही मौत और जीवन के बीच खड़ा हो गया है। मामला लिवर डोनेशन से जुड़ा हुआ है। खराब लिवर से जूझ रहे पति को पत्नी ने लिवर देने से मना कर दिया तो पति जिंदगी बचाने के लिए कोर्ट पहुंच गया। ये मामला सिर्फ एक मेडिकल फैसला नहीं, बल्कि समाज में नैतिकता, मजबूरी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का भी एक बड़ा सवाल बन चुका है।
यह कहानी दक्षिण कोरिया के एक छोटे से शहर की है, जहाँ 30 के आसपास की उम्र के पति और पत्नी रहते थे। दोनों की शादी तीन साल पहले ही हुई थी और उनके दो छोटे बच्चे भी थे। शुरुआत में, उनका जीवन खुशहाल और सामान्य था। परिवार में प्यार और भरोसे का माहौल था, और बच्चे अपनी मासूमियत में जीवन का आनंद ले रहे थे।
लेकिन सब कुछ तब बदल गया, जब पिछले साल सर्दियों में उनके जीवन में एक भयंकर संकट आया। पति को एक दुर्लभ और जानलेवा बीमारी का पता चला- प्राइमरी बिलियरी सिरोसिस। डॉक्टरों ने कहा कि यदि जल्द से जल्द लिवर ट्रांसप्लांट नहीं हुआ, तो उसकी जिंदगी महज एक साल की रह जाएगी। यह खबर सुनते ही पूरे परिवार की सांसें थम सी गईं।
डॉक्टरों ने तुरंत ही ट्रांसप्लांट की तैयारी शुरू कर दी। परिवार ने इलाज पर जमकर पैसा खर्च किया, और पत्नी का भी लगातार ख्याल रखा गया। एक चमत्कार की तरह, जब टेस्ट हुए, तो पता चला कि पत्नी का लिवर पति से 95 प्रतिशत मेल खाता है। यह खबर पूरे परिवार के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं थी।
यह सुनकर सभी को उम्मीद जगी कि अब पति का जीवन बच सकता है। लेकिन तभी कहानी का एक नाटकीय मोड़ आया- पत्नी ने इनकार कर दिया। उसने कहा कि उसे सुई, नुकीली चीज और सर्जरी से बहुत डर लगता है। उसने इसे ‘पैथोलॉजिकल फियर’ बताया और साफ इनकार कर दिया कि वह किसी भी हालत में अपनी जिंदगी का ऐसा बड़ा ऑपरेशन नहीं कराएगी।
दुश्मनी, डर और परिवार की अनदेखी
इस इनकार के बाद, घर का माहौल बदल गया। पति और उसके माता-पिता दोनों ही पत्नी पर दबाव बनाने लगे। पति ने कहा कि वह अपनी मेहनत से पति का जीवन बचाने का प्रयास कर रहा है, और यदि पत्नी उसकी मदद नहीं कर सकती, तो वह उसे छोड़ने का फैसला कर सकता है। पति ने यह भी कहा कि वह उसकी इच्छा के खिलाफ उसकी जान लेने को तैयार है, क्योंकि वह उसे मरते हुए देखना नहीं चाहता।
पत्नी का इनकार और परिवार का दबाव दोनों ही अपने आप में एक जटिल मामला बन गया। मानसिक दबाव और तनाव इतना बढ़ गया कि पत्नी को अपनी जिंदगी की रक्षा की चिंता सताने लगी।
कहानी में फिर एक ट्विस्ट आया। जब पति की जान को खतरा था, तो अचानक ही एक ब्रेन डेड डोनर मिल गया। डॉक्टरों ने सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किया, और पति की जान बच गई। परिवार ने राहत की सांस ली, और लगा कि अब सब ठीक हो जाएगा।
लेकिन, तभी से कहानी का दूसरा पहलू शुरू हुआ। पति ने अपनी पत्नी पर आरोप लगाना शुरू किया कि उसने जानबूझकर उसकी जान खतरे में डाली और उसके डर का फायदा उठाया। उसने कोर्ट में केस दर्ज कराते हुए कहा कि उसकी पत्नी ने उसे छोड़ दिया है और उसकी जिंदगी को खतरे में डाल दिया है।
यह मामला सोशल मीडिया पर तूल पकड़ चुका है। कई लोग कह रहे हैं कि किसी को भी अपने शरीर का हिस्सा दान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। उनका तर्क है कि जब तक कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से पूरी सहमति ना दे, तब तक उसकी जिंदगी और शरीर का अधिकार सर्वोपरि है।
वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि यदि किसी की जिंदगी का सवाल हो, तो नैतिक दायित्व और सामाजिक जिम्मेदारी भी जरूरी है। खासकर जब बात जीवनदान की हो, तो क्या डर और फियर को प्राथमिकता दी जानी चाहिए?
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