अंतरिक्ष में कहां तक ट्रैवल करती है हमारी आवाज, कहां खत्म होता है धरती से निकला साउंड?

किसी भी आवाज के ट्रैवल करने की एक तय सीमा होती है। अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या धरती से निकली आवाज अंतरिक्ष तक पहुंच सकती है और क्या अंतरिक्ष यात्री वहां धमाके या गूंज सुन पाते हैं। हकीकत यह है कि धरती पर पैदा हुई आवाज हमारे ग्रह से बाहर जाते ही ज्यादा दूर तक नहीं जा पाती। इसकी वजह खुद आवाज की प्रकृति में छिपी है।

आवाज एक मैकेनिकल वेव होती है, यानी इसके फैलने के लिए हवा, पानी या किसी ठोस माध्यम की जरूरत होती है। धरती पर हवा के अणु कंपन करके इन तरंगों को आगे बढ़ाते हैं, इसी कारण हम आवाज सुन पाते हैं। लेकिन अंतरिक्ष में हवा या कोई माध्यम नहीं होता, इसलिए वहां आवाज को आगे ले जाने के लिए कुछ भी मौजूद नहीं रहता।

जैसे-जैसे हम धरती की सतह से ऊपर जाते हैं, वायुमंडल पतला होता जाता है। ऊंचाई बढ़ने के साथ हवा का दबाव और घनत्व कम हो जाता है, जिससे आवाज की तरंगें धीरे-धीरे अपनी ताकत खोने लगती हैं।

लगभग 160 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमंडल इतना पतला हो जाता है कि आवाज की तरंगें आगे बढ़ ही नहीं पातीं। इस क्षेत्र को एनाकॉस्टिक जोन कहा जाता है। यहां आवाज एक ट्रैवलिंग वेव के रूप में खत्म हो जाती है।

आवाज अचानक गायब नहीं होती, बल्कि इसकी ऊर्जा धीरे-धीरे खत्म होती है। वायुमंडल के किनारे पर बची हुई ऊर्जा हवा के कणों की बहुत हल्की और अनियमित गति में बदल जाती है, जिसे इंसान सुन नहीं सकता।

बाहरी अंतरिक्ष लगभग पूरी तरह से वैक्यूम होता है। वहां कण इतने दूर-दूर होते हैं कि वे कंपन को एक-दूसरे तक पहुंचा ही नहीं पाते। इसी वजह से अंतरिक्ष में चाहे कितना भी बड़ा धमाका क्यों न हो, इंसानी कानों के लिए वहां पूरी तरह सन्नाटा रहता है।

हालांकि आवाज वैक्यूम में ट्रैवल नहीं कर सकती, लेकिन रेडियो तरंगें कर सकती हैं। इन्हें किसी माध्यम की जरूरत नहीं होती और ये रोशनी की रफ्तार से चलती हैं। यही कारण है कि इंसानों द्वारा भेजे गए रेडियो सिग्नल आज 100 लाइट ईयर से भी ज्यादा दूर अंतरिक्ष में फैल चुके हैं।

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