
New Delhi : अरावली हिल्स में खनन से जुड़े स्वत:संज्ञान मामले की आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। मामले की सुनवाई के मद्देनजर देशभर में पर्यावरण हितैषियों और #SaveAravalli अभियान ने सक्रियता दिखाई है, जबकि सड़क पर विपक्षी दलों ने भी जोरदार प्रदर्शन किया।
पूर्व वन संरक्षण अधिकारी आर. पी. बलवान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका का उद्देश्य नई परिभाषा से उत्पन्न संभावित खतरों की समीक्षा करवाना है। इस पर कोर्ट का हस्तक्षेप पर्यावरण विशेषज्ञों में आशावादी है, क्योंकि इससे संवेदनशील इलाकों में अवैध खनन और अवैध अतिक्रमण को रोकने में मदद मिल सकती है।
पर्यावरणीय चिंता:
अरावली पहाड़ियां उत्तर भारत में थार रेगिस्तान के फैलाव को रोकने वाली हरी दीवार की तरह कार्य करती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर 10-30 मीटर ऊंची पहाड़ियों को “नॉन-हिल” मान लिया गया, तो इनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। इससे धूल भरी आंधियां बढ़ सकती हैं, भूजल स्तर गिर सकता है और दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत में वायु प्रदूषण गंभीर हो सकता है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
अरावली में खनन विवाद की शुरुआत 1996 में अवैध खनन के खिलाफ याचिका से हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2002 और 2004 में वन भूमि में खनन पर रोक लगाई थी, लेकिन स्पष्ट परिभाषा न होने से कानूनी गैप बने रहे। इसी गैप का फायदा उठाकर 2018 तक राजस्थान में कम से कम 31 पहाड़ समाप्त हो गए। 2025 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला इन कानूनी कमियों को दूर करने का प्रयास है।
स्वत: संज्ञान और नई परिभाषा:
SaveAravalli अभियान के तहत देशभर में विरोध बढ़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया। नई परिभाषा (100 मीटर) के प्रभावों को देखते हुए कोर्ट ने मामले की आपात समीक्षा का फैसला किया। बेंच यह जांच करेगी कि क्या यह नई कसौटी संवेदनशील इलाकों को रियल एस्टेट और खनन के लिए खोल रही है या नहीं।
केंद्र सरकार का पक्ष:
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने 24 दिसंबर को स्पष्ट किया कि अरावली का 99% हिस्सा अब भी संरक्षित है। उन्होंने कहा कि नई परिभाषा केवल चोटियों तक सीमित नहीं है, बल्कि पहाड़ियों की ढलान और आधार भी संरक्षण में आते हैं। सरकार के मुताबिक, सख्त शर्तों के तहत केवल 0.19% क्षेत्र ही खनन के लिए संभावित रूप से पात्र है। केंद्रीय मंत्रालय ने 90% पहाड़ियों के खत्म होने के दावे को खारिज किया है।
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