
Palia Kalan, Lakhimpur Kheri : पलिया कोतवाली क्षेत्र में एक नाबालिग छात्र के साथ हुए गंभीर सड़क हादसे ने पुलिस की कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। तेज रफ्तार और लापरवाही से हुई इस दुर्घटना में 12 वर्षीय छात्र का पैर फ्रैक्चर हो गया, लेकिन घटना के लगभग तीन सप्ताह बाद तक भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई, जिससे पुलिस के आश्वासन और जमीनी हकीकत के बीच का अंतर साफ नजर आने लगा है।
घटना 4 दिसंबर 2025 की शाम करीब 5:30 बजे की है। स्थानीय निवासी नितेशचंद्र गुप्ता अपने 12 वर्षीय पुत्र राजवीर कक्षा 8 का छात्र के साथ स्कूटी से कमल टॉकीज चौराहे के पास जिंदल मेडिकल स्टोर से दवा लेकर लौट रहे थे। इसी दौरान निघासन की ओर से आ रही मैटाडोर वाहन संख्या UP 25 CT 0875 ने पीछे से जोरदार टक्कर मार दी। हादसे में पिता–पुत्र दोनों सड़क पर गिर पड़े। नितेशचंद्र गुप्ता के बाएं हाथ की कलाई में चोट आई, जबकि नाबालिग राजवीर के दाहिने पैर की एड़ी में फ्रैक्चर हो गया। आरोपी चालक वाहन सहित मौके से फरार हो गया।
घटना के अगले दिन 5 दिसंबर 2025 को पीड़ित परिवार ने पलिया कोतवाली में लिखित प्रार्थना पत्र देकर एफआईआर दर्ज करने की मांग की। इसके बावजूद अब तक केवल आश्वासन ही मिलते रहे। कभी अधिकारियों की व्यस्तता तो कभी उच्चाधिकारियों के आगमन का हवाला देकर मामले को लगातार टाल दिया गया।
पीड़ित पक्ष का आरोप है कि अब स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि पुलिस उल्टे यह कहकर कार्रवाई से बच रही है कि पीड़ित परिवार ने विपक्षी पक्ष से “मैनेज” कर लिया है, जबकि यह आरोप पूरी तरह बेबुनियाद है। पीड़ित परिवार का कहना है कि वे न्याय की उम्मीद में लगातार थाने के चक्कर काट रहे हैं, जबकि उनका नाबालिग बेटा इलाज और दर्द से जूझ रहा है।
मेडिकल रिपोर्ट और एक्स-रे जांच में फ्रैक्चर की पुष्टि हो चुकी है। सरकारी अस्पताल में हड्डी रोग विशेषज्ञ उपलब्ध न होने के कारण परिजनों को निजी क्लिनिक में इलाज कराना पड़ा और बच्चे के पैर पर प्लास्टर चढ़ाना पड़ा। इलाज से जुड़े सभी साक्ष्य पीड़ित परिवार के पास मौजूद हैं।
पुलिस का आश्वासन
मामले को लेकर जब मीडिया ने पलिया कोतवाली प्रभारी पंकज त्रिपाठी से संपर्क किया, तो उन्होंने बताया कि मामला उनके संज्ञान में है और “आज ही मुकदमा दर्ज कर लिया जाएगा।” उन्होंने जांच के बाद आरोपी चालक के खिलाफ कार्रवाई का भरोसा दिलाया।
हकीकत पर सवाल
सवाल यह है कि जब घटना के अगले ही दिन प्रार्थना पत्र और मेडिकल साक्ष्य उपलब्ध थे, तो मुकदमा दर्ज करने में लगभग 20 दिन की देरी क्यों हुई? क्या बिना मीडिया के हस्तक्षेप के यह मामला यूं ही फाइलों में दबा रहता? यह प्रकरण पुलिस की जवाबदेही और संवेदनशीलता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।
पीड़ित परिवार का कहना है कि यदि निष्पक्ष कार्रवाई नहीं हुई, फरार चालक की गिरफ्तारी नहीं हुई और बच्चे को न्याय नहीं मिला, तो वह पुलिस अधीक्षक और जिला प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग करेगा।










