
नई दिल्ली : अरावली पर्वतमाला को लेकर देशभर में चल रही बहस और भ्रम के बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने स्थिति स्पष्ट करते हुए साफ कहा है कि अरावली क्षेत्र में न तो किसी तरह की छूट दी गई है और न ही भविष्य में ऐसी कोई छूट दी जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार का एकमात्र उद्देश्य अरावली को सुरक्षित, हरा-भरा और इकोलॉजिकल रूप से मजबूत बनाना है।
अरावली दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में शामिल, सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता
भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली रेंज दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में गिनी जाती है और इसकी सुरक्षा राष्ट्रीय पर्यावरण नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने अरावली के दायरे और परिभाषा को लेकर जो दिशा-निर्देश दिए हैं, वही आगे का आधार होंगे। इसी दिशा में “ग्रीन अरावली वॉल” अभियान भी शुरू किया गया है, जो पूरे अरावली क्षेत्र को स्थायी हरियाली और मजबूत जैव-विविधता से जोड़ने का प्रयास है।
90% क्षेत्र पहले से सुरक्षित, ‘100 मीटर’ का नया वैज्ञानिक मानक स्पष्ट
मंत्री ने इंटरव्यू में कहा कि भूवैज्ञानिक मानकों के अनुसार किसी भी पहाड़ी संरचना को पहाड़ तभी माना जाता है जब वह 100 मीटर तक की ऊंचाई व संरचनात्मक निरंतरता रखती हो। इसी आधार पर अरावली क्षेत्र का निर्धारण किया गया है और इसमें लगभग 90 प्रतिशत इलाका संरक्षित के दायरे में आता है।
उन्होंने बताया कि अरावली क्षेत्र में
- करीब 58% हिस्सा कृषि भूमि है
- एक बड़ा हिस्सा मानव बस्तियों व शहरी क्षेत्रों में आता है
- जबकि लगभग 20% क्षेत्र पूरी तरह ‘प्रतिबंधित संरक्षित जोन’ है, जहां किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं है।
नई माइनिंग पर सख्त शर्तें, अवैध खनन पर जीरो टॉलरेंस
भूपेंद्र यादव ने स्पष्ट किया कि जहां पहले से वैध खनन चल रहा है, वहीं तक कुछ सीमित प्रक्रियाओं के तहत अनुमति जारी है। नई माइनिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार केवल वैज्ञानिक अध्ययन, ICFRE जैसी संस्थाओं की रिपोर्ट और राज्यों द्वारा तैयार किए जाने वाले पुख्ता प्लान के बाद ही विचार होगा।
उन्होंने कहा कि
- अधिकतम 0.19% से अधिक क्षेत्र में नए खनन की अनुमति संभव नहीं
- अवैध और मनमानी माइनिंग पूरी तरह बंद होगी
- प्रतिबंधित क्षेत्रों की सख्त पहचान कर उनका कड़ाई से संरक्षण किया जाएगा।
सिर्फ पेड़ नहीं, पूरी इकोलॉजी की सुरक्षा ज़रूरी
मंत्री ने जोर देकर कहा कि अरावली सिर्फ “पेड़ों का जंगल” नहीं बल्कि एक जीवित इकोसिस्टम है जिसमें घास, झाड़ियां, औषधीय पौधे और जंगली जीव-जंतु शामिल हैं। इसी के तहत
29 से अधिक नर्सरी स्थापित की गई हैं
- हर जिले में स्थानीय वनस्पतियों का वैज्ञानिक अध्ययन कराया गया है
- बिग कैट अलायंस के तहत शेर-बाघ जैसे बड़े वन्यजीवों के लिए अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करने पर काम चल रहा है।
‘शहरीकरण की कोई नई योजना नहीं, केवल अरावली सुरक्षा हमारा लक्ष्य’
भूपेंद्र यादव ने शहरीकरण से जुड़े भ्रम को भी दूर किया। उन्होंने कहा कि अरावली क्षेत्र में किसी नए शहरीकरण की योजना नहीं है। यह योजना पूरी तरह संरक्षण केंद्रित है। उन्होंने बताया कि राजसमंद और उदयपुर जैसे बड़े माइनिंग जिलों में भी औसतन 0.1% से भी कम क्षेत्र में ही नियंत्रित गतिविधि संभावित है, वह भी तभी जब राज्य सरकारें ठोस वैज्ञानिक योजना पेश करें।
अंत में उन्होंने दोहराया कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के हर निर्देश का पालन करेगी और अरावली क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण सर्वोच्च प्राथमिकता बना रहेगा। अवैध खनन पर सख्त कार्रवाई और वैज्ञानिक संरक्षण व्यवस्था ही आगे का रास्ता है।















