
- भारत विरोधी लहर और अल्पसंख्यकों पर हमले – क्या है असली सच्चाई?
- बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने कहा, यह सब ‘चुनाव बाधित करने की साजिश
डिजिटल भास्कर डेस्क। तख्तापलट और मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार की कमान मिलने के बाद बांग्लादेश एक बार फिर धधक रहा है। शरीफ उस्मान हादी की मौत ने पूरे देश में दोबारा हिंसा को जन्म दे दिया है। बांग्लादेश के नामी अखबार डेली स्टार और प्रोथोम आलो जैसे मीडिया हाउसों में आगजनी, हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमला और भारत विरोधी नारेबाजी ने स्थिति को बद से बद्त्तर कर दिया है। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट में उस्मान हादी का किरदार किसी से छिपा नहीं है। 2024 के छात्र विद्रोह में हादी मुख्य चेहरा था, ऐसे में शेख हसीना को सजा और चुनाव का समय नजदीक आते देख कुछ सवाल बार बार सामने आ रहे है।
- क्या यह सब चुनाव टालने की साजिश है?
- क्या भारत विरोधी ताकतों को इससे फायदा हो रहा है?
- हादी की मौत के पीछे किसका हाथ है?
- क्या इसके पीछे खुद यूनुस सरकार का हाथ है ?
इन सारे सवालों का जवाब तथ्यों के आधार पर समझने की कोशिश करते हैं।
उस्मान हादी कौन थे और उसका भारत विरोधी गतिविधियों से क्या संबंध था?

शरीफ उस्मान हादी, 32 वर्षीय युवा नेता, इंकिलाब मंच का प्रवक्ता था। हादी जुलाई 2024 के छात्र विद्रोह के मुख्य चेहरा था, हादी ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की 15 साल की सत्ता की जड़ों को न सिर्फ हिलाया बल्कि मजबूती से कायम उस पेड़ को जड़ से उखाड़ फेंका। हादी ने शेख हसीना को भारत भागने पर मजबूर कर दिया। 2024 में हुए तख़्तापलट से पहले और उसके बाद से लगतार हादी भारत विरोधी भाषण देता आया था। वो लगतार भारत पर आरोप लगाता आया था कि भारत ने 1971 से बांग्लादेश पर अनुचित प्रभाव डाल रहा है और हसीना की सरकार को भारत का समर्थन प्राप्त होने के कारण वो मनमानी कर रही थी। हादी ने ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ का नक्शा भी साझा किया था, जिसमें भारत के पूर्वी हिस्सों को शामिल दिखाया गया था।
हादी बांग्लादेश पूर्व राष्ट्रपति और शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान तक का विरोध करता आया यही। उसने शेख मुजीबुर रहमान को श्रद्धांजलि देने वाले बांग्लादेशी अभिनेताओं तक की आलोचना की थी। हादी एक रेडिकल इस्लामिस्ट था जो इस्लाम से ऊपर किसी को तवज्जो नहीं देता था। इतनी हिंसा और भड़काऊ भाषणों के बावजूद हादी को ‘शहीद’ का दर्जा दिया गया। उसके समर्थक उसे बांग्लादेश की संप्रभुता का रक्षक मानते है।
हादी की मौत कैसे हुई? मोहम्मद यूनुस का हाथ है?
12 दिसंबर 2025 को ढाका में मस्जिद से निकलते समय दो अज्ञात हमलावरों ने हादी पर गोलीबारी की। हालाँकि हमलावरों ने हेलमेट पहन रखा था और वो तुरंत फरार हो गए, जिससे अबतक उनकी पहचान का कोई अत पता नहीं है। हादी को गंभीर हालत में सिंगापुर ले जाया गया, जहां 18 दिसंबर को उसकी मौत हो गई। अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने मौत पर गहरा शोक व्यक्त किया, इसे ‘राष्ट्र की राजनीतिक और लोकतांत्रिक क्षेत्र के लिए अपूरणीय क्षति’ बताया, और 20 दिसंबर को एक दिन का राष्ट्रीय शोक तक घोषित किया गया। यूनुस सरकार ने हादी की पत्नी और बच्चे की जिम्मेदारी उठाने का फैसला किया है। यूनुस ने हमलावरों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस को निर्देश दिए हैं और 50 लाख टका का इनाम भी घोषित किया है। बावजूद इसके यूनुस सरकार पर हादी की हत्या करवाने के आरोप लग रहे है। हालाँकि कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है कि यूनुस या उनकी सरकार का हादी की मौत में कोई हाथ है। पर कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह अशांति चुनाव टालने की साजिश हो सकती है, क्योंकि 2026 के संसदीय चुनाव की तैयारियां चल रही हैं।
क्या इससे यूनुस सरकार को फायदा होगा?
यूनुस सरकार पर पहले से ही दबाव है – सेना से तनाव ख़त्म नहीं हो रहा और चुनाव की तारीख पर भी अब तक सहमति नहीं बन पायी। ऊपर से हादी की मौत ने अशांति को और बढ़ा दिया, इन सब घटनाओं ने यूनुस सरकार को कटघरे में लेकर खड़ा कर दिया है। हादी की हत्या ने यूनुस सरकार के चेहरे पर ऐसी कालिख पोती है जिसे वो अच्छे से अच्छे वाशिंग पाउडर या साबुन से साफ़ नहीं कर पाएंगे। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) का कहना है कि यह सब ‘चुनाव बाधित करने की साजिश’ है, और ये हमले ‘लोकतंत्र को पटरी से उतारने’ के लिए हैं। चुनाव आयोग ने हाल ही में चुनाव की घोषणा की थी, लेकिन हिंसा के कारण इसे टाला जा सकता हैं। और इसका सीधा फायदा रेडिकल तत्वों को हो रहा है, जो यूनुस पर दबाव बनाकर अपनी मांगें मनवा सकते हैं।
बांग्लादेश में हिंसा से किसका फायदा?
हादी की मौत के बाद प्रदर्शनकारियों ने भारत विरोधी नारे लगाए, भारतीय दूतावास पर हमले की कोशिश की। भारत विरोधी ताकतें, जैसे कटटरपंथी इस्लामिस्ट और संभवतः पाकिस्तान से जुड़े तत्वों को इस मामले से और बल मिल रहा है। भारत-बांग्लादेश संबंध पहले से ही अस्थिर थे ऊपर से हादी की मौत चीजें और ख़राब कर दी। इस मामले ने हसीना समर्थकों को कमजोर कर दिया है। फायदा उन ताकतों को हो रहा है जो बांग्लादेश को अस्थिर रखना चाहती हैं।
हादी के समर्थकों का आरोप है कि हमलावर अवामी लीग समर्थक थे और भारत भाग गए, जहां से उन्हें समर्थन मिला है। बांग्लादेश ने भारत के उच्चायुक्त को बुलाकर हमलावरों को लौटाने में सहयोग करने तक की बात कही। हालाँकि भारत ने अबतक इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है और बांग्लादेश के पास भी इसके कोई पक्के सबूत नहीं है कि हमलावरों का भारत से कनेक्शन है।
बांग्लादेश में हिंदू को क्यों जलाया गया? मीडिया ऑफिस में आग का कनेक्शन?
18 दिसंबर को मयमेंसिंह में हिंदू युवक दीपू चंद्र दास को ब्लास्फेमी (ईशनिंदा) के झूठे आरोप में भीड़ ने पीटा और जिंदा जला दिया। यह हादी की मौत से उपजी हिंसा के दौरान हुआ। बांग्लादेश में रेडिकल तत्व लगातार अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं और सत्ता में आने के बाद से ही यूनुस सरकार सिर्फ हाथ पर हाथ रखे बैठी हुई है। हादी की हत्या के बाद मीडिया ऑफिसों Prothom Alo, The Daily Star और New Age के ऑफिसों को निशाना बनाया गया और वहां आग लगा दी गयी। और इसके पीछे प्रदर्शनकारियों ने हादी की मौत की कवरेज सही से न किये जाने का कारण दिया। भारत ने बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हिंसा की रिपोर्ट्स पर गंभीर चिंता जताई है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि हमले देखे गए हैं और अंतरिम सरकार से बात की भी गई है। भारतीय दूतावास हाई अलर्ट पर है।
सच्चाई तो ये है कि बांग्लादेश में न अल्पसंख्यक सुरक्षित न महिलाएं और न ही मीडिया। यह सब घटनाएं बांग्लादेश को अस्थिरता की ओर धकेल रही हैं। हादी की मौत ने पुरानी दुश्मनी को हवा दी है, लेकिन तथ्य बताते हैं कि कोई स्पष्ट साजिश साबित नहीं हुई। यूनुस सरकार को हिंसा रोकनी होगी, वरना न सिर्फ चुनाव टल जायेंगे बल्कि भारत से संबंध और ज्यादा बिगड़ जाएंगे। अगर बांग्लादेश में चुनाव टले तो कहीं न कहीं इस बात को और जोर मिल जायेगा की खुद यूनुस सरकार का इस हत्या में हाथ है।
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