मेट्रिक-केंद्रित दौड़ में समग्र शिक्षा की आवश्यकता

KB KUMAR, ARCHITECT OF iSCOOP

a distinguished Indian educationist and gentle luminary of systemic rebirth

आज के समय में जब छात्र कल्याण को शैक्षणिक सफलता का मूल तत्व माना जाने लगा है, ऐसे में 1990 के दशक के मध्य व अंतिम वर्षों में विकसित एक दूरदर्शी शैक्षणिक ढांचा फिर से ध्यान देने योग्य है। भारतीय शिक्षाविद्  के. बी कुमार द्वारा विकसित इंटीग्रेटिव स्पेशल केयर आउटकम ऑप्टिमाइज़र प्लानिंग (iSCOOP) ने छात्र प्रदर्शन, भावनात्मक स्वास्थ्य और संस्थागत देखभाल से जुड़े बढ़ते संकटों के लिए एक साहसिक और समग्र समाधान प्रस्तुत किया—वह भी उस दौर में जब ये मुद्दे मुख्यधारा में शामिल भी नहीं थे। iSCOOP आज भी अकादमिक सुधार और अभिभावकों की ‘रैंक और स्कोर’ वाली सोच को संतुलित करने का प्रभावी साधन है, जिसमें नकारात्मक प्रभाव उल्लेखनीय रूप से कम हो जाते हैं।

एक बहुआयामी और समय से आगे का ढांचा

मालदीव के स्कूलों में पायलट रूप में लागू किया गया iSCOOP एक एकल हस्तक्षेप नहीं, बल्कि देखभाल का एक बहुआयामी पारिस्थितिकी तंत्र है। इसका उद्देश्य शैक्षणिक परिणामों को बेहतर करना था, साथ ही छात्रों के भावनात्मक, संज्ञानात्मक और सामान्य स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करना। हालांकि पूर्ण कार्यान्वयन विभिन्न सीमाओं के कारण संभव नहीं हो पाया, परन्तु आंशिक अपनाने से भी असाधारण नतीजे सामने आए—राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा मिली और कुछ ही महीनों में स्कूल संस्कृति में उल्लेखनीय सकारात्मक बदलाव दिखे।

iSCOOP की प्रमुख विशेषताएँ (एक वैज्ञानिक एवं परतदार टूलकिट)

iSCOOP छात्रों की संपूर्ण आवश्यकताओं को संबोधित करने वाला एक वैज्ञानिक ढांचा है, जिसमें शामिल हैं:

संज्ञानात्मक सशक्तिकरण

स्मरण शक्ति, समझ, ध्यान और समय सीमा में प्रदर्शन बढ़ाने वाले टूल्स।

भावनात्मक सुरक्षा

मानसिक तनाव कम करने और नकारात्मक वातावरण से बचाने की रणनीतियाँ।

प्रेरणा को प्रज्वलित करना

I R T जैसे सरल टिकाऊ टूल्स के माध्यम से रुचि, ड्राइव और निरंतर सीखने का संबल।

अनुकूली सहायता

छात्रों की सीमाओं को समझकर उनकी गति बढ़ाने वाली तकनीकें, जो सम्मानजनक व कल्याण-केंद्रित हों।
iSCOOP शैक्षणिक प्रदर्शन को व्यक्तिगत कल्याण, पोषण, परिवारिक परिस्थितियों और सामाजिक-भावनात्मक वातावरण से अलग नहीं मानता। यह सभी पहलुओं को एकीकृत करता है ताकि छात्र भावनात्मक, सामाजिक, संज्ञानात्मक और पारिवारिक स्तर पर संतुलित होकर आगे बढ़ें।

संस्थागत प्रभाव और मान्यता

जहाँ-जहाँ iSCOOP का आंशिक रूप से भी उपयोग हुआ, वहाँ छात्र प्रदर्शन, शिक्षकों की भागीदारी और संस्थागत संस्कृति में बड़े बदलाव देखे गए। ये बदलाव केवल कहानियाँ नहीं थे—राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कारों और प्रमाणपत्रों के माध्यम से इस रूपांतरण को औपचारिक मान्यता मिली।
iSCOOP ने ऐसी शैक्षणिक संस्कृति विकसित की जो प्रतिस्पर्धा के शोर की बजाय शांत स्पष्टता और चिंतनशील उत्कृष्टता को महत्व देती है। यह छात्र के अनिच्छुक व्यवहार या विचलन को परिस्थितिजन्य प्रभावों के रूप में देखता है और व्यवहार के सकारात्मक पुनर्निर्देशन के माध्यम से समाधान तलाशता है। शिक्षक छात्रों के कल्याण में सहयोगी बनते हैं, और संस्थान नैतिक शिक्षण के जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में विकसित होते हैं।

एक स्थायी विरासत

ढाई दशक बीत जाने के बावजूद iSCOOP की प्रासंगिकता आज और बढ़ गई है। महामारी के बाद मानसिक स्वास्थ्य संकट, फिर से उभरती रैंकिंग की जुनूनी संस्कृति और समावेशी शिक्षा की आवश्यकता जैसे मुद्दे आज और गंभीर हैं। ऐसे में कुमार का यह ढांचा एक प्रभावी, एकीकृत और मानवीय शैक्षणिक सुधार का खाका प्रस्तुत करता है।
iSCOOP की शक्ति केवल इसकी वैज्ञानिकता में नहीं, बल्कि इसकी दार्शनिक स्पष्टता में निहित है—छात्र की गरिमा, भावनात्मक जुड़ाव और नैतिक उत्थान के प्रति प्रतिबद्धता। कुमार का विनम्र, कल्पनाशील और गोपनीयता-संवेदी दृष्टिकोण आज के विभाजित और लक्ष्य-केंद्रित शिक्षा मॉडल के लिए एक वैकल्पिक प्रकाशस्तंभ है।

आगे की दिशा

iSCOOP केवल एक ऐतिहासिक सफलता नहीं, बल्कि शिक्षा को पुनः परिभाषित करने का निमंत्रण है—एक दौड़ नहीं, बल्कि आत्मचिंतन की यात्रा। इसकी रणनीतियाँ आज भी प्रासंगिक हैं, इसकी सोच आज भी लागू हो सकती है, और इसका प्रभाव आज भी स्थायी है।
जो संस्थान, नीति-निर्माता और शिक्षक संपूर्ण छात्र विकास को सम्मान देने वाली शिक्षा प्रणाली बनाना चाहते हैं, उनके लिए iSCOOP एक शांत, मानवीय और वैश्विक रूप से प्रासंगिक मार्गदर्शक है। अधिक जानकारी या निःशुल्क मार्गदर्शन के लिए वे कुमार से संपर्क कर सकते हैं या नीचे दिए गए परिशिष्ट का  विस्तृत विवरण का इंतज़ार कर सकते हैं।

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परिशिष्ट : iSCOOP की प्रमुख रणनीतियों की झलक

iSCOOP ऐसे व्यावहारिक, छात्र-केंद्रित उपाय प्रस्तुत करता है जो कल्याण, अकादमिक वृद्धि और संस्थागत सहयोग को एकीकृत करते हैं—विशेषकर परीक्षा के समय।

1. बुनियादी कल्याण और तैयारी

● स्वच्छ पीने के पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करें (दिन में 6–8 गिलास), और अवकाश के दौरान पानी पीने के लिए प्रोत्साहित करें। ● पोषण संबंधी स्क्रीनिंग कराएँ ताकि स्मरण व एकाग्रता पर असर डालने वाली कमियों की पहचान हो सके। ● अल्पकालिक पोषण-सहायता दें और दीर्घकालिक खानपान की आदतों को बढ़ावा दें। ● तनाव कम करने और ध्यान बढ़ाने हेतु विश्राम तकनीकें व भावनात्मक सहयोग प्रदान करें।

2. आदत निर्माण और प्रेरणा

● IRT सिस्टम (इमीडिएट रिइन्फोर्समेंट तकनीक) के माध्यम से छोटे-छोटे टोकन देकर व्यवहार निर्माण शुरू करें—धीरे-धीरे इसे बाहरी पुरस्कार से आंतरिक प्रेरणा की ओर ले जाएँ। ● ‘पोटेंशियल स्कोर कॉन्सेप्ट’ लागू करें ताकि छात्र अपनी वास्तविक क्षमता और वर्तमान प्रदर्शन के अंतर को समझ सकें। ● मुख्य विषयों को प्राथमिकता देकर कुल स्कोर में सुधार करें, साथ ही अन्य विषयों में बुनियादी योग्यता बनाए रखें।

3. शैक्षणिक सुदृढ़ीकरण

● मनोवैज्ञानिक शोध पर आधारित ‘स्पाइरलिंग तकनीक’ का उपयोग कर मौलिक सीख को दोबारा सक्रिय करें। ● iSCOOP के रिवीजन व मेमोरी-ट्रेनिंग मॉड्यूल लागू करें। ● भाषा की बुनियाद (कक्षा 3 या 4 के स्तर तक) मजबूत करें ताकि सभी विषयों में समझ बढ़े। ● परीक्षा कौशलों को जीवन कौशल के रूप में सिखाएँ, न कि शॉर्टकट के रूप में। ● कक्षा गतिविधियों को पुनर्गठित कर सहभागिता, गति और सहपाठी सहभागिता बढ़ाएँ ताकि समझ-आधारित सीख संभव हो।

4. मेंटरशिप और भावनात्मक सहारा

● मेंटरिंग समूह बनाएँ जो परिवार से संपर्क बनाए रखें और आवश्यकता पड़ने पर घर-भ्रमण करें ताकि भावनात्मक निरंतरता सुनिश्चित हो। ● बाहरी ट्यूशन पर निर्भरता कम करें और बचा हुआ समय मेंटर-नेतृत्व वाले अध्ययन सत्रों में लगाएँ। ● शिक्षकों को सहानुभूति, अंतर्दृष्टि और रणनीतिक स्पष्टता के साथ नेतृत्व करने का प्रशिक्षण दें।

5. संस्थागत सहयोग

● शिक्षक निगरानी और प्रोत्साहन प्रणाली विकसित करें ताकि जिम्मेदारी और चिंतनशील अभ्यास प्रोत्साहित हों।
ये सभी रणनीतियाँ सरल होने के बावजूद परतदार, साक्ष्य-आधारित और अत्यंत मानवीय हैं। ये लंबे समय में दृढ़ता, स्वस्थ आदतें और संस्थागत मजबूती का निर्माण करती हैं।

                           ——–के.बी कुमार एक प्रतिष्ठित विकासात्मक शिक्षाविद् और ट्रांस-डोमेन चिंतन के एक चिंतनशील स्वर हैं। उनका कार्य शिक्षणशास्त्र, संस्थागत संरचना और सामाजिक नवीनीकरण के क्षेत्रों में फैला हुआ है, और उन्होंने भारत और उसके बाहर संस्थानों और शैक्षिक प्रणालियों को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने सरकार और प्रमुख शैक्षिक समूहों में वरिष्ठ नेतृत्वकारी पदों पर कार्य किया है और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के साथ मिलकर K-12 और उच्च शिक्षा संस्थानों के विविध वर्गों के लिए दृष्टिकोण तैयार किए हैं। कुमार का व्यवहार विनम्रता और दृढ़ता से भरा है, जो शैक्षिक दृष्टि को सामूहिक उत्तरदायित्व के साथ जोड़ने का प्रयास करता है|

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