ऑनलाइन दुनिया में जीती पीढ़ी की कहानी: युवाओं की डिजिटल हकीकत दिखाता नाटक ‘Live from the Warehouse’

नई दिल्ली : 19 दिसंबर 2025, आज की युवा पीढ़ी की ज़िंदगी अब दो हिस्सों में बंटी हुई है एक असल दुनिया और दूसरी ऑनलाइन दुनिया। मोबाइल फोन, सोशल मीडिया, लाइव वीडियो और नोटिफिकेशन अब सिर्फ़ समय बिताने का ज़रिया नहीं रहे, बल्कि युवाओं की सोच, रिश्तों और पहचान का अहम हिस्सा बन चुके हैं। इसी सच्चाई को मंच पर लाने की कोशिश करता है Joy of Drama का नया नाटक ‘Live from the Warehouse’।

यह नाटक दो किशोरों की कहानी के माध्यम से दिखाता है कि सोशल मीडिया आज के युवाओं के लिए केवल अभिव्यक्ति का मंच नहीं, बल्कि भावनात्मक सहारे और पहचान का साधन भी बनता जा रहा है। नाटक का विचार Joy of Drama से जुड़े युवाओं के साथ हुई कई बातचीतों से निकला, जहाँ यह साफ़ दिखाई दिया कि आज के बच्चे और किशोर जितना जीवन ऑफलाइन जीते हैं, उतना ही कई बार उससे भी ज़्यादा ऑनलाइन रहते हैं।

नाटक के लेखक एवं निर्देशक शाश्वत श्रीवास्तव बताते हैं कि युवाओं के साथ काम करते हुए उन्होंने बार-बार महसूस किया कि सोशल मीडिया उन्हें तुरंत समाधान, तुरंत पहचान और तुरंत प्रतिक्रिया देता है। लेकिन इसके साथ ही यह लगातार दबाव भी पैदा करता है हमेशा अच्छा दिखने का, सुने जाने का और हर वक्त ‘परफॉर्म’ करते रहने का। शहरी अकेलापन और परिवारों में संवाद की कमी भी युवाओं को ऑनलाइन दुनिया की ओर और ज़्यादा खींचती है।

‘Live from the Warehouse’ यह भी सामने लाता है कि सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल किस तरह बुलिंग, धमकाने और कभी-कभी गंभीर हालात तक ले जा सकता है। एक छोटा-सा फैसला या एक पोस्ट ऐसी घटनाओं की शुरुआत कर सकता है, जिन पर बाद में किसी का नियंत्रण नहीं रहता।
इस नाटक की एक विशेषता यह है कि इसमें मोबाइल फोन को सिर्फ़ एक प्रॉप की तरह नहीं, बल्कि लगभग एक किरदार की तरह दिखाया गया है। मंच पर फोन हर वक्त मौजूद रहता है कभी गवाह बनकर, कभी दबाव बनाकर और कभी फैसलों को प्रभावित करते हुए। इससे दर्शकों को यह समझने में मदद मिलती है कि आज के युवाओं की ज़िंदगी में फोन सिर्फ़ एक उपकरण नहीं, बल्कि लगातार साथ रहने वाली एक ताक़त बन चुका है।

Joy of Drama लंबे समय से शिक्षा और रंगमंच को जोड़कर काम करता रहा है, लेकिन यह नाटक किसी उपदेश या सीधे संदेश के लिए नहीं बनाया गया है। इसका उद्देश्य दर्शकों को ‘पढ़ाना’ नहीं, बल्कि सोचने पर मजबूर करना है। यह नाटक डिजिटल आदतों, भावनात्मक निर्भरता और घर के माहौल जैसे मुद्दों पर सवाल उठाता है।
नाटक में युवाओं की दोस्ती, पहचान, अकेलापन और स्वीकार किए जाने की चाह को बेहद सहज तरीके से दिखाया गया है। साथ ही यह सिर्फ़ गंभीर नहीं है यह एक थ्रिलर की तरह आगे बढ़ता है, जिसमें कहानी की रफ्तार, तनाव और मोड़ दर्शकों को अंत तक बांधे रखते हैं। इसकी भाषा और प्रस्तुति पूरी तरह आज के दर्शकों से जुड़ती है।

नाटक की सफलता को लेकर शाश्वत श्रीवास्तव कहते हैं, “मेरे लिए Live from the Warehouse की सफलता तालियों या तारीफों से ज़्यादा उस ठहराव से मापी जाएगी, जो शो के बाद दर्शकों के भीतर पैदा हो।

उनका मानना है कि अगर दर्शक नाटक देखकर सिर्फ़ मनोरंजन के साथ नहीं, बल्कि कुछ सवालों के साथ बाहर निकलते हैं, तो यही इसकी असली कामयाबी है।
रंगमंच की भूमिका पर बात करते हुए वे कहते हैं कि थिएटर युवाओं को एक सुरक्षित जगह देता है, जहाँ वे बिना जजमेंट के अपनी बात कह सकते हैं। मंच पर काम करने से उनकी अभिव्यक्ति बेहतर होती है, आत्मविश्वास बढ़ता है और गलती करने का डर कम होता है जो आज के समय में बेहद ज़रूरी है।
यह नाटक 16 और 17 जनवरी को श्रीराम सेंटर, दिल्ली में मंचित किया जाएगा। इसके बाद Joy of Drama की योजना है कि इसे देश के अन्य शहरों में भी प्रस्तुत किया जाए, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस विषय से जुड़ सकें और डिजिटल ज़िम्मेदारी को लेकर बातचीत आगे बढ़े।

नाटक से जुड़ी उम्मीद भी साफ़ है अगर शो के बाद माता-पिता और बच्चों के बीच खुलकर बातचीत शुरू होती है, या कोई युवा यह सोचने लगता है कि वह सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे और क्यों कर रहा है, तो यही इस नाटक की सबसे बड़ी सफलता होगी। जैसा कि निर्देशक कहते हैं, अगर यह कहानी मंच से बाहर निकलकर लोगों की ज़िंदगी में चर्चा बन जाती है, तो ‘Live from the Warehouse’ अपना उद्देश्य पूरा कर चुका होगा।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें