
भुवनेश्वर : ओडिशा के पूर्व कांग्रेस विधायक मोहम्मद मोकिम ने पार्टी नेतृत्व को लेकर सोनिया गांधी को एक कड़ा पत्र लिखते हुए गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने राहुल गांधी की लंबे समय से अनुपलब्धता, 83 वर्षीय कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की नेतृत्व शैली तथा युवाओं से पार्टी की बढ़ती दूरी को लेकर गहरी नाराज़गी जताई है। मोकिम, जो बराबती-कटक से विधायक रह चुके हैं, ने कहा कि वे स्वयं तीन वर्षों से राहुल गांधी से मुलाकात नहीं कर पाए—और यह समस्या केवल उनकी नहीं, बल्कि देशभर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेतृत्व के बीच बढ़ती भावनात्मक दूरी का संकेत है।
कांग्रेसी विधायक मोहम्मद मोकिम के इस पत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस विधायक रामचंद्र कदम ने कहा कि एआईसीसी ओडिशा में गठबंधन को लेकर पूरी तरह केंद्रित है। उन्होंने कहा कि जनता चाहती है कि कांग्रेस दोबारा सत्ता में आए, इसलिए पार्टी नेताओं को एकजुट होकर कार्य करने की आवश्यकता है।
राहुल गांधी तक पहुंच न होना बड़ा संकट: मोकिम
मोकिम ने लिखा कि नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के बीच बढ़ती खाई ने पार्टी की मजबूती को कमजोर कर दिया है। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी के दौर में कार्यकर्ताओं की बात सुनी जाती थी, जिससे संगठन में विश्वास और निष्ठा बनी रहती थी।
खरगे के नेतृत्व पर सवाल
मोकिम के अनुसार देश की 65% युवा आबादी को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का युवाओं से कनेक्ट न होना गंभीर चुनौती है। उन्होंने कहा कि खरगे की उम्र और नेतृत्व शैली से युवा वर्ग पार्टी से दूरी महसूस कर रहा है।
प्रियंका गांधी को बड़ी भूमिका देने की मांग
पत्र में उन्होंने मांग की कि प्रियंका गांधी को केंद्रीय और सक्रिय भूमिका मिले क्योंकि देश का युवा नेतृत्व उनके प्रति आकर्षित है। साथ ही पार्टी भविष्य में सचिन पायलट, डीके शिवकुमार और शशि थरूर जैसे ऊर्जावान नेताओं को प्रमुख जिम्मेदारी सौंपने पर विचार करे।
युवा नेताओं के पलायन पर चिंता
मोकिम ने कांग्रेस छोड़कर गए नेताओं—ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, हिमंत बिस्वा सरमा और जयवीर शेरगिल—का उल्लेख करते हुए कहा कि यह पार्टी के भीतर मौजूद असंतोष और अनसुनी का परिणाम है।
संगठनात्मक उपस्थिति लगातार घट रही
मोकिम ने कहा कि बिहार, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की पराजय केवल चुनावी मुद्दा नहीं है, बल्कि संगठनात्मक ढांचे की कमजोरी का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि बूथ स्तर के कार्यकर्ता स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं, जिससे चुनावी सफलता और चुनौतीपूर्ण हो गई है।














