
Prayagraj : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से पूछा है कि वाराणसी की सुषमा देवी की साइबर शिकायत पर डिजिटल अरेस्ट और जाली डॉक्यूमेंट्स पीड़ितों के बारे में सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले के पालन में क्या कार्रवाई की गई है, जिनके बैंक अकाउंट का इस्तेमाल साइबर फ्रॉड ने गैर-कानूनी पैसे ट्रांसफर करने के लिए किया था।
याची ने कहा सुप्रीम कोर्ट ने ‘इन रीः विक्टिम्स ऑफ डिजिटल अरेस्ट रिलेटेड टू फोर्ज्ड डॉक्यूमेंट्स’ में “डिजिटल अरेस्ट“ स्कैम का खुद से संज्ञान लिया है। जहां धोखेबाज अधिकारी बनकर जाली डॉक्यूमेंट्स का इस्तेमाल करके पैसे ऐंठते हैं। गंभीर चिंता जताते हुए, कोर्ट ने सीबीआई को पूरे देश में जांच करने का निर्देश दिया और केंद्र एवं राज्यों से संगठित साइबर क्राइम से निपटने के लिए संस्थागत समाधान को कहा है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अचल सचदेव की खंडपीठ ने सुषमा देवी द्वारा दायर एक याचिका पर यह आदेश दिया और याचिका में सीबीआई को पक्षकार बनाने की अनुमति दी। अगली सुनवाई 8 जनवरी 26 को होगी।
याची अधिवक्ता ने कहा कि याची एक मल्टी-स्टेट साइबर फ्रॉड गैंग का शिकार हुई थी। अगस्त 2025 में उसे हर्ष नाम के एक आदमी का कॉल आया, जिसने खुद को लोन ऑफिसर बताया और अच्छे इंटरेस्ट रेट पर 10 लाख रुपये का बिज़नेस लोन देने का ऑफर दिया। साइबर सेल असली गुनाहगारों का पता लगाने में नाकाम रही है और इस बात की सम्भावना है कि पुलिस इस मामले में याची को ही बलि का बकरा बना सकती है। क्योंकि उसके बैंक अकाउंट का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किया गया था।”
याची के मुताबिक, लोन पात्रता के लिए लेन-देन का इतिहास बनाने के बहाने, आरोपितों ने कथित तौर पर 1 सितम्बर, 2025 को बैंक ऑफ बड़ौदा से करेंट एकाउंट खुलवाया और 48 घंटे में एक करोड़ ओटीपी के जरिए स्थानांतरित किए गये। इसका पता तब चला जब बैंक ने संदिग्ध लेन देन के कारण खाता सीज कर दिया। याची ने चोलापुर थाने में शिकायत की। एफआईआर नहीं की गई। कहा गया साइबर सेल गंभीरता से विचार कर रहा। याचिका में फ्राड की सीबीआई या ईडी से जांच की मांग की गई है।










