Varanasi : ज्ञानवापी के वजूखाने में ताले पर कपड़ा बदलने की मांग पर सुनवाई पूरी, कोर्ट 15 दिसम्बर को सुनाएगा आदेश

Varanasi : उत्तर प्रदेश के वाराणसी में शृंगार गौरी-ज्ञानवापी के लम्बित केस में सील वजूखाने के ताले पर लगे पुराने जीर्ण शीर्ण कपड़े को बदलने की अर्जी मामले में बुधवार को जिला जज संजीव शुक्ला की अदालत में सुनवाई हुई। अदालत ने इस दौरान “पूजा स्थल उपबंध विधेयक 1991” पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई का हवाला दिया। इस मामले में अदालत अब 15 दिसम्बर को आदेश देगी।

यह जानकारी वादी हिन्दू पक्ष के एक अधिवक्ता मदन मोहन यादव ने दी। उन्होंने बताया कि पूजा स्थल उपबंध विधेयक 1991 के बिंदु पर सुप्रीम कोर्ट में पहले से सुनवाई चल रही है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अधीनस्थ, निचली अदालतों को गत वर्ष 12 दिसम्बर को आदेश देते हुए कहा था कि जब तक इस बिंदु पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है तब तक निचली अदालत में कोई भी नया मुकदमा एडमिट नहीं करेंगे और न ही ऐसा कोई भी आदेश नहीं देगी जिससे सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई प्रभावित हो।

ज्ञानवापी प्रकरण के शासकीय अधिवक्ता राजेश मिश्रा ने कथित वजूखाने पर सील कपड़े को बदलने वाले मामले में शासन की तरह से इस प्रकरण से स्वयं प्रार्थना पत्र देकर नॉटप्रेस (बलहीन) करने का निवेदन किया। इस मामले में जिला जज संजीव शुक्ला 15 दिसम्बर को आदेश देंगे।

गौरतलब हो कि, पिछली सुनवाई में सभी पक्षों को सुनने के बाद जिला जज संजीव शुक्ला की अदालत ने आदेश के लिए 10 नवम्बर की तारीख तय की थी। तब विशेष शासकीय अधिवक्ता ने कहा था कि ताले में लगे जर्जर कपड़े ही केवल बदले जाएंगे। विशेष शासकीय अधिवक्ता ने अर्जी पर नॉटप्रेस से इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि तालों के जर्जर कपड़े ही बदलने हैं। इसलिए किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इस पर प्रतिवादी पक्ष अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से उनके अधिवक्ताओं ने आपत्ति दर्ज कराई। इस मामले में जिला जज की अदालत ने फिर सुनवाई की तिथि तीन दिसम्बर तय की थी।

इसके पूर्व की पिछली तारीख पर ज्ञानवापी से संबंधित अन्य पत्रावली के वादी के अधिवक्ता ने इसका विरोध किया था। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उक्त शिवलिंग को सुरक्षित और संरक्षित रखने का आदेश दिया है। सुनवाई के दौरान अदालत ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने जिलाधिकारी वाराणसी को इस मामले का नियंत्रक बनाया है। उन्हें जरूरी बदलाव या सुधार के लिए नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है। कार्रवाई अदालत और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए की जाएगी, ताकि किसी भी पक्ष को आपत्ति न रहे।

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