
1986 Divorce Law : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें कहा गया है कि तलाकशुदा महिला को वह सभी सामान वापस लेने का पूरा अधिकार है जो उसने शादी के बाद अपने साथ लिया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार, महिला कानूनी रूप से उन वस्तुओं को वापस पाने का हकदार है, जैसे कि नकद पैसे, सोना और अन्य उपहार जो उसके माता-पिता ने शादी के समय उसे या उसके पति को दिए थे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन सामानों को महिला की संपत्ति माना जाना चाहिए और जब शादी खत्म हो जाती है, तो यह सामान उसे वापस मिलना चाहिए।
जजों की बेंच ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह शामिल थे, ने कहा कि 1986 के मुस्लिम महिला कानून को केवल सामान्य नागरिक विवाद के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। बल्कि, इसकी व्याख्या इस तरह की जानी चाहिए कि संवैधानिक समानता और आजादी का वादा पूरा हो सके। कोर्ट ने इस कानून की धारा 3 का उल्लेख किया, जो स्पष्ट रूप से कहती है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को उन सभी संपत्तियों का अधिकार है, जो उसे शादी से पहले, शादी के समय या शादी के बाद मिली थीं।
पुराने केस का हवाला
कोर्ट ने डैनियल लतीफी बनाम भारत संघ (2001) के केस का भी उल्लेख किया, जिसमें एक बड़ी संवैधानिक बेंच ने इन कानूनों को सही ठहराया था। बेंच ने यह भी कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद आर्थिक आजादी मिल सके, इसके लिए उचित प्रावधान दिए जाने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
यह फैसला एक मुस्लिम महिला की याचिका पर आया था। कोर्ट की बेंच ने महिला के पूर्व पति को निर्देश दिया कि महिला के बैंक खाते में 17 लाख 67 हजार 980 रुपए जमा किए जाएं। यह रकम मेहर, दहेज, 30 तोले सोने के गहने, और अन्य उपहार जैसे टीवी, फ्रिज, स्टेबलाइजर, शोकेस, डाइनिंग फर्नीचर और घर का सामान, जैसे कि बॉक्स बेड सहित कुल मूल्य का निर्धारण किया गया था।
कोर्ट ने तय की समय सीमा
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि यह भुगतान छह हफ्तों के अंदर किया जाए। साथ ही, पति को भुगतान का प्रमाण भी प्रस्तुत करना होगा। यदि नियत अवधि में भुगतान नहीं किया जाता है या पति ऐसा नहीं कर पाता है, तो उसे रकम पर 9% का सालाना ब्याज देना पड़ेगा।
कलकत्ता हाई कोर्ट की आलोचना
सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि वर्ष 2022 में कलकत्ता हाई कोर्ट का एक फैसला, जिसमें उस महिला को पूरी रकम देने से इनकार कर दिया गया था, को खारिज किया जाता है। बेंच ने हाई कोर्ट की आलोचना करते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने कानून के सामाजिक न्याय के उद्देश्य पर ध्यान नहीं दिया। इसके बजाय, हाई कोर्ट ने शादी के रजिस्टर में दर्ज बातें और उससे जुड़े सबूतों पर अधिक भरोसा किया, जो कि उचित नहीं था।
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