उज्जैन में टूटी अखाड़ों की एकजुटता, शैव-वैष्णव अब अलग-अलग संगठन से करेंगे काम

उज्जैन। सिंहस्थ महाकुंभ 2028 की तैयारियों के बीच उज्जैन में साधु-संतों के दो प्रमुख संप्रदायों—शैव और वैष्णव—के बीच स्थानीय स्तर पर बड़ा संगठनात्मक परिवर्तन हो गया है। स्थानीय अखाड़ा परिषद के भंग होने और शैव अखाड़ों से जुड़े पदाधिकारियों के इस्तीफे के बाद अब वैष्णव अखाड़ों ने अलग संगठन “रामादल अखाड़ा परिषद” का गठन कर लिया है। इससे स्पष्ट है कि सिंहस्थ की तैयारियों में अब दोनों संप्रदाय अपने-अपने संगठन के माध्यम से प्रशासन से संपर्क करेंगे।

तीनों वैष्णव अणि अखाड़ों ने मिलकर लिया फैसला

मंगलनाथ रोड स्थित श्री पंच रामानंदीय निर्मोही अखाड़े में आयोजित बैठक में निर्मोही अणि, दिगंबर अणि और निर्वाणी अणि अखाड़ा के महंतों और महामंडलेश्वरों ने भाग लिया। एक घंटे चली बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय हुआ कि सिंहस्थ से जुड़े सभी मुद्दों पर अब शासन-प्रशासन से संवाद रामादल अखाड़ा परिषद ही करेगा।
नए संगठन के पंजीकरण की प्रक्रिया भी प्रारंभ कर दी गई है।

रामादल अखाड़ा परिषद में जिम्मेदारियाँ इस प्रकार

  • संरक्षक: मुनि क्षरणदास, अर्जुनदास खाकी अखाड़ा, महंत भगवानदास
  • अध्यक्ष: डॉ. रामेश्वरदास महाराज
  • उपाध्यक्ष: महंत काशीदास, रामचंद्र दास, हरिहर रसिक खेड़ापति
  • कोषाध्यक्ष: महेश दास, राघवेंद्र दास
  • मंत्री: बलराम दास
  • महामंत्री: चरण दास
  • महंत: दिग्विजय दास

“शैव अखाड़ों से अब कोई संपर्क नहीं” — वैष्णव संत

संरक्षक महंत भगवानदास ने कहा कि शैव संप्रदाय में असंतोष और पदाधिकारियों के इस्तीफों के चलते पुरानी परिषद को समाप्त करना पड़ा। उन्होंने स्पष्ट किया कि अब वैष्णव अखाड़ों का अपना स्वतंत्र संगठन रहेगा और शैव संप्रदाय से कोई संपर्क नहीं होगा।

स्थानीय अखाड़ा परिषद को क्यों भंग किया गया?

शिप्रा तट स्थित दत्त अखाड़े में हुई एक आपात बैठक में यह निर्णय लिया गया कि सिंहस्थ जैसे बड़े आयोजन में स्थानीय परिषद की भूमिका सीमित है। इसलिए बेहतर समन्वय और नेतृत्व के लिए अब अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ही सभी तैयारियों और प्रशासनिक कामों की जिम्मेदारी संभालेगी।
पदाधिकारियों के इस्तीफे के बाद शासन-प्रशासन को भी इसकी औपचारिक सूचना दे दी गई है।

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