इंदिरा काल की अग्निपरीक्षा: जब तीन महाशक्तियों के सामने रूस बना भारत की ढाल

New Delhi : रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अगले हफ्ते भारत आ रहे हैं। पुतिन के दौरे को कूटनीतिक लिहाज से अहम माना जा रहा है, खासतौर पर ऐसे वक्त में, जब रूस-अमेरिका के बीच यूक्रेन मसले का हल निकलने के करीब है। भारत और रूस की मित्रता का सालों पुराना इतिहास है। जानकारी के मुताबिक 1971 वह साल…था जिसने दक्षिण एशिया का नक्शा बदल दिया था। इस साल भारत को विश्वयुद्ध जैसे हालात में धकेल दिया था, जिसने दुनिया को दिखा दिया कि भारत-रूस सिर्फ कागजों पर नहीं बल्कि ऐसे दोस्त हैं, जब हवाएं विपरीत चल रही हों। यूक्रेन मसले को लेकर भले ही दुनियाभर के देश रूस को गलत ठहराएं, भारत इस मामले में तटस्थ है क्योंकि 1971 में जब अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश भारत के खिलाफ खड़े थे, तो रूस चट्टान बनकर भारत के साथ खड़ा था।

भारतीय खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट में साफ है पूर्वी पाकिस्तान में इंसान मिट्टी की तरह कुचले जा रहे थे तब अमेरिका, ब्रिटेन और चीन चुपचाप बैठे थे। भारत इन हालात में अकेला पड़ गया था तो इंदिरा गांधी इस वक्त अच्छी तरह समझ चुकी थीं कि भारत अब बिना किसी वैश्विक सहारे के युद्ध में घिरने वाला है। पाकिस्तान का सैन्य नेतृत्व युद्ध की तैयारी कर चुका था और पाकिस्तान का सबसे बड़ा समर्थक बना अमेरिका उसके पीछे खड़ा था।

इसी संकट में तत्कालीन पीएम जिन्हें आयरन लेडी कहा जाता है इंदिरा गांधी ने वह कदम उठाया जिसे आज भी दुनिया कूटनीति का मास्टरस्ट्रोक कहती है। अगस्त 1971 में भारत और सोवियत संघ के बीच एक ऐसा रक्षा समझौता हुआ, जिसने युद्ध की तस्वीर बदल दी, जिसमें साफ लिखा था कि यदि किसी भी देश पर बाहरी हमला हुआ, तो दोनों एक-दूसरे के साथ खड़े होंगे। यह समझौता सिर्फ कागज़ का टुकड़ा नहीं था बल्कि भारत के लिए ढाल बन गया था।

इधर भारत-सोवियत समझौता हुआ, उधर पाकिस्तान ने युद्ध छेड़ दिया। दिसंबर, 1971 में पाकिस्तान ने भारत के पश्चिमी मोर्चे पर हमला कर दिया और इसके साथ ही भारत-पाक युद्ध शुरू हो गया। यह सिर्फ भारत-पाक युद्ध नहीं था बल्कि ये दुनिया के दो बड़े खेमों की राजनीतिक परीक्षा थी। युद्ध शुरू होते ही अमेरिका ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया। व्हाइट हाउस ने वियतनाम से विश्व के सबसे खतरनाक समुद्री युद्ध बेड़ों में से एक सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की ओर मोड़ दिया। यह बेड़ा किसी चलती-फिरती अटैकिंग मशीन से कम नहीं था, जिसमें 70 से ज़्यादा लड़ाकू विमान, मिसाइलें, परमाणु क्षमता वाली पनडुब्बियां मौजूद थीं। ऐसे में भारत घिर गया था और समुद्र में खतरा बढ़ गया था। हालात की गंभीरता देखते हुए भारत के नेतृत्व ने एक आपात संदेश सोवियत राष्ट्रपति लियोनिड ब्रेझनेव को भेजा। संदेश में साफ लिखा था- अमेरिकी और ब्रिटिश युद्धपोत भारत की ओर बढ़ रहे हैं, स्थिति किसी भी क्षण नियंत्रण से बाहर जा सकती है।

यही भारत-रूस रिश्ते की अग्निपरीक्षा थी, जहां रूस खरा उतरा। सोवियत संघ की मिसाइलों से लैस पनडुब्बियां और नौसैनिक बेड़े तुरंत बंगाल की खाड़ी और अरब सागर की ओर बढ़ें। कुछ ही घंटे में सोवियत नौसैनिक ताकत समुद्र में उतर चुकी थी। अमेरिकी कमांडर ने वाशिंगटन को आपात संदेश भेजा- ‘सोवियत नौसेना तैयार है, टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। ऐसे में वॉशिंगटन की ओर से आदेश आया- ‘पीछे हटो, तुरंत वापस लौटो। अमेरिका का बेड़ा मुड़ गया, ब्रिटेन की तैनाती रुक गई और चीन चुप ही रह गया। इस तरह भारत को दुनिया की तीन महाशक्तियों द्वारा किए जा रहे घेराव से बचाने वाला देश था- सोवियत संघ यानि अब रूस।

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