भारत-रूस की रणनीतिक साझेदारी को नई दिशा: RELOS समझौते पर ड्यूमा में मतदान

New Delhi : भारत-रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठने वाला है। रूसी संसद के निचले सदन, स्टेट ड्यूमा, मंगलवार 2 दिसंबर 2025 को भारत के साथ ‘पारस्परिक रसद आदान-प्रदान समझौते’ (RELOS) पर मतदान करेगा। यह फैसला रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा से ठीक पहले आ रहा है, जो गुरुवार 4 दिसंबर से शुरू होगी। RELOS समझौते के तहत दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के एयरबेस, नौसैनिक बंदरगाहों और रखरखाव सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकेंगी, जिससे संयुक्त सैन्य अभ्यास, आपदा राहत और अन्य ऑपरेशनों में समन्वय आसान हो जाएगा।

रूसी सरकारी मीडिया TASS के अनुसार, ड्यूमा ने इस समझौते को अपनी रैटिफिकेशन डेटाबेस में अपलोड कर दिया है। रूसी सरकार का मानना है कि इसकी मंजूरी से दोनों देशों के बीच सैन्य क्षेत्र में सहयोग और मजबूत होगा। यह पैक्ट फरवरी 2025 में मास्को में हस्ताक्षरित हुआ था, जब भारतीय राजदूत विनय कुमार और तत्कालीन रूसी उप रक्षा मंत्री अलेक्जेंडर फोमिन ने इसे अंतिम रूप दिया। अब रैटिफिकेशन के बाद यह औपचारिक रूप से लागू हो सकेगा, जो भारत को रूस के आर्कटिक क्षेत्र तक त्वरित पहुंच प्रदान करेगा।

RELOS समझौते की प्रमुख विशेषताएं
RELOS अमेरिका के साथ भारत के हालिया लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज एग्रीमेंट (LEMOA) की तर्ज पर है, लेकिन यह रूस के साथ विशेष रणनीतिक साझेदारी को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। मुख्य बिंदु:

विशेषताविवरणलॉजिस्टिक्स आदान-प्रदानईंधन, स्पेयर पार्ट्स और रखरखाव सुविधाओं का पारस्परिक उपयोग।सैन्य पहुंचभारतीय नौसेना और वायुसेना को रूसी बंदरगाहों/एयरफील्ड्स पर पूर्व सूचना पर प्रवेश।संयुक्त अभ्यासINDRA जैसी संयुक्त ड्रिल्स के लिए त्वरित समन्वय।आपदा राहतप्राकृतिक आपदाओं में एक-दूसरे की मदद के लिए लॉजिस्टिक्स सपोर्ट।रणनीतिक लाभभारत को रूस के आर्कटिक क्षेत्र में सैन्य गतिविधियों तक पहुंच।

यह समझौता भारत की ‘मल्टी-अलाइनमेंट’ विदेश नीति को मजबूत करेगा, जहां रूस से हथियारों की 60% आपूर्ति के बावजूद विविधीकरण पर जोर है। विशेषज्ञों का कहना है कि RELOS से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम जैसे बड़े सौदों में सहयोग बढ़ेगा।

पुतिन की दो दिवसीय यात्रा: 23वें शिखर सम्मेलन का एजेंडा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर पुतिन 4-5 दिसंबर को भारत पहुंचेंगे। यह उनकी 2021 के बाद पहली यात्रा होगी, जो रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद आ रही है। विदेश मंत्रालय (MEA) के अनुसार, यह 23वां भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन होगा, जहां दोनों नेता द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा करेंगे।

प्रमुख चर्चा बिंदु:

रक्षा सहयोग: RELOS के अलावा, अतिरिक्त S-400 डील और ब्रह्मोस मिसाइल के संयुक्त उत्पादन पर फोकस। भारत ने 2018 में 5.43 अरब डॉलर का S-400 सौदा किया था, जिसकी डिलीवरी जारी है।
व्यापार और ऊर्जा: द्विपक्षीय व्यापार 2024 में 65 अरब डॉलर तक पहुंचा, लेकिन असंतुलन (भारत का रूस के साथ 40 अरब डॉलर का घाटा) को दूर करने पर जोर। स्थानीय मुद्रा व्यापार और रूसी तेल आयात पर चर्चा, खासकर अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच।
क्षेत्रीय मुद्दे: यूक्रेन संकट, SCO और BRICS के जरिए बहुपक्षीय सहयोग। भारत ने ‘नॉट द टाइम फॉर वॉर’ की नीति दोहराई है।
अन्य क्षेत्र: अंतरिक्ष (गगनयान मिशन में सहयोग), परमाणु ऊर्जा (कुडनकुलम प्लांट) और सांस्कृतिक आदान-प्रदान।

पुतिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मुलाकात करेंगी, जो उनके सम्मान में स्टेट बैनक्वेट आयोजित करेंगी। क्रेमलिन ने इसे ‘विशेष रणनीतिक साझेदारी’ का व्यापक एजेंडा बताया है, जिसमें कई अंतर-सरकारी और व्यावसायिक दस्तावेज साइन होंगे।

विशेषज्ञों की राय: स्वतंत्र विदेश नीति का प्रतीक
पूर्व भारतीय राजदूत अजय मल्होत्रा ने गुरुग्राम में एक इंटरव्यू में कहा, “पुतिन का दौरा भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का मजबूत संकेत है। यह दोनों देशों की गहरी साझेदारी की पुष्टि करता है, जो सोवियत काल से चली आ रही है।” पुतिन ने हाल ही में वल्दाई डिस्कशन क्लब में मोदी को “बुद्धिमान और राष्ट्र-केंद्रित नेता” कहा, और व्यापार असंतुलन दूर करने के लिए उप-पीएम डेनिस मंटुरोव को निर्देश दिए।
यह यात्रा अमेरिकी दबावों (जैसे 25% टैरिफ) के बीच भारत-रूस संबंधों की मजबूती दिखाएगी। कुल मिलाकर, RELOS और शिखर सम्मेलन से दोनों देशों का रक्षा-व्यापार सहयोग नई दिशा पकड़ेगा। क्या यह ‘सदियों पुरानी दोस्ती’ को नई ताकत देगा? आने वाले दिनों में साफ होगा।

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