
कोच्चि । केरल हाईकोर्ट ने एक मुस्लिम पति को जमकर फटकार लगाई। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि बगैर किसी बहाने के तत्काल पहली पत्नी को जीवन यापन के लिए गुजारा भत्ता दो। महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि एक मुस्लिम पति अपनी पहली पत्नी को गुजारा भत्ता देने से केवल इस आधार पर नहीं बच सकता कि उसकी दूसरी पत्नी भी है या कि उसका बेटा पहली पत्नी की आर्थिक मदद कर रहा है। अदालत ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत बहुविवाह की अनुमति तो है, लेकिन यह सिर्फ असाधारण परिस्थितियों में ही संभव है और पति को सभी पत्नियों के साथ समान और न्यायपूर्ण व्यवहार करना होगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायमूर्ति कौसर एडप्पगथ ने अपने फैसले में टिप्पणी की कि मुस्लिम कानून के अनुसार एक से अधिक विवाह कोई अधिकार नहीं बल्कि एक अपवाद है। विवाह में बराबरी का अर्थ केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि आर्थिक समानता भी है। यदि कोई व्यक्ति सभी पत्नियों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करने में सक्षम नहीं है, तो उसे एक ही विवाह करना चाहिए। अदालत ने कहा कि यदि कोई पति अपनी पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करता है, तो वह अपनी पहली पत्नी को आर्थिक सहायता न देने का तर्क दूसरी पत्नी की जिम्मेदारी के आधार पर नहीं दे सकता। अदालत के अनुसार- दूसरी पत्नी का होना पहली पत्नी के गुजारा भत्ते की देनदारी को कम या समाप्त नहीं करता। कोर्ट ने पहली पत्नी को 5,000 रुपये महीना गुजारा भत्ता देने का आदेश बरकरार रखा। पति की दोनों याचिकाएं- पहली पत्नी के गुजारा-भत्ता को चुनौती देने वाली और बेटे से गुजारा-भत्ता मांगने वाली दोनों खारिज कर दीं।
पहली पत्नी ने वर्ष 2016 में गुजारा भत्ता का मामला दायर किया था। उनका कहना था कि उनका कोई रोजगार नहीं है और पति ने खाड़ी देशों में 40 साल से अधिक समय तक काम किया है, इसलिए उनके पास पर्याप्त साधन हैं। फैमिली कोर्ट ने उसे 5,000 रुपये मासिक भत्ता देने का आदेश दिया था। पति ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी और तर्क दिया कि वह वर्तमान में बेरोजगार है और उसकी पहली पत्नी एक ब्यूटी पार्लर चलाती है। उसने कहा कि उसे दूसरी पत्नी की भी देखभाल करनी होती है और पहली पत्नी बिना कारण घर छोड़कर चली गई। पति ने एक अन्य फैमिली कोर्ट में अपने बेटे से गुजारा भत्ता मांगते हुए याचिका दायर की थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया। यह आदेश भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।














