
केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ को संविधान के अनुच्छेद 240 के दायरे में लाने के लिए संविधान (131वां संशोधन) विधेयक, 2025 संसद में पेश करने की तैयारी की है। प्रस्ताव का उद्देश्य चंडीगढ़ को उन केंद्र शासित प्रदेशों की श्रेणी में शामिल करना है, जहाँ राष्ट्रपति सीधे नियम बनाते हैं और उन्हें कानून जैसा प्रभाव प्राप्त होता है। यह नया ढांचा AIS-197 Revision 1 के रूप में तैयार किया गया है और इसे आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है, जो 1 दिसंबर से शुरू हो रहा है। नए प्रावधान लागू होने के बाद चंडीगढ़ का प्रशासनिक नियंत्रण लगभग पूरी तरह केंद्र सरकार के हाथों में आ जाएगा, ठीक उसी तरह जैसे अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दादरा–नगर हवेली, दमन–दीव और विशेष स्थितियों में पुडुचेरी में होता है, जहाँ विधानसभा या तो नहीं होती या भंग की जा सकती है।
हालाँकि, इस प्रस्ताव ने पंजाब की राजनीति में जबरदस्त विवाद खड़ा कर दिया है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इसे पंजाब के साथ अन्याय बताते हुए कहा कि चंडीगढ़ ऐतिहासिक रूप से पंजाब का हिस्सा रहा है और इसे केंद्र के अधीन लाना “पंजाब से दूर करने की साजिश” जैसा कदम है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस विधेयक को संघीय ढांचे पर सीधा प्रहार बताया और कहा कि पंजाब इस बिल को किसी भी कीमत पर पारित नहीं होने देगा। कांग्रेस ने भी संशोधन का विरोध करने की घोषणा की है। पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वारिंग ने चेतावनी दी कि यह कदम अनुचित होने के साथ भविष्य में गंभीर परिणाम ला सकता है और भाजपा नेताओं से इस मुद्दे पर सार्वजनिक रुख स्पष्ट करने को कहा।
अकाली दल ने भी इस प्रस्ताव को पंजाब के अधिकारों का हनन बताते हुए कहा कि यह 1970 के उस समझौते का उल्लंघन है जिसके तहत चंडीगढ़ पंजाब को सौंपा जाना था। सुखबीर सिंह बादल ने दावा किया कि राजीव–लोंगोवाल समझौता पहले ही लागू नहीं हुआ और अब नया संशोधन पंजाब के हिस्से को और कमज़ोर करेगा। उन्होंने इस मुद्दे पर आपात बैठक बुलाकर विरोध की रणनीति तैयार करने की घोषणा की। वहीं, नॉर्थ अमेरिकन पंजाबी एसोसिएशन और विदेशों में बसे पंजाबी संगठनों ने भी इस विधेयक को संवैधानिक रूप से संदिग्ध बताते हुए कहा कि यह पंजाब के ऐतिहासिक दावे को कमजोर करता है।
वर्तमान में चंडीगढ़ का प्रशासन पंजाब के राज्यपाल के पास है, जिन्हें 1 जून 1984 से शहर का प्रशासक नियुक्त किया गया था। वर्ष 2016 में केंद्र ने अलग प्रशासक नियुक्त करने की योजना बनाई थी, लेकिन प्रदेश के सभी दलों के विरोध के चलते उस प्रस्ताव को वापस लेना पड़ा। इसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के चलते नया संशोधन अब और भी संवेदनशील हो गया है। दिलचस्प बात यह है कि इस मुद्दे ने पंजाब की तीन बड़ी राजनीतिक पार्टियों—आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और शिअद—को एक मंच पर ला दिया है। सभी दलों का कहना है कि वे इस प्रस्ताव का विरोध संसद से लेकर सड़क तक हर स्तर पर करेंगे।















